झूठे मुकदमे
झूठे मुकदमे
सात दिन बचे हैं जिस्म का चोंगा बदलने के लिए। तारे चन्द्रमा, जुगनू की तरह अपनी चमक खोने से लगे हैं। सर्द रातें रजाइयों और कंबलों में दुबकी हु यी और लम्बी होती जा रही हैं। दिन चढ़ता है दीवार के ऊपरी हिस्से में लगे रोशनदान से और जल्दी जल्दी लम्बे लम्बे कदम बढ़ाते हुए घंटों का सफर मिनटों में पार कर, शाम के साथ चाय पीने निकल जाता है। विचारों की अलमारी में कई हिस्सों में सजी ज़िंदगी की किताबों पर समय की धूल कभी कभी उड़ती है और फिर बैठ जाती है। शोभित दो मजबूत दीवारों के बीच में खुद को फँसाये पिछले तीन चार घंटे से न जाने क्या सोच रहा है ..कभी मुर्दा बनकर तो कभी ज़िंदा होने का नाटक कर के।
शोभित कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री ( मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ) की पढ़ाई करके एक स्कूल में अध्यापन का काम करता है। पढ़ने में होशियार और अपनी पढ़ाने की अनोखी शैली की वजह से उसके विद्यार्थी उससे बहुत प्रभावित थे, रट्टा मरवाने में उसको विश्वास नहीं था। हर चीज को बहुत ही विस्तृत तरह से समझाना और हर एक विद्यार्थी का ध्यान रखना, शायद उसको और अध्यापकों से अलग बनाता था।
लेकिन परेशानियां कभी भी आपसे पूछ कर नहीं आती हैं, वो साये की तरह आपके साथ ही होती हैं। कभी आपकी वजह से तो कभी ख़राब समय की वजह से वो आपको अपनी गिरफ्त में ले ही लेती हैं। कुछ परेशानियां आपके वर्तमान को भूत में बदलने की ताकत रखती हैं, इसी तरह शोभित के वर्तमान की अच्छाइयों को समय के किसी पल ने, भूत के था थी में तब्दील कर दिया था।
शोभित की शादी को लगभग पांच साल हो चुके थे जिसमें से पिछले दो साल से शादी के एल्बम के माफिक शादी शब्द की मजबूती ही उसको शादीशुदा होने का एहसास दिला रही थी। शोभित की पत्नी प्रभा ने उसपर दहेज़ और प्रताड़णा का मुकदमा लगा दिया था, इसकी वजह से शोभित दिल्ली के सेंट्रल जेल में पिछले 1 साल से कैद था। क्योंकि मुकदमा मगरमच्छ के आँसू की तरह झूठा था इसलिए शोभित के वकील की वजह से वो आने वाली 26 जनवरी को रिहा हो रहा था, कभी कभी सत्य को भी समय के आगे कुछ देर के लिए घुटने टेकने पड़ जाते हैं। ये कलयुग है, यहाँ तो सत्य को जीतने में भी समय लगता है। कौन सा सत्य किस मोड़ पर हाँफते हुए अंतिम सांस लेते हुए संजीवनी बूटी पा जाए इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। हज़ारों लाखों झूठे और फर्जी मुकदमे न जाने कितने अच्छे भले लोगों की कमर तोड़ कर रख दे रहे हैं। वो अपनी अच्छाई की कमजोर लाठी से लगातार लड़ रहे हैं जीतना होगा या नहीं, शायद यह समय ही जाने।
