ईश्वरीय न्याय
ईश्वरीय न्याय
ईश्वरीय न्याय
पूजा और प्रकाश । दो शरीर एक जान । जैसे धरती और आकाश । जैसे बादल और बिजली । जैसे दीया और बाती । जैसे सूरज और किरण । जैसे चांद और चांदनी । बिना पूजा के प्रकाश रह नहीं पाता और प्रकाश के बिना पूजा ऐसे तड़पती थी जैसे जल बिन मछली तड़पती हैं ।
पूजा , सौन्दर्य की साक्षात देवी । लगता है कि भगवान ने उसे फुरसत के क्षणों में बनाया था । उसे देखकर तो रति भी शरमा जाये । अगर आज उर्वशी , मेनका , रंभा , तिलोत्तमा , घृताची जैसी अप्सराएं पृथ्वी पर होतीं तो वे पूजा को देखकर उसकी सेविका बन जातीं । ऐसा स्निग्ध रूप जैसे दूध में हल्का सा सिंदूर घोल दिया हो । आंखें बड़ी बड़ी । जैसे सारे संसार को अपने में समेट लेंगी । प्रकाश उन्हीं में डूबा रहता था हरदम । छरहरा कोमल बदन । हलका सा भी निशान लग जाए तो निशान बेचारा गुनाहों के बोझ से खुद ही मर जाए । पूजा का सौंदर्य अलौकिक था । यदि वह मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भाग लेती तो निश्चित रूप से ताज उसी के सिर बंधता ।
प्रकाश , एक सामान्य व्यक्तित्व वाला मर्द । रंग रूप कुछ खास नहीं । डील डौल भी बिल्कुल आम आदमी की तरह था उसका । उसमें ऐसी कोई विशेषता नहीं थी जिसका जिक्र किया जाए । लेकिन उसका हृदय इतना विशाल था कि उसमें सारा जहान भी समा जाए । मन एकदम निर्मल जैसे बहता हुआ झरना । सबके दुख में दुख और सबके सुख में सुख महसूस करने वाले लोग आजकल बनते ही कहां हैं । लेकिन भगवान ने प्रकाश को न जाने किस मूड में बनाया था जो आज के जमाने में अप्रांसगिक सा लगता है । प्रकाश के अधरों पर सदैव मुस्कान विराजमान रहती थी । पूजा उसकी इसी मुस्कान पर फिदा हो गई थी ।
जब पूजा को देखने प्रकाश आया था तब पूजा के मम्मी पापा ने उसे रिजेक्ट कर दिया था लेकिन पूजा अड़ गई थी कि उसे प्रकाश से ही विवाह करना है । प्रकाश की मुस्कान में एक कशिश थी जो हर किसी को अपना बना लेती थी । बस, इसी से पूजा उसकी दीवानी बन गई थी ।
जब भी कभी प्रकाश ऑफिस से घर आता था तब पूजा एक गुड़िया की तरह दौड़कर उसके सीने से लग जाती थी । दोनों आनंद के सागर में गोते लगाने लगते थे । उनका प्रेम अलौकिक था । प्रकाश पूजा की आंखों में डूबा रहता और पूजा उसके सीने से लिपटी रहती थी । दोनों मस्ती में रह रहे थे और दिन पंख लगाकर उड़ रहे थे ।
लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था । जिंदगी इतनी सरल कहां होती है । प्रारब्ध भी तो अपनी उपस्थिति दर्ज करवाया है ना ! उसके बाहर जाने की कौन सोच सकता है । अच्छी खासी जिंदगी में अचानक भूचाल आ जाता है ।
पूजा और प्रकाश की जिंदगी में भी ऐसी ही उथल पुथल हो गई थी एक दिन । एक दिन अचानक एक दुर्घटना में प्रकाश की रीढ़ की हड्डी चकनाचूर हो गई । इसके कारण वह अपंग हो गया और उसे पैरेलेसिस हो गया। उसका गले से नीचे का भाग पूरी तरह सुन्न हो गया था ।
पूजा ने रात दिन एक कर दिया था उसका इलाज करवाने में । बड़े से बड़े न्यूरो सर्जन , स्पाइन स्पेशलिस्ट को दिखवा लिया लेकिन सबने हाथ खड़े कर दिए थे । अब कोई उपाय नहीं बचा था ।
