इंतजाम
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राम और श्याम दोनो गहरे मित्र थे उनकी इस सच्ची दोस्ती के सभी कायल थे, बचपन से दोनों एक साथ पढ़े लिखे थे दोनों एक ही गाँव में रहते थे। राम जिसके पिता व्यापारी थे उनके पास खूब पैसा था इसलिए राम धन दौलत से अमीर था। जबकि श्याम जिसके पिता एक ग़रीब किसान थे दिन रात श्याम के माता पिता अपने खेतों में मेहनत करते थे जिसके कारण उनका गुजारा हो पाता था वे किसी तरह भी अपने बेटे श्याम को पढ़ा लिखा रहे थे वे अपने मेहनत पर विश्वास करते थे।
श्याम का दोस्त राम भी बहुत ही मेहनती था उसे तनिक भी अपने पैसों का घमंड नहीं था जिसके चलते राम और श्याम की आपस में खूब बनती थी श्याम ग़रीब होने के बावजूद भी राम की हर तरह से मदद किया करता था और राम भी जरूरत पड़ने पर श्याम की मदद किया करता था।
एक बार की बात है राम और श्याम के स्कूल में परीक्षा चल रहा था उनका स्कूल जो की गाँव से थोड़ा अधिक दूर पर था, इसलिए राम और श्याम अपने अपने साइकिल से स्कूल जाते थे लेकिन परीक्षा के दिन राम थोड़ा जल्दी निकल गया तो उसकी बीच रास्ते में ही उसकी साइकिल ख़राब हो गयी। राम ने बहुत कोशिश की उसका साइकिल ठीक हो जाये लेकिन तनाव की चिंता में उसका साइकिल ठीक नहीं हो पा रहा था और उसे स्कूल पहुचने में काफी देरी भी हो रही थी की इतने में उसका दोस्त श्याम भी अपने साइकिल से पीछे से आ गया और राम को देखकर तुरंत रुक गया।
और राम से सारा हाल पूछने लगा और जब श्याम को साइकिल ख़राब होने के बारे में पता चला तो श्याम ने तुरंत राम से कहा की यदि मेरे रहते मेरे मित्र को परेशानी हो तो फिर ये मित्रता किस काम की और इतना कहकर श्याम ने राम को अपने साइकिल ऐसे ही लेकर चलने को कहा और जब दोनों मित्र को कुछ आगे चलने पर नज़दीक गाँव में श्याम ने उसका साइकिल रखवा दिया और फिर दोनों एक ही साइकिल पर परीक्षा देने गये। इसके बाद तो राम ने श्याम से कहा की मित्र अगर तुम आज न होते तो मेरा परीक्षा छूट जाता इसके बाद राम ने निश्चय किया वह श्याम की दोस्ती को कभी नहीं भुलायेगा और वक़्त पड़ने पर श्याम के ज़रुर काम आयेगा, इस दिन के बाद से तो राम और श्याम की मित्रता और गहरी हो गयी।
समय बीतता गया राम और श्याम अब बड़े हो गये थे और राम अपने पिताजी के साथ शहर में अपने बिजनेस के सिलसिले में रहने लगा और उधर श्याम पैसों की कमी के कारण आगे की पढ़ाई न कर सका और अपने पिताजी के साथ अपने खेतों में व्यस्त हो गया जिसके कारण दोनों मित्रों का मिलना बहुत कम हो गया लेकिन दोनों एक दूसरे को कभी नहीं भूले।
एक बार की बात है श्याम के पिताजी जो की अब काफी एज के हो चुके थे और दिन पर दिन उनका सेहत गिरती ही जा रही थी तो
गाँव के डॉक्टर ने एडवाइस दिया की वह शहर में जाकर अपने पिताजी का इलाज कराये। लेकिन श्याम जो की हमेशा आर्थिक तंगी से परेशान रहता अब पिताजी की बीमारी से उसे और चिंता होने लगी थी की वह इतने सारे पैसे कहाँ से लायेगा और शहर में कहाँ इलाज कराएगा।
लेकिन पिताजी के गिरते स्वास्थ्य को देखकर उसे अपने पिताजी को लेकर शहर में जाना ही पड़ेगा ऐसा सोचकर अपने कुछ रिश्तेदार से थोड़े पैसे माँगकर अपने पिताजी को शहर ले गया और एक अच्छे अस्पताल में भर्ती करा दिया तो डॉक्टर ने बताया की उसके पिताजी के इलाज में लगभग लाख रूपये खर्च होंगे।
इतना सुनने के बाद मानो श्याम को साँप ही सूंघ गया हो वह यह सोचकर परेशान हो गया की अब वह लाख रूपये कहा से लायेगा अब तो श्याम को कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा था की क्या करे। वह डॉक्टर से यह बोलकर चला गया की उसके पिताजी का इलाज जारी रखे वह पैसों का इंतज़ाम करने जा रहा है।
उधर श्याम पैसों के जुटाने के चक्कर में गाँव वापस जाने लगा और इसी बीच राम को भी गाँव वालो से पता चला की श्याम अपने पिताजी के इलाज के लिए शहर में आया है तो वह श्याम से मिलने को बेचैन हो उठा और जल्द ही उस अस्पताल का पता करके राम वहां पहुँच गया और राम ने तुरंत इलाज के सारे पैसे डॉक्टर को तुरंत चुका दिए और कुछ पैसे श्याम के पिताजी को भी दे दिए और कम समय होने के कारण राम वहां से चला गया और जल्द ही वापस आने को कहा।
इसके बाद श्याम भी गाँव से कुछ पैसों का इंतज़ाम करके वापस अपने पिताजी के पास आया तो देखा की पिताजी का इलाज चल रहा है और डॉक्टर के सारे पैसे पहले से जमा हो चुके है तो उसके पिताजी ने राम के बारे में सब बातें बताई तो इतना सब सुनने के बाद श्याम की आंखे भर आई और इतने में राम भी वापस आ गया था और एक बार फिर राम और श्याम एक दूसरे से मिले तो श्याम ने राम से कहा, मित्र अब तुम्हारे पैसे कैसे चुका पाउँगा तो राम बोला यदि मुझे इन पैसों की जरूरत होती तो हम क्यूँ दूसरों को देते और रही बात चुकाने की तो मित्र अगर आज मैं इस अच्छी स्थिति में हूँ तो तुम्हारे कारण ही हूँ क्यूँ की अगर तुम उस दिन स्कूल के समय अगर नहीं किये होते या कोई भी मदद नहीं किया होता तो मैं Negative thinking में चला जाता और शायद आज यहां न होता।
और राम ने कहा की यदि हमे अपने मित्रता के बदले जो भलाई करते है उसके बदले हमे कुछ पाने की आस हो जाए तो वह भलाई नही एक तरह से व्यापार हो जाता इसलिए मेरे मित्र जहाँ मित्रता में निस्वार्थ भावना होती है वही तो सच्ची मित्रता होती है।
और इस प्रकार राम और श्याम ने एक बार फिर अपने सच्ची दोस्ती को सही तरीके से निभा दिए।