जैसे जैसे दिन रिहाई के नज़दीक आ रहे हैं उसको अवसाद उतनी ही रफ्तार से गिरफ्त में लेता जा रहा है। उसको न तो कोई ख़ुशी है अपनी आज़ादी को लेकर न तो दुःख है जेल में कैदी बनकर रहने में, उसको ये भी समझ में नहीं आ रहा है कि रिहाई के बाद वो कहाँ जायेगा क्या करेगा क्योंकि आज भी हमारा समाज बुराई से ज्यादा बुरा करने वाले के ख़ात्मे और तोड़ने के पीछे पड़ा रहता है। शायद इसी वजह से बुराइयां न तो ख़त्म हो रही हैं और न बुरा करने वाले, जब तक किसी भी समस्या के जड़ पर प्रहार नहीं होगा, उसके तने पत्तियाँ छांटने से बहुत ज़्यादा फायदा नहीं होने वाला।
आज की रात उसके आज़ाद विचारों की आखरी रात है, शोभित बंद चार दीवारों में विचारों की जो उड़ान भरता था बाहर निकलकर शायद दुनियादारी उसके विचारों के परों को काट दे या फिर कमजोर कर दे।
शोभित को कल रिहाई होने की खबर सुनाने वाले सिपाही से शोभित ने प्रार्थना करके कुछ ख़ाली पन्ने और कलम देने को कहा, सिपाही अपने अफ़सर से बात करके शोभित को कुछ खाली पन्ने और एक कलम देते हुए कहता है कि अरे शोभित बाबू क्या बात है आज कहाँ से विचारों को क़ैद करने की सोचने लगे, क्या आत्मकथा लिखने की शुरुआत यही से करनी है या जेल में गुजारे गए लम्हों को कोई आकर देना चाहते हो।
शोभित ने जवाब दिया कि हालात सबको कुछ न कुछ सिखाते हैं बस उसी सीख को बस किसी तक पहुँचाना चाहता हूँ। इन कोरे पन्नों पर कुछ नसीहतें कुछ असलियत लिखना है और फिर उसको किसी व्यक्ति को भेजना है। रात भर शोभित अपने विचारों के मैदान पर कलम और कागज़ के टुकड़ों से खेलता रहा।
कुछ बादलों ने आज सूरज की किरणों का रास्ता रोक कर रखने की सोच रखी है, 10 बजने वाले हैं, गणतन्त्र दिवस की बधाई एक दूसरे को सभी दे चुके हैं। तिरंगा भी लहरा लहरा कर अपनी ख़ुशियों का इज़हार कर चुका है। शोभित भी जेल से बाहर निकलने वाला है। जेल में अपना आखरी कदम छोड़...अपना कुछ सामान और जेल में काम के बदले कुछ कमाये गये पैसों को लेकर मुख्य द्वार से वह बाहर निकल रहा है।
जेल के बाहर कुछ गिने चुने लोगों के रिश्तेदार ही आते हैं रिसीव करने के लिए। शोभित का तो अपना कोई था न ही नहीं और जो इक्का दुक्का थे वह शोभित को अपने हालात पर छोड़ अपने अपने जीवन में आगे बढ़ चुके थे। कुछ दूर पैदल चलने के बाद पीछे से एक आवाज़ आती है, शाहब किधर जाना है रिक्शा खींचते हुए एक बुजुर्ग आँखों में मोटा सा पुराना चस्मा लगाए पूछता है, कहीं नहीं बाबा जहां ज़िंदगी ले जाए, बेटा ज़िंदगी कब किसको किधर ले जाती है, हम ही ज़िंदगी को इधर उधर करके बोलते हैं ज़िंदगी हमको उधर लेकर गयी। मुझे ही देखो...इस उम्र में खुद का शरीर तो लेकर चला नहीं जाता है मगर ज़िम्मेदारियाँ खुद के साथ साथ पेट के भी वजन को खींचने के लिए रिक्शा चलाने की हिम्मत देती है ज़िंदगी हराना चाहती है मुझे पर इस उम्र में आकर हार जाऊँ तो आने वाले पीढ़ी को क्या सिखाऊंगा, कि उम्र के साथ साथ बाबा ने ज़िंदगी के आगे हथियार डाल दिए। पिछले महीने मेरे बेटे और बहु का देहांत हो गया एक एक्सीडेंट में, एकलौता सहारा था ...पर अब मुझे अपने पोते का सहारा बनना पड़ रहा है, 4 साल का है उसके सवालों का उत्तर हर रोज मैं खोजने निकलता हूँ। बेटा कुछ भी हो हार न मानना कभी लड़ते रहना, लड़ते हुए मरने वालों को इतिहास हमेशा याद रखता है और सबसे ज़्यादा सीख भी उन्ही से मिलती है।
