इंसान।

इंसान।

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आज शहर में दहशत का माहौल है। सब तरफ अफर-तफरी मची हुई है। दुकानें जलाई जा रही हैं, बसे फूंकी जा रही है। औरते और बच्चे घर में डर से थर-थर काँपते हुए दुबक गये है।

दो विपरीत परिस्थितियों के शिकार समुदाय की झड़प ने भयंकर युद्ध का रूप धारण कर लिया। इस नफरत ने अपनेपन और प्यार को खत्म कर दिया। बीस वर्षों की एकता पल भर में ही सदियों पुरानी दुश्मनी में बदल गई।

शहर में हुए दंगों के बीच एक औरत अपने बच्चे को लेकर किसी सुरक्षित जगह पर जाने की कोशिश कर रही थी। उसे डर था कि उसके बच्चे को कोई कुछ नुकसान ना पहुँचा दे। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका अपना घर, उसके अपने लोग उसके पड़ोसी जो कभी उसके लिए किसी परिवार से कम नहीं थे, आज उसी के खून के प्यासे हो रहे थे। रास्ते मे पड़ी हुई लाशें, जले हुए घर, रोते बिलखते लोगों की चीखें उसे अंदर ही अंदर दहला रही थी। उसने इंसान को जानवर मे तब्दील होते हुए अपने सामने देखा था। वो तो इस शहर में अकेली थी, कोई भी साथ नहीं था सिवाय उसके बच्चे और इन पड़ोसियों के। उसका पति उसे छोड़ कर जा चुका था। उसने अपनी गृहस्थी खुद ही बनाई थी पर आज उसे सब कुछ छोड़कर आना पड़ रहा था।

वो अपने बच्चे को अपने अंक में समेटे रास्ते पर जा रही थी तभी कुछ लोगो ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। वह डर से काँप रही थी लेकिन अपने बच्चे के लिए उसे मजबूत रहना था।

किसी ने उससे पूछा - तुम्हारा नाम क्या है?

उसने कुछ नहीं कहा। फिर कोई बोला,"देखो हम नहीं चाहते कि कोई हमारी तरफ का मरे इसलिये अगर जिंदा रहना चाहती हो तो हमें अपना नाम बताओ।

उसे पल भर को लगा कि बोल दे कि परदेसी हूँ लेकिन फिर उसने अपने बच्चे की तरफ देखा तो उसे एहसास हुआ कि अगर उसने झूठ कहा तो उसका बच्चा अपनी पहचान, अपना अस्तित्व हमेशा के लिए खो देगा।

फिर उसने जो कुछ कहा उससे दंगाइयों के हाथ जड़ हो गये। उसने कहा कि अगर आप इस तरफ के है तो आप मुझे मार सकते है और अगर आप उस तरफ के है तो भी आप मुझे मार सकते है क्योंकि मैं तो एक इंसान हूँ और मेरा घर इसी दुनिया में है।



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