दिन गुजरने लगे । पूजा पर दोहरा भार आ गया था । प्रकाश का इलाज करवाने और घर चलाने के लिए उसे नौकरी करनी पड़ी । वह प्रकाश को भी संभालती , घर और नौकरी भी संभालने लगी । वह जब भी प्रकाश के सामने आती तब अधरों पर मुस्कान लेकर ही आती थी लेकिन प्रकाश के अधरों से मुस्कान गायब हो गई थी । इसका पूजा को बहुत मलाल था लेकिन वह कर भी क्या सकती थी । वह प्रकाश को खुश रखने का भरसक प्रयास करती थी ।
एक दिन पूजा जहां काम करती थी , उसके मालिक ने पूजा से कहा
"मेरा एक दोस्त है जो अमरीका में न्यूरो का डॉक्टर है । वह भारत आ रहा है । यदि तुम उचित समझो तो तुम अपने पति को उसे दिखा सकती हो" ।
अंधा क्या चाहे , दो आंखें ! पूजा की बांछें खिल गईं । उसने तुरंत सहमति दे दी । अगले दिन पूजा की कंपनी का मालिक शुभांकर अपने दोस्त अमृत को लेकर आ गया । अमृत ने प्रकाश को अच्छी तरह देखा और कहा
"वैसे तो ठीक होने की संभावना बहुत कम है लेकिन बहुत मेहनत की जाए तो ये ठीक हो सकते हैं" ।
अमृत के इन शब्दों से पूजा जी उठी । उसने आवेश में आकर डॉक्टर अमृत का हाथ पकड़ कर पूछ लिया
"क्या ये ठीक हो जाएंगे" ?
पूजा के नर्म हाथों का स्पर्श पाकर अमृत फिसल गया । उसने पूजा जैसी लड़की आज तक कभी देखी नहीं थी । उसका रूप , उसका फिगर , उसकी आवाज , उसका स्पर्श और उसकी आंखें ! उफ्फ ! अमृत पागल हो गया । जैसे तैसे उसने खुद पर नियंत्रण किया और अपना मोबाइल नंबर पूजा को देकर कहने लगा
"आप इस नंबर पर मुझसे बात कर लेना । मैं आपको समझा दूंगा कि आगे क्या करना है" ?
पूजा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । वह अमृत के कदमों में झुक गई
"डॉक्टर ! आप मेरे प्रकाश को ठीक कर दीजिए । फिर, मैं आपकी भगवान की तरह पूजा किया करूंगी" ।
अमृत ने अपने कदम पीछे खींच लिए ।
"अरे , ये क्या कर रहीं हैं आप ? डॉक्टर भी इंसान ही होता है, उसे भगवान मत बनाइए" ।
पूजा की आंखों में ख़ुशी के आंसू थे ।
शुभांकर और अमृत दोनों चले गए । पूजा प्रकाश से लिपट गई । उसकी आंखों से खुशी के आंसू गिरने लगे । उसे खुश देखकर प्रकाश भी खुश हो गया । आज उसके होंठों पर पहली बार मुस्कान आई थी ।
अगले दिन पूजा ने डॉक्टर अमृत को फोन किया
"डॉक्टर साहब मैं पूजा बोल रही हूं । आपने कहा था बात करने के लिए । बताइए क्या बात है" ?
डॉक्टर अमृत ने कहा
"अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूं । क्या आप नौ बजे मेरे घर आ सकती हैं" ?
रात्रि नौ बजे का समय सुनकर पूजा थोड़ी उदास हो गई । लेकिन उसे प्रकाश का इलाज करवाना था इसलिए वह किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हो गई । उसने डॉक्टर को हां कह दिया । डॉक्टर ने अपने घर की लोकेशन भेज दी थी ।
ठीक नौ बजे पूजा डॉक्टर अमृत के घर पहुंच गई । बहुत आलीशान कोठी थी डॉक्टर अमृत की । एक नौकर आकर उसे अमृत के कमरे में ले गया । पूजा को देखकर अमृत बोला
"प्लीज़, सिट डाउन" ।
पूजा सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई ।
"अब बताइए डॉक्टर , मुझे क्या करना होगा" ?
अमृत थोड़ी देर खामोश रहा फिर पूजा के चेहरे को गौर से देखते हुए बोला
"मुझे ग़लत मत समझना पूजा ! भगवान ने तुम्हें फुर्सत से बनाया है । मैंने जब से तुम्हें देखा है , तुम्हारी सूरत मेरी आंखों में बस गई है । मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं" ?