दुनिया में कितना ग़म है मेरा ग़म कितना कम है। शोभित के दिमाग में एक दम से ये गाना याद आ गया, शायद बाबा के कहे गए शब्द उसको कुछ हिम्मत दे रहे थे ...उसका हौसला बढ़ा रहे थे। उसने बाबा के रिक्शे पर बैठते हुए कहा ...बाबा कहीं ले चलो जहां सकूँ मिले, उथल पुथल भरी ज़िंदगी ने मुझे झकझोर कर रख दिया है ...अब तो चलने का भी मन नहीं, ज़िंदगी में एक कदम भी।
चलो बेटा चौराहे तक आपको छोड़ आता हूँ, यहाँ से 3 किलोमीटर दूर है...और इस रास्ते पर कोई साधन नहीं मिलता है।
बेटा मैंने कई कैदियों को देखा है वो जब यहाँ से निकलते हैं तो बहुत खुश होते हैं, पर आपके चेहरे में वो ख़ुशी नहीं है सब सही तो है न। अपनेपन का लेप जब घाव पर लगता है न तो एकदम से बेचैनी पैदा करता है, छरछराहट सी होने लगती है उस घाव में ...लेकिन कुछ देर बाद अच्छा भी लगने लगता है। वही शोभित के साथ भी होता है और उसी छरछराहट और अच्छे पन के मिश्रण ने उसकी जुबान को फिसलने के लिए मजबूर कर दिया उसको पता ही नहीं चला, सारा दुखड़ा कमजोर शब्दों और आवाज़ों से सुना डाला।
बाबा ज़िंदगी इतनी आसान क्यों नहीं होती है? सब सही चलते चलते अचानक से रास्ते बदल से क्यों जाते हैं ? ये दुःख क्यों ज़रूरी है ? ये कलयुग ये सतयुग सब एक जैसा क्यों नहीं हो जाता है ?
बेटा, ये सब तो मुझे नहीं पता लेकिन ये ध्यान रखना कि भगवान ने सबको किसी न किसी काम के लिए यहाँ भेजा है और उसी की ख़ातिर वह अपने बन्दों को मजबूत करता है, दुःख की भट्टी में पकाता है ...ढालता है इंसान को, जिससे वह उस काम को करने में समर्थ हो सके। अभी न जाने कितने बसंत देखने है तुम को। अगर अभी से हार जाओगे तो कैसे काम चलेगा। जब कुछ न समझ में आये तो उसके बारे में सोचना शुरू करना चाहिए जो आपसे ज़्यादा दुखी है, फिर उनकी सहायता करने की कोशिश शुरू कर देना चाहिए, देखना बेटा...क्या ख़ुशी मिलेगी तुम को। दुनिया में बहुत असमानता है, अगर अपने पूछे गए सवालों का जवाब चाहते हो और चाहते हो की सब समान रहे तो उसके लिए तुम को कुछ करना पड़ेगा ....सवालों की उम्र उतनी ही बड़ी होती है जबतक की जवाब न मिले।
लंगड़ा घोड़ा अगर ये सोचता रहे की उसके साथ ऐसा क्यूँ हुआ और यही सोच कर लेटा रहे तो उसका शरीर धीरे धीरे और ख़राब होता जायेगा, फिर और सवालों का घेरा उसके दिमाग में बढ़ता जायेगा, लेकिन वही हिम्मत करके वो आगे बढ़े तो शायद वहीँ से कुछ अच्छा होना शुरू हो जाए।
शोभित की नकारात्मक सोच में न जाने कहां से सकारात्मकता की ज्वाला जलना शुरू हो जाती है बाबा के कहे गए शब्द उसको न जाने किस ऊर्जा से भर रहे थे। शोभित का दिमाग और दिल बस न जाने किस एक उद्देश्य की तलाश में एक दूसरे से बात करने को बेचैन हो रहे थे। बेटा आ गया चौराहा..
