Prabodh Govil

Inspirational

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Prabodh Govil

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झंझावात में चिड़िया- 10

झंझावात में चिड़िया- 10

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कहते हैं कि इंसान को दुनिया में पैदा होते समय अपने पिछले जन्म की बातें याद होती हैं।

लेकिन कब तक?

कहा जाता है कि जब तक वो अन्न न खाए।

लेकिन जब अन्न खाना शुरू कर देता है तो सब भूल कर वो अपने इसी जन्म का हो जाता है।

यदि किसी को शुरू से बिना अन्न के पाला जाए तो क्या वो अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगेगा?

ऐसा कभी नहीं होगा कि कोई मां अपनी संतान को भोजन के बिना एक पल भी रहने दे। वो चाहे कहीं से भी, कैसे भी लाए, पर औलाद के मुंह में समय पर निवाला डालेगी ही!

अगर मां न हो तो?

तो फ़िर क्या। किसको पड़ी है कि बच्चे के पिछले जन्म की कहानी जाने। पिछले क्या, उस बच्चे की तो इस जन्म की कहानी भी खो जाती है, जिसकी मां न हो।

अजीब उलझन है।

कहते हैं कि जब औलाद अपने पैरों पर खड़ी होकर अपनी रोटी ख़ुद कमाने लगे तो नक्षत्र उसके नसीब का नक्शा अलग बनाने लग जाते हैं। उसके माता - पिता की कुंडली की पकड़ उस पर नहीं रहती।

प्रकाश पादुकोण की बड़ी बिटिया दीपिका अब देश के मशहूर मॉडल्स में जगह बना चुकी थी।

फ़ैशन और मॉडलिंग की दुनिया में रैंप वॉक का क्या महत्व होता है ये केवल वो ही समझ सकता है जिसने फ़ैशन रूपसियों और कामदेव से मोहक युवकों को ग्रीनरूम में देखा हो। दुनिया भर के ड्रेस डिजाइनर्स तथा ज्वैलरी हाउस इस कला या विज्ञान को ख़ूब समझते हैं।

दीपिका को देश की बेहतरीन और टॉप मॉडल्स के साथ रैंप वॉक का अवसर मिला।

लेकिन जल्दी ही दर्शकों ने ये भी भांप लिया कि ये कोई ऐसी मंज़िल नहीं है जहां पहुंच कर दीपिका के कदम ठहर जायेंगे। मानो ये कदम तो दुनिया की तमाम ऊंचाइयां मापने निकले हों।

अपने जिज्ञासु व्यक्तित्व और बहुमुखी प्रतिभा के चलते दीपिका का रुझान पॉप एल्बम के माध्यम से और बड़े दर्शक समुदाय से जुड़ने की ओर हुआ। उन्होंने 'जो सोचा सो किया और जो चाहा सो पाया' की तर्ज़ पर हिमेश रेशमिया के पॉप एल्बम "आपका सुरूर" में एक गीत "नाम है तेरा" की रेशमी आवाज़ पर अपने चेहरे और अभिनय का नगीना जड़ा।

जो भी देखे, झूमे... इसी साल शायद इसी फलसफे से उन्हें कन्नड़ के स्टार अभिनेता उपेंद्र के साथ एक फ़िल्म "ऐश्वर्या" मिल गई। जिन लोगों ने भी ये फ़िल्म देखी वो जान गए कि इस बहुमुखी प्रतिभा वाली सीधी- सादी लड़की के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है।

शायद कोई बड़ा मुकाम भी वहीं इर्द- गिर्द घूम रहा था किसी बड़े सितारे की खोज में!

दो हज़ार सात में एक धमाका हुआ।

हिंदी फ़िल्मों के तत्कालीन बेताज बादशाह शाहरुख खान की एक फ़िल्म "ओम शांति ओम" आई जिसमें किसी अभिनेत्री के लिए न केवल चुनौती पूर्ण दोहरी भूमिका की मांग थी, बल्कि वे एक ऐसे नए चेहरे की तलाश में थे जिसमें ताज़गी हो, आकर्षण हो और बेहतरीन अभिनय कर पाने की संभावना भी हो। पटकथा पिछली सदी की एक सितारा अभिनेत्री शांतिप्रिया की जिंदगी पर आधारित थी।

ये फ़िल्म दीपिका पादुकोण को हिंदी फ़िल्मजगत में धूमधाम से ले आई।

जानकारों की निगाह से देखें तो इस डेब्यू वाली फ़िल्म में पर्दे पर दीपिका की एंट्री याद कीजिए।

यदि आप एंटरटेनमेंट वर्ल्ड के प्रोग्राम ध्यान से और बहुतायत में देखते हैं तो एक ऑब्जरवेशन आपको करना चाहिए।

फ़िल्म के पर्दे पर दीपिका पादुकोण के साथ - साथ आप विश्वसुंदरी युक्ता मुखी का उनकी पहली फ़िल्म में डेब्यू भी याद कीजिए।

कुछ साल पहले मिसवर्ल्ड कॉन्टेस्ट के सेमी फाइनल राउंड में एक कंटेस्टेंट मिस लाइबेरिया के साथ एक हादसा हुआ था जिसकी वजह से वो डिसक्वालिफाई होकर प्रतियोगिता से बाहर हो गई थीं।

ये तीन उदाहरण आपको फैशन वर्ल्ड की ऊंच नीच बहुत बारीकी से समझाते हैं। पर जाने दीजिए, हम इस झमेले में क्यों जाएं?

