इश्क़ ऑफ्टर मैरिज
इश्क़ ऑफ्टर मैरिज
मोहित, मैंने तुम्हारे लिए शॉपिंग की है,और सोच रही हूँ, इस बार शादी को सालगिरह घर पर ही मनाये।
मेरे हाथों का शाही पनीर पसंद है ना, अपने हाथों से खिलाऊँगी। और फिर हमारी पसंद की आइसक्रीम। मैंने सब सोच रखा है,अरे तुम सुन रहे हो न मोहित।
ये क्या पेपर्स है मोहित,पेंशन के है क्या ?
अरे नाराज हो क्या मुझसे। बहुत परेशान करती हूँ न तुमको, मेरे पतिदेव। तुम्हारे कान पकड़ के सॉरी भी बोल रही हूँ। क्या हुआ, कुछ बोलते क्यों नहीं हो।
सच में बूढ़े हो गए हो तुम।
सुगन्धा, मोहित से कहती हैं- तुम नाराज हो, जानती हूँ। मैं कोशिश करती हूँ न, एक अच्छी बीवी और पेशेंट होने की।
अच्छा सुनो। सुगन्धा गले लग जाती हैं, और धीरे से कहती है, रुला दिया न।
मोहित, सुगन्धा से कहता है- सुनो कुछ कहना था तुमसे।
पता है, पता है, क्या कहोगे मुझसे कि कितना बोलती हूँ मैं, ध्यान नहीं रखती अपना। यही ना।
कह लेना, डाँट भी लेना। मैं खाना लगा रही हूँ, पहले वो खा लो।
खाना खाते हुए, भिंडी तुमको पसंद है ना ,खाते क्यों नहीं ठीक से तुम।
मोहित- सुनो, बच्चों को इस बार नहीं बुलाते हैं, बस मैं और तुम। अब वो लोग दीपावली पर आयेंगे ही। जल्दी छुट्टी भी नहीं मिलती।
अगले दिन, मोहित बाजार जाकर सुगन्धा को फ़ोन करता है और कहता है, मैंने मेज पर कुछ पेपर्स रखे हैं, उन्हें पढ़ लेना।
सुगन्धा ने काँपते हाथों से,उन पेपर्स को उठाया और पढ़ने लगी।
उसमें टिकट थी, शिमला, मसूरीऔर ऊटी की।
और एक नोट था, बैग पैक कर लेना। ट्रैन आज शाम को ही है।
एक आश्चर्य और प्यार से घुली मुस्कान सुगन्धा के चेहरे पर फैल जाती है।
आज मोहित कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा था। उसकी फिक्र उसके हाव-भाव से छलक रही थी। जिसे सुगन्धा देख रही थी और समझने की कोशिश कर रही थी।
अगले 2 दिन बाद शिमला की हसीन वादियों में था । रात को ठंडी हवा चल रही थी।
सुगन्धा खिड़की के पास खड़ी थी। मोहित ने उसे पीछे से बाँहों में भर लिया। अपना चेहरा उसके कंधे पर टिका दिया और हाथों को अपने हाथों में जकड़ लिया और धीरे से बोला- शादी की सालगिरह मुबारक हो अर्धागनी जी।
सुगन्धा उससे लिपट गयी और अपना सिर मोहित के सीने पर रख दिया। ये सब क्या है मोहित।
मोहित, सुगन्धा से- मैंने इतने सालों में कभी ये नहीं पूछा,कि तुमको क्या चाहिए, तुम क्या सोचती हो। तुमने मेरा घर, मेरा परिवार और मुझे बखूबी सम्भाला।
बेशक तुम्हारी बीमारी ने तुमको कमजोर और थका दिया है लेकिन मुझे तो तोड़ कर रख दिया है सुगन्धा।
तब मैंने जाना कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ। तुमको खो देने के डर से ही मैं प्राण विहीन हो जाता था।
तभी सोच लिया था कि तुमने मैंने जो भी ख्वाब पहले मिल कर देखे थे। जिन्हें जिम्मेदारियों के बोझ के तले, भले ही वो उस समय पूरा न कर पाये हो।लेकिन अब जो भी समय हमारे पास हैं, उसमें मैं वो सभी सपने तुम्हारे साथ पूरा करना चाहता हूँ। उन ख़्वाहिशों को तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ।
मोहित ,सुगन्धा से कहता हैं-
"प्रेम शब्दों का मोहताज नहीं ये तो भावों का समर्पण है।"
सुगन्धा की आँखों में आँसू बह रहे थे।
सुनो इतना रोऊँगी तो टाइटेनिक वाला पोज कैसे दे पाओगी।
गुलाब देते हुए मोहित, ऐसे ही ले लो,घुटनों में बहुत दर्द है।
सुगन्धा हँसते हुए,
बूढ़े हो गए हो लेकिन आशिकी नहीं जायेगी।
जिस उम्र में तीर्थ घूमना चाहिए, उस उम्र में हनीमून मनाने आये हैं जनाब। तुम्हारी इच्छा तीर्थ की है,तो तीर्थ भी घूम लेंगे। पहले थोड़ा गुनाह कर लें।
पीछे कही गाना बज रहा था।
"तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है,कि अंधेरों में भी मिल रही रोशनी है।"
सुगन्धा तुम आत्मा बन गयी हो। जिसे मैंने कभी स्वीकार नहीं किया लेकिन अब मेरा हर पल तुम्हारे लिए है। और एक बोसा उसके माथे पर जड़ दिया, अपने अमर प्रेम का।