धन्यवाद बाबा, आपने ज़िंदगी में एक अनदेखा मकसद दे दिया है...सारे कमाए गए पैसों में कुछ पैसे रख सारे पैसे बाबा को देकर शोभित जल्दी जल्दी आगे बढ़ कर सड़क के दूसरी तरफ डाकघर की तरफ बढ़ गया। वह उस लेटर को पोस्ट करना चाह रहा है जिसको उसने प्रभा के लिए लिखा था।
“नमस्कार, शायद अब अपने बीच में ऐसा कुछ बचा नहीं जिससे कोई बात को दोबारा शुरू किया जा सके, लेकिन हिम्मत करके ये पत्र लिख रहा हूँ, तुम को खबर तो होगी ही कि तुम मेरे लिए क्या थी....शादी के पहले एक ढेड़ साल याद करके देख लो। शायद बहुत कुछ समझ में आ जायेगा। समय कभी एक करवट नहीं बैठा रहता है इसलिए शायद तुम भी मौसम की तरह बदलते चले गए, शायद मैंने तुम को हमेशा प्रायोरिटी पर रखा फिर भी तुम मुझे समझ न पाए, अगर तुम को दूर जाना भी था तो इस तरह तो नहीं करना चाहिए था। मैंने कितनी कोशिश की, कि सब सही हो जाये...मैंने अपने दोस्तों रिश्तेदारों को आपके घर भेजा की रिश्ते फिर से सुधर सकें लेकिन आप लोगों ने उनकी बेइज्जती की फिर भी मैंने कोशिश जारी रखी। मगर इन सबका सिला क्या दिया तुमने? जेल, वो भी झूठा मुकदमा लगा कर...हमे नहीं पता की ये आपने क्यों किया लेकिन किसी की ज़िंदगी के संग ऐसा खिलवाड़ सही बात नहीं, ऐसा ही अगर कोई आपके भाई के साथ करेगा तो कैसा लगेगा? मैं तो टूट ही गया हूँ ..तुम्हारे सिवा मेरे पास कुछ खोने को नहीं था और तुमने उसको भी 1 साल में धीरे धीरे मुझसे ले लिया। यहाँ से निकल कर मैं कहाँ जाऊँगा नहीं पता, क्या करूँगा होश नहीं ..टूट गया हूँ मैं, बिखर गया हूँ, कितना समेट पाउँगा खुद को ...कितना संभाल पाउँगा खुद को ये रब जाने।
वैसे तो अब तुम को भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि मैं कहाँ हूँ क्या कर रहा हूँ, क्या करना है मुझे अब आगे।
ये पत्र इसलिए लिख रहा हूँ कि हर इंसान मेरे जैसा नहीं होता, लोगों का शादी जैसे पवित्र रिश्ते से विश्वास न उठ जाए। दहेज़ के फर्जी मुकदमों से डर कर कहीं लोग शादी ही करना न बंद कर दें, सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए तुमने ऐसा किया..क्या मिला तुम को या क्या मिलेगा ये तो तुम ही समझ सकती हो, अगर कहीं और शादी करनी थी या तलाक ही चाहिए था तो तलाक ले लेती, मेरी कमियां तो बताती ..सुधार करने का मौका तो देती।
मैं मुकदमा जीत गया हूँ इसकी मुझे ख़ुशी नहीं है, क्योंकि मैंने बहुत कुछ हार कर अपनी न चाहने वाली रिहाई पायी है।
दहेज़ का आरोप वैसे भी झूठा ही था, ये तो तुम को भी पता था ..और हाँ मैंने तो कभी तुमसे ऊँची आवाज़ में बात नहीं की तो फिर घरेलु हिंसा कैसे कर सकता हूँ। जब डॉक्टर ने कह दिया था कि तुम माँ नहीं बन सकती तो मैंने तो कभी नहीं कहा कि मुझे बच्चे चाहिए ही, हम दोनों ऐसे ही ख़ुशी ख़ुशी ज़िंदगी गुजार सकते थे। लेकिन तुम को शायद मेरी ख़ुशी अच्छी नहीं लगी...चलिए कोई नहीं, आपने शायद जो किया अपनी समझ में अच्छा किया। हाँ मैं तुम को माफ़ कर चुका हूँ ...और तुम को अपने रिश्तों से आज़ादी भी दे चुका हूँ, दिल पर तो बस नहीं पर दिमाग से ये लेटर पोस्ट होते ही निकाल दूँगा तुम को जहाँ रहना खुश रहना और कभी भी मुझसे संपर्क करने की कोशिश न करना।” ये वही लेटर था जिसको शोभित अब पोस्ट करने जा रहा था।