सौ बातों की एक बात ये, कि विश्व की इस शिखर प्रतिस्पर्धा में जो बात प्रतियोगियों को गहरे और महंगे प्रशिक्षण से समझाई जाती है, वो दीपिका पादुकोण की चाल ढाल और व्यक्तित्व में कुदरती देन है।

उन्होंने अपनी पहली ही फ़िल्म से ऐसा सिक्का जमाया कि विशेषज्ञ उन्हें उसी समय से शाहरुख खान के समकक्ष खड़ी "लेडी ऑन द स्क्रीन" मानने लगे थे। उनमें भविष्य की एक महान अदाकारा देख ली गई थी।

कुछ तो फ़िल्म की कहानी में भी नयापन था। दीपिका का दूसरा किरदार उस अपने समय की दक्षिण की सुपरस्टार के पुनर्जन्म का था।

फ़िल्म कलात्मक और तकनीकी भव्यता से बनाई गई थी। मेहमान कलाकार के तौर पर एक कर्णप्रिय उन्मादी गीत में उस समय सक्रिय लगभग सभी फिल्मी सितारों को भी सम्मिलित कर लिया गया था जिससे फ़िल्म पूरे उद्योग का सम्मिलित राग जैसी बन गई थी। दर्शक ये सब देख कर खासे रोमांचित हुए थे।

दीपिका की चर्चा तब की नामचीन अभिनेत्रियों काजोल, प्रियंका चोपड़ा, विद्या बालन और ऐश्वर्या राय की तरह होने लगी थी।

दीपिका का आगमन एक और विशेषता लिए हुए था।

इस दौर में स्टार किड्स का बोलबाला था। ढेर सारे अभिनेता- अभिनेत्रियों के बच्चे फ़िल्म जगत में कदम रख रहे थे। इस पर भी दर्शकों में एक मिलजुली प्रतिक्रिया हो रही थी।

नई पीढ़ी जहां इसे पसंद कर रही थी वहीं पुरानी पीढ़ी इसे कोई अच्छी बात नहीं मान रही थी। पुरानी पीढ़ी ने अपने दिनों में इन स्टारों के माता- पिता को चमकते देखा था और वो इन बच्चों को अपने पेरेंट्स की तुलना में उन्नीस ही पाते थे। इसलिए पुराना दर्शक वर्ग स्टार किड्स से ज़्यादा खुश नहीं दिखाई देता था।

ऐसे में दीपिका एक विशेष दर्ज़ा रखती थीं। वे स्टार पुत्री अवश्य थीं किंतु वे अपने पिता की विरासत नहीं संभाल रही थीं बल्कि अपना मुकाम अपने दम पर बना रही थीं। इस तरह उन्हें स्टार किड्स को मिलने वाली ग्लैमरस नज़र का स्वागत तो हासिल हुआ पर "कलाकारों के बच्चे" कह कर मिलने वाली उपेक्षा या उदासीनता से उनका सामना नहीं हुआ।

इसी के साथ एक महत्वपूर्ण फैक्टर और भी काम कर रहा था। संसार भर में एकाएक भारतीय सौंदर्य का डंका बजना शुरू हो चुका था क्योंकि वर्षों से ऐसी सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भारतीय लड़कियों को कोई बड़ी सफ़लता न मिलने के बाद अचानक कई मिस यूनिवर्स, मिस वर्ल्ड, मिस एशिया भारत से लगातार चुनी गईं। ये सुंदरियां अपनी स्पर्धाओं के दौरान "आप जीतने के बाद समाज के लिए क्या करेंगी?" जैसे सवालों का चाहे कितना ही लच्छेदार जवाब देती आ रही हों, हकीकत में ये सब एक के बाद एक फिल्मी दुनिया में ही चली आ रही थीं।

भारतीय फ़िल्म जगत ने इस दौर में ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, लारा दत्ता, सुष्मिता सेन, युक्ता मुखी, दिया मिर्ज़ा आदि को एक के बाद एक फ़िल्मों में ही आते देखा। सुंदरता ने मानो सादगी और प्रशिक्षित अभिनय कला को उद्योग से बाहर निकाल फेंकने को क़मर कस ली।

यहां भी दीपिका सिकंदर सिद्ध हुईं। वे किसी ब्यूटी कॉन्टेस्ट के ज़रिए नहीं आई थीं, पर वे मॉडलिंग जगत की सुंदरता के सभी मानदंडों पर जांची- परखी ऐसी कुशल अभिनेत्री थीं जिसमें सौंदर्य जगत के सारे प्रतिमान एकसाथ जगमगाते थे।


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