अमृत की बात सुनकर पूजा खड़ी हो गई
"आपको शर्म आनी चाहिए डॉक्टर कि आप एक विवाहिता से ऐसी बातें कर रहे हैं ? छि: ! मैं तो आपको बहुत अच्छा व्यक्ति समझती थी लेकिन तुम तो लम्पट निकले । मैं जा रही हूं यहां से" !
पूजा जैसे ही जाने को मुड़ी , अमृत ने उसका हाथ पकड़ लिया
"रुको पूजा ! मेरी बात पूरी सुन लो पहले , फिर चली जाना । मैं कोई जोर जबरदस्ती करने वाला इंसान नहीं हूं । जैसा तुमने कहा है मैं वैसा लम्पट भी नहीं हूं । मेरे साथ सोने के लिए अच्छी अच्छी सुंदरियां तरसतीं हैं । मगर तुम्हारी बात कुछ और है । तुम स्त्री नहीं , परी हो । और मैं तुम्हें बस एक बार पाना चाहता हूं । तुम मेरी कमजोरी बन गई हो और प्रकाश तुम्हारी कमजोरी है । तुम चाहो तो हम एक डील कर सकते हैं । मैं प्रकाश को ठीक कर दूंगा बदले में तुम्हें ..." ।
पूजा बिफर गई और वह अपना हाथ छुड़ाने लगी
"बेशर्म आदमी ! मेरा हाथ छोड़ो । मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है" ।
अमृत ने बड़ी ढीठता से कहा
"पूजा , जिस तरह से पेट को भूख लगती है उसी तरह से पेट के नीचे के अंगों को भी भूख लगती है। तुमने साल भर से उस अंग को भूखा रख रखा है । उसे कुछ खिलाया पिलाया नहीं है । वह अंग बेचारा भूख प्यास से तड़प तड़प कर मर जाएगा ! माना कि प्रकाश अब वह भूख मिटाने में असमर्थ है लेकिन मैं उस अंग की भूख मिटा सकता हूं । इससे मेरी भूख भी मिट जाएगी और तुम्हारा काम भी बन जाएगा" ।
पूजा ने उससे कहा : प्लीज डॉक्टर , मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी । प्लीज , मुझे छोड़ो और जाने दो" ।
अमृत ने पूजा को छोड़ दिया । पूजा तेजी से घर से निकल गई ।
दो दिन बाद अमृत फिर प्रकाश के घर आया । अब पूजा उसके सामने आने में डरने लगी। अमृत प्रकाश का चैकअप करने लगा । इस बीच पूजा किचन में काम करने का बहाना करने लगी ।
प्रकाश का चैकअप करने के बाद अमृत पूजा के पास आ गया । अमृत ने कहा
"पूजा , मैं तुम्हारे सौन्दर्य का पुजारी हूं । मैं तुम्हारा दीवाना हूं । जब से मैंने तुम्हें देखा है , मैं सो नहीं पाया हूं । मैंने तो सपनों में कई बार तुम्हारे साथ रमण भी किया है । मुझे और कुछ नहीं चाहिए , बस तुम्हारी एक रात चाहिए" ।
पूजा सब समझ रही थी । प्रकाश को एक डॉक्टर की रोज आवश्यकता थी । अमृत से बढ़कर और कौन है जो उसकी सेवा करेगा ? उसे पैसा भी नहीं चाहिए । लेकिन उसकी डिमांड पूरी करने लायक नहीं थी । वह अपना शरीर उसे कैसे दे सकती थी । क्या इस संबंध में प्रकाश से बात की जाए ?
"हां , क्यों नहीं ! दोनों के बीच में छुपा क्या है ? प्रकाश क्या कहता है इस बारे में ? अब ये बदन उसका नहीं है बल्कि इसका स्वामी प्रकाश है । तो फिर इस बारे में प्रकाश को ही निर्णय करने दिया जाए" !
उसने अमृत से कहा कि वह इस विषय में प्रकाश से पूछकर कुछ कह सकती है ।
अमृत को बड़ा आश्चर्य हुआ कि प्रकाश इसकी इजाजत देगा क्या ?
