सहज .

Tragedy

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सहज .

Tragedy

एक दिन

एक दिन

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शरद ऋतु का समय है। ठंडी हवा सांय सांय कर चारों ओर बह रही हैं। हर कोई इंसान चादर लपेटे हुए सिकुड़ कर बैठा है। वहीं दूर कुछ लोग गर्म कपड़े पहने आग के चारों ओर बैठे हैं और गीत गाकर मनोरंजन कर रहे हैं। यह नजारा अगर सामने हो और आप ठंड में ठंड रहे हों तथा कहीं जाने के लिए बस का इंतजार कर रहे हों तो आप कैसा अनुभव करोगे। यही बात मेरे मनोमस्तिष्क में उमड़ रही है।

कुछ दिनों पहले मैं भी इसी तरह ठंड में ठिठुर रहा बस का इंतजार कर रहा था और मेरे दिमाग में अजीब से धुनें घूम रही थी और मैं न चाह कर भी अपने मुंह को गुनगुनाने से नहीं रोक पाया। यह मेरे दोस्त राकेश का प्यारा गीत था जिसे वह अक्सर गुनगुनाता रहता था। उसे गाने के साथ मैं भी आज मन ही मन गुनगुना रहा था 'ऐ वतन ऐ वतन हम को तेरी कसम' बोल थे उसके। मेरा दोस्त या यूं कहें मेरे भाई जैसा ही था हम बचपन में एक साथ ही खेले पड़े और बड़े हुए। वो एक गरीब घर का लड़का ओर मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से था। इसलिए वह हमेशा नौकरी नौकरी करता और कहता कि मैं एक दिन फौज़ी बनूँगा ओर अपने देश का नाम ऊंचा करूँगा परंतु मैं हमेशा उसे टाल जाता व कहता कि तू मूर्ख फौज़ी कैसे बनेगा।और देखो आज उसे सेना में भर्ती हुए चार साल हो गए हैं ओर अगले वर्ष जनवरी में उसकी शादी है।

अचानक एक हवा के एक झोंके ने मेरा ध्यान तोड़ा ओर देखा कि बस आ गयी और मैं गीत गुनगुनाते हुए बस में चढ़ गया ज्यादा भीड़ ने होने के कारण मुझे खिड़की वाली सीट मिल गई और बस मंजिल की ओर चल पड़ी। ख्यालों में खोया कब जैसे स्कूल पहुंचा और दोस्त को न पाकर मैं उस बड़े पत्थर की ओर बढ़ गया जिस पर हम अक्सर बैठा करते थे। वहां पहुंच कर देखा तो वो पत्थर पर कुरेद रहा था। उसने बड़े बड़े अक्षरों में अपना नाम लिखा था तो मैंने उससे पूछा।

मैं - अरे क्या करे हो?

राकेश - दोस्त, अगर मैं कभी इस दुनिया से चला गया तो यह तुम्हें मेरी याद दिलाएगा।

मैं इस बात से बहुत दुखी हुआ और उसके गले लग कर बहुत रोया। उसने अपने उसी पुराने अंदाज में सब संभाल लिया, एक सिगरेट जला कर ओर बोला क्यों रोते हो। बस एक दूसरे से लड़के झगड़ते हम अक्सर यही करते थक जाते तो सिगरेट पी लेते।

मुझे कॉलेज का वो दिन याद आया जब हम दोनों एक किताब से पड़ते थे । उसे बॉक्सिंग और मुझे शतरंज़ का शौक था। परंतु हमारा साथ ऊपर बाले को भी गवारा ना था और हम अलग हो गये वह सेना में भर्ती हो गया और मैं रह गया अकेला अपनी यादों के साथ।

मैं खुश तो था पर दुखी भी था। खुश इसलिए कि मेरा दोस्त एक अच्छी राह पर चल पड़ा है पर वो मुझसे अलग हो रहा था इसका दुख ज्यादा था।

उसे तो जाना था इसलिए उसे हंसते हुए विदा कर हम जब आ रहे थे तो मैं उस पत्थर पर रुका तो ऐसा लगा कि मेरे दिल का एक हिस्सा टूट चुका है । कुछ देर रुकने के बाद अब मैने अंतिम बार सिगरेट पी तथा उस के नाम की आधी वहीं छोड़ कर घर की ओर निकल पड़ा।

बस मंजिल की ओर बढ़ रही थी और मैं यादों में खोया हुआ था। और वह क्षण याद आया जब उसका पहला पत्र आया ।

पत्र में क्या लिखा था उस की कुछ लाइनें कभी भी दिलो दिमाग से नहीं निकालती।

"मैं अपनी राह पर निकल चुका हूं और चलने की कोशिश कर रहा हूँ यहां का कठिन जीवन जी रहा हूँ यहां सब लोग अलग अलग जगह से हैं और अनुशासन में रहते हैं। दोस्त मुझे यहां के जीवन से प्यार हो गया है जैसे यह रिश्ता पिछले जन्म का हो। दोस्त मैंने कहा था न कि एक दिन मैं देश का नाम ऊंचा करूँगा।"

