जादू
जादू
करतब
बचपन से ही जादू का खेल खेलते और देखते आए हैं। पी.सी. सरकार का जादू, के लाल का जादू।
सात बक्से में एक नाज़ुक सी सुन्दरी को तलवार से काट कर -बंद कर समुद्र में फेंकते और पास पड़े दूसरे बक्से से वो दो मिनट में ही आकर खड़ी हो जाती।
बचपन में यह सब तो आश्चर्य चकित करता ही था, खूब सारी तालियाँ बजाता ।बड़े होकर भी, चतुराई, और फुर्ती का जादू देख तारीफ़ करते हुए, मन नहीं थकता
बच्चों को चकित करने के लिए आज भी हम सभी कुछ न कुछ ट्रिक करते ही रहते हैं।मनोरंजन भी होता है, आश्चर्य भी, उत्सुकता भी बढ़ती तो है ही।
आज ‘के लाल ‘ के जादू का आँखों देखा हाल बता रही हूँ। बनारस केटाउनहॉल में चल रहे जादू के कार्यक्रम में हम सब ने शिरकत की।सामने के सोफ़े पर बैठे थे तो सब कुछ साफ़ नज़र आता था। जादूगर को आने में देर हो रही थी। समय से तीन घंटा लेट था। लोग कुर्सियाँ उठाने लगे तो अचानक मंच पर उदित हुआ और बोला—
“ कौन कहता है कि मैं लेट हूँ । घड़ी देखिए, ठीक शाम के 6 बजे हैं , मैं हाज़िर हूँ।”
सबने देखा, सब की घड़ी में, सच में 6 ही बज रहे थे। सब शांत हो गए।
अब जादूगर ने दो दर्शकों को मंच पर बुलाया ।
एक तो मेरे साथ मेरी विद्यार्थी गई थी( BHU की )उसका भाई गया तब शायद वह दसवीं में पढ़ता था और एक और कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति गया। जादूगर ने हाथ बढ़ाया , हाथ मिलाया, कैसे हैं? क्या नाम है? क्या करते हैं ?
पूछा । हाथ छोड़ कर दूसरे से हाथ मिलाने के लिए हाथ दूसरे के सामने ले जाने वाला ही था कि हम सबने देखा कि पहले वाला
हाथ हिला ही रहा है। तो उसने हँस कर कहा -
“ अच्छा और हाथ मिलाना है ? ओ के।” फिर हाथ मिलाया। ऐसा बहुत बार किया ।
फिर दूसरे से हाथ मिलाया हाथ छोड़ते ही वह भी वैसे ही करने लगा ।
पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था, ज़ोर से हँस रहे थे सभी मंच पर उपस्थित उन दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि जनता क्यों हँस रही है।
आज भी वह दृश्य याद कर हँसी आ जाती है। यह सम्भवतः 1972 की घटना है। जादूगरों की जादूगरी कमाल की हुआ करती थी। आज तो यह सब दुर्लभ है।
