इतिहास, शासकों का लिखा जाता है।
इतिहास, शासकों का लिखा जाता है।
कह रहा था उच्च शिक्षित कोई,
यही कि हम इतिहास में कमज़ोर रहे हैं।
उनके कहने का मतलब शायद यही है,
कि हम सब भूल जाते हैं।
कुछ भी याद नहीं रखते।
लेकिन ये भी सच तो है।
हमारा इतिहास, कतई कमज़ोर नहीं था,
इतना तो हमने भी सुना है, अपने बुजुर्गों से।
काफ़ी हद तक तो,
बात गलत भी नहीं लगती।
अशिक्षा के चलते, हम अंकित
ही कहां कर पाए थे ?
अपना इतिहास, किताबों के पन्नों पर।
कारण और भी हैं,
कि कई हजार सालों से
हम इंसान नहीं, गुलाम रहे हैं।
कौन लिखता है दासों और
गुलामों का इतिहास ?
सिर्फ़ यातनाएं और उत्पीड़न
तो सुने हैं गुलामों के मगर
इतिहास न देखे न सुने।
हमारे पूर्वज बेगार करते थे,
भोजन ही कहां मिलता था पेटभर।
नींद और आराम के नाम पर
मिलता था अमानवीय, असहनीय
और दमनकारी उत्पीड़न।
ऐसे में क्या कुछ स्मरण
रह पाता आपको ? कुछ भी
आज भी कुछ लोग शिकायत
करते हैं कि, हम पन्नों में न सही
मन में तो संजो ही सकते थे।
अपना इतिहास ,आखिर क्यों नहीं है हमारी स्मृतियों में कुछ भी ?
इसके जवाब में मैं तो यही कहूंगा..
हमें जो याद है, वो हमारा इतिहास नहीं
उत्पीड़न, नरसंहार, बलात्कार जो
पूरी तरह से रचा हुआ है हमारे मन मस्तिष्क
और इन आंखों के सूनेपन में ।
झांक कर देखो न ,दिखेगा भी।
देखो, देखो न इन आंखों में।
हमारी आजादी के समय तथा
गुलामी से पहले का इतिहास ।
जो था गौरवशाली और अमिट भी।
उस इतिहास को साजिश के तहत
या तो जला दिया या फिर गाढ़ दिया गया,
जमीन के नीचे काफी गहरा।
खोदोगे, हर जगह मिलेगा,
मिलता भी रहता है अक्सर।
हजारों सालों की गुलामी से पहले
का इतिहास हम भूल ही
क्यों जाते हैं पता नहीं? यहां के शासक
और मूल निवासी पराक्रमी राजा....
हम ही तो थे।
हमारा इतिहास ,
हमने पूरी तरह से उकेरा हुआ है।
शिलालेखों की तरह हमारे दिमाग की गहराइयों में। देखिएगा , कभी हमारे मस्तिष्क के
अन्दर उकेरे गए उन शिलालेखों को।
लेकिन , गुलामी के बाद का हमारा इतिहास,
इतिहास नहीं दुःख है, दर्द है।
सिहरन सी भरता है, शरीर में।
आपने कभी नहीं देखी ,
हमारी पीड़ा, हमारी जलालत।
जब हम उनके पैर पकड़ गिड़गिड़ाते थे, भूख-प्यास लगी है यहां,
अपने पेट की तरफ इशारा करते थे।
तब, वो मारते थे ठोकर,
उसी स्थान पर, अट्टहास करते हुए।
जब हम चोट खाकर करते थे क्रंदन ,
चीत्कार , तो उनको मिलता था असीम आनंद।जूतों के तलों से यहां, कैसे-कैसे दबाकर बंद करते थे वो हमारे मुंह को। ताकि न निकले हमारी आवाज़, प्रतिरोध में।
सुनो । एक बात, अच्छा ही हुआ हमने नहीं लिखा हमारा गुलामी का दौर ,
कागजों के टुकड़ों पर अशिक्षा के कारण।
अगर सच में लिख देते न, तो .भीग जाते आपके सारे अंग-वस्त्र ,गरम-गरम आंसुओं से।
आपकी आंखें हो जाती लाल-सुर्ख और मोटी-मोटी। सांसों की बारंबारता पर
आपका नियंत्रण करना होता कठिन, सच में।
हृदय की पीड़ा की हूक को रोक पाना
अति दुष्कर होता , आप सबको।
भरभरा कर , आंखों से उष्ण,
आंसुओं की मोटी-मोटी बूंदें
आंखों के कोरों की बजाय
नाक के नथुनों से गिरती।हां, यकीनन,
यदि आप नहीं हैं, संवेदना शून्य।
जरूरत इसलिए भी नहीं थी,
लिखने की, अपना इतिहास।
क्योंकि सही में, गुलामों का कभी नहीं होता इतिहास। गुलामी कष्टदायक होती है।
जबकि स्वतंत्रता प्रदान करती है सुख-समृद्धि।
इसीलिए कभी आलस मत करना ।
चाहे कुछ भी करना पड़े ।
बचा लेना अपनी आजादी को
बेशक इसके लिए जीवन ही अर्पित करना पड़े, चूकना मत,पीढियां याद करेंगी,आपके संघर्ष को
मैं पुनः आगाह करता हूं ,
पिछले कष्टदायक अनुभवों के आधार पर,
बचा लेना अपनी स्वतंत्रता को।
ताकि भविष्य में हमारा अपना,
भी लिखा जा सके इतिहास।
स्वतंत्रता को सुरक्षित करना ,
इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि
हम जानते हैं, तुम कदापि नहीं झेल सकोगे ,
उन असहनीय पीड़ाओं, वेदनाओं और गुलामी की बेड़ियों वाली दिनचर्या को।
आजाद रहे तो इतिहास,तो कभी भी लिख लेंगे। लेकिन हमेशा याद रखना। इतिहास शासकों का लिखा है गुलामों का नहीं। सोच लेना शासक बनोगे या गुलाम ? और यही सत्य है,"इतिहास शासकों का लिखा है गुलामों का नहीं"।