शोभित भाई, तुम वही शोभित हो न ...एक लड़के ने डाक घर में उसको देखते हुए बोला, हाँ ...अबे राहुल तू ? कहाँ यहाँ तुम्हारा मतलब ? अरे मेरा यहाँ बिज़नेस है ...कुछ काम से यहाँ आया था।
और बता भाई क्या हाल चाल, कहाँ हो आज कल ..क्या कर रहे हो? राहुल भाई बहुत लम्बी स्टोरी है, कहीं नहीं हूँ आज कल बस कुछ हिस्सों में पाया जाता हूँ। बड़ी बड़ी बातें हैं तुम्हारी भाई...चलो आओ थोड़ा कहीं बैठ कर बात करते हैं। दोस्तों से इंसान जो नहीं भी बताना चाहता है वो भी बता देता है, अब राहुल सारी कहानी समझ चुका था और उसने शोभित को बोला भाई अब जो हो गया हो गया, नयी शुरुआत कर ..ज़िंदगी है आगे बढ़ना ज़रूरी है...समय अपना मलहम खुद लगाएगा, चल मेरे साथ मिलकर काम कर..मुझे भी अच्छा लगेगा। मुझे पता है तेरी वजह से मेरा व्यापार एक नयी ऊंचाई तक पहुंच जायेगा।
बाबा जी की बातों से शोभित को एक नयी ऊर्जा मिल चुकी थी, उसने राहुल से बताया भाई...ज़रुर वह उसके साथ काम करेगा मगर साथ में यह समाज के लिए कुछ करना चाहता है, इसलिए वह कुछ समय सामाजिक कार्यों में भी देना चाहता है। अरे तो इसमें क्या भाई...दोनों भाई मिलकर सामाजिक काम करेंगे, शनिवार और रविवार दो दिन तो पूरी तरह से खाली ही रहेंगे और अब तो 2 लोग हो जायेंगे तो कुछ काम होगा तो मिलकर हो जायेगा, हाँ भाई..मैं चाहता हूँ जो लोग जेल जाते हैं फिर वापस जब रिहा होकर आते हैं तो उनको समाज जल्दी अपनाता नहीं है..सिर्फ बड़े बड़े लोगों को समाज सर आँखों पर रख लेता है...फिर वो चाहे सलमान खान हो या संजय दत्त या कोई नेता ...आम इंसान के लिए जेल जाना मतलब समाज से निष्काषित होना है और जो जेल के अंदर रह कर आते हैं वो मानसिक अवसाद का भी शिकार हो जाते हैं उनकी काउंसिलिंग की तरफ भी कुछ करना चाहता हूँ, ठीक है भाई....तुम को जो सही लगे वो करना चल अब घर चल।
3 साल हो गए हैं राहुल और शोभित का काम काज बहुत अच्छा चल रहा है ...और शोभित का सामाजिक काम उसको आस पास के लोगों में बहुत प्रसिद्धी दिला रहा है।
रविवार का दिन, शोभित आज कुछ झूठे दहेज़ के मुकदमों से प्रताड़ित लोगों से मिलने जाने वाला है ...वहां पहुंच कर वह उन लोगों से बात करना शुरू करता है कि अचानक उसकी नज़र प्रभा पर पड़ती है जो कुछ और लोगों से बात करने में मशगूल है। वह देख कर अनदेखा करता है और वहां से जाने की सोचता है, पर वह क्यों भागे वहां से? उसने कौन सा गुनाह किया है या गलती की है जो वह प्रभा से नजरे चुराए ? दिल की धड़कने हमेशा तेज हो ही जाती हैं जब वह इंसान मिलता है जिसके लिए दिल की धड़कने कभी न कभी बेचैन रही हों।