बस अपनी मंजिल की ओर बड़ी जा रही थी मेरे बगल में एक बृद्ध ब्यक्ति बैठे थे उन्होंने खिड़की बन्द करने का आग्रह किया तो यादों से बापिस आया देखा उन्हें ठंड से कंपकंपी छुटी हुई थी तो खिड़की बंद की और फिर उन यादों में खो गया और सीधा वह क्षण याद आया जब वह अपना प्रशिक्षण समाप्त कर पहली बार घर आया तो मैं आंखों से आंसू रोक नहीं पाया। आज हम दोनों फिर साथ थे अगले दिन फिर एक साथ कॉलेज गए और खूब जम कर बाकी दोस्तों के साथ बातें की। उसके बाद ऐसे ही सिलसिले चलते रहे ना जाने यह दिन कैसे गुजर गए। उसकी छुट्टी खत्म हो गई और वह अपनी पलटन में शामिल होने के लिए जा रहा था और हम सब दोस्त उसे विदा करने के लिए चल पड़े। उसे विदा करने के बाद मैं फिर उस पत्थर पर रुका, जहां हम दोनों बैठा करते थे।पर आज मेरा मन बहुत उदास था कारण कि मैं एक बार फिर अकेला था।

इतने में बस एकदम से रुकी अगर मैं संभलता न तो दाँत टूट गए होते। बस के आगे ट्रक और जीप के बीच टक्कर हो गई थी तथा रास्ता जाम हो गया था। सभी यात्री बस से निकल पड़े और सब की देखा देखी में मैं भी उतर गया और सहायता के लिए निकल पड़ा। ज्यादा कुछ न हुआ था बस दो तीन लोगों को मामूली सी चोटें आई हुई थी और बापिस बस में लौट आया। बस मुश्किल से एक घंटे की देरी से निकल पड़ी अब थोड़ी ज्यादा भीड़ भी हो गयी थी। अब बस जब कॉलेज से गुजरी तो कुछ और यादें साथ हो ली। जब राकेश दूसरी बार छुट्टी आया तो उसने और मैंने यहीं से परीक्षा दी थी और वह कितना खुश था। कालेज के बाद जब मैं नौकरी की तलाश में निकला तो तो उसने कहा था कि कोई बिज़नेस कर ले और तब से लेकर आज तक मैं नौकरी की तलाश में भटक रहा हूँ।

बस ने अब मेरे लिए आखिरी ब्रेक लगा दी मैं अपनी मंजिल पर पहुंच चुका था मैं आज पांच छः महीने बाद घर जा रहा । दिल किया तो आज चार साल बाद वही सिगरेट पान वाले से खरीद कर घर की तरफ चल पड़ा। जल्दी ही उस पत्थर पर पहुंच गया और फिर दोस्त की यादें साथ थीं। उसका नाम पत्थर पर चांदनी रोशनी में ऐसे चमक रहा था जैसे स्वर्ण अक्षरों में लिखा हो। आज चार सालों बाद में फिर सिगरेट पी रहा था। आधी पीने के बाद मैंने सिगरेट राकेश की तरफ बड़ाई जैसे वह मेरे साथ बैठा हो।परंतु वह तो अपनी सरजमीं के लिए सरहद पर पैहरा दे रहा था । अचानक से सिगरेट खत्म हो गयी और उसकी तपस मेरी उंगलियों को चुने लगी तथा मेरे हाथ से छूट पड़ी। आज पहली बार सिगरेट मेरी उंगली से छूट पड़ी थी जैसे ही वह नीचे गिरी आसमान से बिजली कड़क पड़ी तो मैं उठ कर घर की तरफ भागा जैसे मेरे दिल में कोई अनहोनी होने के आसार थे।दिल जैसे धड़कना ही बंद हो गया था।जैसे तैसे मैं दिल को संभालते में गांव पहुंचा वहां हलचल मची हुई थी।मुझे देखते ही जैसे सब के चेहरे सुख गए हो ऐसा लग रहा था कि जैसे सब की आंखें नम थीं। मैंने काका की तरफ देखा तो वो जोर जोर से रोते हुए कहने लगे ।

बेटा........... हमारा राकेश हमें छोड़ कर चला गया और सभी रोने लगे । मैं यह सुन कर स्तब्ध रह गया। मेरे सिर पर जैसे बिजली कड़क उठी हो। अनहोनी बात सच हो गयी थी। मेरे शरीर में जैसे प्राण ही ना बचे हों सारा सामान नीचे गिर गया था।मैं निर्जीव बस्तु बन कर जमीन पर गिर गया था। मेरी आँखों में आंसू थे पर गिरने का नाम नहीं ले रहे थे।

मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो रहा था क्योंकि मेरे दोस्त ने अपने बचन को पूरा कर दिया था। वह देश के लिए शहीद हुआ। आज भी मेरा सिर गर्व से ऊंचा उठता है। लेकिन दोस्त की याद आते ही आंखें नम हो जाती हैं। मेरा दोस्त अमर है वह देश के लिए जीया और शहीद हुआ।

आज उसका एक दिन आ गया वही एक दिन...

......।



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