इंतज़ार
इंतज़ार
स्याह होती हुई शाम चेहरे पर पड़ रही झुर्रियां बहुत कुछ बयाँ कर देती हैं। जैसे कह रही हों कि अब क्या क्या होना, कैसे होना, क्या होगा जैसे बहुत से प्रश्न अन्तरात्मा को झकझोर देते है। पर आज मैंने वो सब किया जो शायद मुझे नहीं करना चाहिए था। आज वो सब कह भी दिया जो मेरे अंतर्मन को अंदर तक खा गया। करता भी तो क्या। अपने प्यार की खुशी के लिए, खुद बुजदिल कायर और ना जाने कौन कौन से लाँछन अपने सिर पर लिए जा रहा हूं उस दिशा में जो तय किया हमने अपनी मौत पर, अपनी मौत के बाद। ...

