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Gita Parihar

Drama

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Gita Parihar

Drama

जब आपको ईर्ष्या हुई

जब आपको ईर्ष्या हुई

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बात तब की है जब मैं मात्र चौथी कक्षा में थी। चौथी कक्षा में और ईर्ष्या के भाव होना! है ना विचित्र! आज जो पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे भी ऐसा महसूस होता है। मगर उस वक्त सचमुच मुझे ईर्ष्या हुई, ईर्ष्या के परिणाम स्वरूप एक खिलती हुई कली मुरझा गई।


वह हमारे साथ पढ़ती थी। एक बंगाली लड़की, बेहद खूबसूरत, उसका नाम हांसी था। वह हमसे उम्र में बड़ी थी। बला की खूबसूरत थी। ऐसा नहीं है कि मैं ईर्ष्यालु थी। ईर्ष्या के बीज मेरे साथ पढ़ने वाली सई पाटील ने बोए। उसने कहा, हमें कोई पूछता भी नहीं, सब इसके पीछे लगे रहते है। हमने उसके मां-बाप को जाकर झूठ - मूठ कहा कि वह स्कूल के नाम पर इधर-उधर भटकती है।टीचर्स भी उससे बेहद नाराज रहते है। उसके माता-पिता ने कोई खोजबीन करने की जरूरत नहीं समझी या कोशिश ही नहीं की। उसकी पढ़ाई छुड़ाकर उसे घर बैठा लिया। वे काफी गरीब थे। उसके अन्य भाई-बहन भी थे। अब हम देखते हांसी अपने भाई-बहनों को गोद में उठाए, उलझे बाल इधर उधर दिखाई दे जाती।


कुछ दिनों बाद पिताजी का ट्रांसफर हो गया। हम कहीं और रहने आ गए। एक बार फिर उसी पुराने मोहल्ले में जाने का योग बना। मुझे हांसी मिली मैंने देखा कि हांसी की मांग में सिंदूर है। उत्सुकतावश घर के अंदर चली गई, देखा कि सामने चश्मा लगाए डॉक्टर साहब बैठे है। डॉक्टर साहब को सारा मोहल्ला जानता था। पता चला कि हांसी का उन्हीं से विवाह हो गया था। वे कम से कम उससे 20 वर्ष या उससे अधिक बड़े रहे होंगे।तभी हांसी की मां गोद में एक बच्चा उठाए बाहर निकली, वह हांसी का बेटा था। 


उस दिन मुझे अपनी की हुई उस दुष्टता के बारे में सोच-सोच कर बेहद ग्लानि हुई। काश, हमने ईर्ष्या वश ऐसा ना किया होता! हांसी की पढ़ाई न छूटती, आज वह भी हमारी तरह पढ़ती - लिखती आगे बढ़ती।

हमारी उस एक गलती के कारण एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई थी। इस भूल के लिए मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी।


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