थोड़ी देर में वह अमृत के पास आकर गर्दन नीची करके खड़ी हो गई और उसने अपनी साड़ी का पल्लू सीने से हटा लिया । अमृत समझ गया कि पूजा ने उसकी शर्त स्वीकार कर ली है । पर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि प्रकाश ने उसे इसकी अनुमति कैसे दे दी थी ? वह पति पत्नी के रिश्ते को ढंग से समझ ही कहां पाया था !
अब अमृत ने एक नई मांग रख दी । जो भी करना है प्रकाश के सामने ही करना है । उसकी उपस्थिति में ।
पूजा ने प्रकाश को फिर से सब कुछ बताया । प्रकाश ने इसकी भी सहमति दे दी ।
पूजा और अमृत प्रकाश के कमरे में आ गए। अमृत ने पूजा की साड़ी हटा दी और उसे 'किस' करने लगा । पूजा को ऐसा लगा कि उसके बदन पर सैकड़ों बिच्छू रेंग रहे हैं । उसका मुंह घृणा से भर गया । वह हड़बड़ाकर अलग हो गई ।
अचानक न जाने क्या हुआ अमृत धड़ाम से नीचे फर्श पर गिर पड़ा । उसके हाथ पांव सहित उसका पूरा बदन मिर्गी के रोगी की तरह कांपने लगा । उसके जबड़े भिंच गये थे और जीभ दांतों के बीच दब गईं थीं ।
उसकी हालत देखकर पूजा घबरा गई थी ।
उधर , प्रकाश भी यह दृश्य देखकर घबरा गया था और वह उसे बचाने के लिए पूरे वेग से झपटा । चूंकि वह पैरेलिसिस से पीड़ित था इसलिए वह बैड से नीचे गिर पड़ा ।
प्रकाश को बैड से नीचे गिरा देखकर पूजा भौंचक्की रह गई । वह जोर जोर से चीखने लगी । प्रकाश और डॉक्टर अमृत को इस हालत में देखकर वह विक्षिप्त हो गई थी । उसने हॉस्पिटल को फोन करके ऐम्बुलेंस बुलवा ली और दोनों को हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया।
डॉक्टरों की टीम उनका इलाज करने दौड़ पड़ी । प्रकाश को दस घंटे बाद होश आया। उसे अब अपने बदन में सुरसुरी सी महसूस होने लगी । उसकी उंगलियां चलने लगीं थीं । पैर भी हिल डुल रहे थे । अब उसके गले से नीचे का शरीर हरकत करने लगा था । उसके बदन में हलचल होने लगी ।
प्रकाश की यह हालत देखकर पूजा खुशी से उछल पड़ी और वह प्रकाश से लिपट गई । पूजा और प्रकाश की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । प्रकाश ने उसे अपनी मजबूत बांहों में कस लिया ।
"तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी , पूजा । ईश्वर भी यही चाहते हैं । आज मैंने ईश्वरीय न्याय देख लिया है । मेरा मन श्रद्धा से नतमस्तक है" ।
प्रकाश बिल्कुल ठीक हो गया मगर अमृत को लकवा मार गया था । वह हमेशा के लिए अपाहिज हो गया था । वह न बोल सकता था और न देख सकता था । जिन आंखों ने पूजा के सौंदर्य को देखा वे सदा के लिए बंद हो गईं । जिन हाथों ने पूजा के पवित्र बदन को छुआ वे हाथ निर्जीव हो गये । जिस जुबां ने पूजा के अधरों को छुआ वह मुड़ गईं । वह कोमा में चला गया था ।
ये कैसा चमत्कार है भगवन का । सतियों के लाज की रक्षा कैसे करते हैं भगवान यह पूजा के मामले में साक्षात नजर आ रहा था । पूजा और प्रकाश ने भगवान को लाख लाख धन्यवाद दिया । सच्चे लोगों की रक्षा करने वाली कोई तो शक्ति है इस दुनिया में । उसका एक ही नाम है , भगवान ! अमृत जैसे वासना के पुजारियों को भी दंड भगवान ही देते हैं क्योंकि भारत की न्याय व्यवस्था तो अपराधियों का ही ध्यान रखती है , पीड़ितों का नहीं । इस व्यवस्था से आम जन का मोह भंग हो चुका है । अब तो केवल भगवान से ही आस बची है ।
बोलो चमत्कारेश्वर महादेव की जय ।
समाप्त
हरिशंकर गोयल
"श्री हरि"
31.5.2025