शोभित की नजरे कई बार चुपके चुपके प्रभा की तरफ चली ही जा रही थी....एक दो बार प्रभा की नज़रों से उसकी नज़रे टकराई भी।
वह जिसने खुद मेरे ऊपर दहेज़ का झूठा मुकदमा लगाया था, आज वह दहेज़ के झूठे मुकदमों की वजह से परेशान लोगों की सहायता कर रही है ..ऐसे कैसे? अब तक तो इसने दोबारा शादी कर ली होगी तभी तो उसने मांग भर रखी है, हज़ारों ख़यालात शोभित के दिमाग में आने जाने लगे।
क्या करना चाहिए, उसको प्रभा से बात करनी चाहिए ? नहीं अब तो सब खत्म, क्या करेंगे उससे बात करके जल्दी जल्दी वह वहां का काम खत्म कर पास की एक चाय की दुकान पर चला गया ...कुछ देर सकूँ से बैठने का नाटक करते हुए, उसने एक कप चाय का आर्डर कर दिया।
हेलो शोभित ..कैसे हो..प्रभा की आवाज़ ने उसको चौका दिया, मैं बढ़िया ...आप कैसे हो, बढ़िया हूँ...माफ़ी चाहती हूँ.. आपसे...मैंने आपका जीवन ख़राब कर दिया। उसके लिए मुझे आपसे सॉरी बोलना था, मगर सिर्फ यूँ ही हर रोज आपका नाम लेकर सॉरी बोलती थी, बस यही दिली तमन्ना थी कि एक बार आमने सामने मिलकर आप से माफ़ी मांग सकूं, आज उस भगवान की भी बहुत शुक्र गुजार हूं जिसने मेरी ये बात सुन ली। कोई बात नहीं प्रभा ..हम भी ज़िंदगी में सब भुला कर आगे निकल चुके हैं, रात गयी बात गयी, आपके माफ़ी मांगने से वो सब वापस नहीं आ जाएगा, तो अब माफ़ी मांगने का मतलब भी नहीं..जबकि मैंने आपको पत्र लिख कर ही बता दिया था कि मैं आपको माफ़ कर चुका हूँ, ये पत्र ...प्रभा ने वही शोभित का लिखा हुआ पत्र शोभित को दिखाते हुए बोली। अरे ये आपके पास अभी तक है...मुझे लगा कि शायद ये डस्टबिन में अपनी ज़िंदगी जी कर नया जीवन ले चुका होगा, हाँ ये मेरे पास ही है और रहेगा ...इस लेटर ने मेरी वो ऑंखें खोली कि मेरी दुनिया ही बदल गयी, मुझे अपने परिवार से बगावत भी करनी पड़ी ... मैं इसी शहर में अपने बेटे के साथ रहती हूँ ...एक बच्चे को गोद ले लिया था। तब से उसी को अपने जीने का आधार बना कर अपनी जिंदगी जी रही हूँ, मैंने वह किया है आपके साथ, कि मुझे माफ़ नहीं किया जा सकता है भगवान भी माफ़ नहीं करेगा।
आपके इसी पत्र को आधार बनाकर मैंने अपने आगे की ज़िन्दगी जीने की सोची, वो औरते जो दहेज़ का मुकदमा करती हैं उनके पास मैं जाकर पता करने की कोशिश करती हूँ कि वो कहीं झूठा मुकदमा तो नहीं लगा रही, उनको अपनी कहानी सुनाती हूँ मिलकर सब सुलझाने की कोशिश करती हूं ..आपके द्वारा लिखा गया पत्र दिखाती हूँ...समझाती हूँ, और उसके बाद की ज़िंदगी के बारे में आईना दिखाने की कोशिश करती हूँ।
कई बार विचार आया कि खुद खुशी कर लूं पर मुझे लगा की दुनिया बहुत छोटी है आप कहीं न कहीं एक बार अवश्य मिलेंगे, आपको ढूँढने की बहुत कोशिश की, पर मेरी तलाश आज खत्म होनी थी ....शायद बिना आपसे माफ़ी मांगे मैं मर भी नहीं सकती थी।
शोभित कैसे पूछे की ये सिन्दूर या चूड़ियां किसके नाम की पहन रही हो? मेरी तलाश क्यों? जब मैं कुछ था ही नहीं तुम्हारे लिए...
चाय का प्याला भी खाली हो चुका था वैसे ही जैसे कभी कभी दिल खाली खाली सा हो जाता है।
प्रभा अपनी धुन में बोलती ही जा रही थी, तुम को लग रहा होगा की ये सिन्दूर क्यों? मैंने दूसरी शादी कर ली होगी? है न? हाँ मैंने दूसरी शादी की है लेकिन तुमसे ही ...तुम्हारे नाम की ही ये सिन्दूर है ये चूड़ियां हैं, मुझे ये भी पता है की तुम मुझे कभी नहीं अपनाओगे लेकिन फिर भी ये ज़िंदगी जिसने आपकी ज़िंदगी में ग्रहण लगाया था। आपके नाम के ही सूरज की रौशनी में रहना चाहती है, हाथ जोड़कर बस ये विनती है ...कि आगे भी मुझसे यूँ आँख न चुराना हाँ आप मुझे सजा देना चाहे दे सकते हैं...जो चाहे ....मैं कोई सवाल जवाब तक नहीं करूंगी । मैं होता कौन हूँ किसी को सजा देना वाला, शोभित फुसफुसाया ...मैं अपने कुछ राय चन्द्र रिश्तेदारों के चक्कर में आकर बहक गयी थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ..मेरे मना करने के बाद भी आप पर मुकदमा किया गया ...मुझ में उतनी हिम्मत नहीं थी की मैं अपने परिवार के विरोध में कड़ी हो पाऊं। मुझे किसी ने ज्यादा कुछ न बताया, घर में जब आपकी चिट्ठी आयी तो उसको चाचा जी ने छुपा दी थी, ये भगवान की मेहरबानी है कि ये मेरे हाथ लग गयी। फिर मुझे सब समझ आया कि ये मैंने क्या कर डाला, आप से दूर होने के बाद जैसे हमारे घर पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। पापा मम्मी का एक्सीडेंट में निधन हो गया था, भाई की शादी हो गयी और वह अमेरिका चला गया नौकरी के सिलसले में। चाचा चाची मुझ को कुछ बताते नहीं थे, उन्होंने ही ये सब किया...मैं सबकी तरफ से आपसे माफ़ी मांगती हूँ हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। यह कहकर प्रभा की आँखों में आँसू भर आये, चलिए जो हुआ सो हुआ..अब ज़िंदगी को ऐसे ही चलने देते हैं शोभित बोला ....समय ने ये सब किया है। देखते हैं समय की झोली में अब क्या है हमारे लिए...प्रभा ने झुकी नज़रों के साथ कहा .. जैसे आप कहें वैसा ही होगा।
कॉफ़ी पिलायेंगे आप? प्रभा शोभित से पूछ्ती है। शोभित ...तुरंत दो कॉफ़ी का आर्डर कर देता है।