ई वी एम खेमे से...
ई वी एम खेमे से...
ये मशीन ने कितना इंसान बनाकर रख दिया है हम लोगों को। अक्सर सोचने को मजबूर हो जाता हूँ, ये मशीन जो न होती, तो क्या होता। आज मशीन है, तो वोट दे लेते हैं। एक बार नहीं, कई-कई बार दे लेते हैं। जो नतीजा दूसरे के पाले में चला जाता है, मशीन को दोष भी दे लेते हैं। मशीन चुपचाप सब सुन लेती है। सुन लेती है और सबकुछ समझकर फिर सबकुछ भूल भी जाती है। वरना कोई जो इंसान होता, तो फिर तो राम ही मालिक था इन चुनाव के फैसलों का।
भला कौन ऐसा इंसान मिलता, कि खुद पर इल्ज़ाम को सुनकर भी अपना काम पहले जैसा जारी रखता। एक बार जो चुनाव में धाँधली का इल्ज़ाम लग जाता, प्रभु स्वयं उसके पाले में आ जाता। इल्जामों की दया से खुद-ब-खुद वो इंसान अगले चुनाव में कुर्सी की दौड़ में खड़ा होने लायक यथावश्यक गुनाहगारी की काबिलियत के लायक हो जाता। विभिन्न पार्टियां, जिन्होंने पिछले वोट-दान के बाद जी भर कीचड़ से खूब लीपा-पोता होता उसके चरित्र को, खुद आगे आकर उसके साथ हुए अन्याय के लिहाज से उसे अपना प्रतिनिधि बनातीं। वो चुनाव में खड़ा होता। ई वी एम का खूब विरोध करता। पर चुपके-चुपके ध्यान भी रखता कि कहीं ई वी एम हट न जाये, वरना अगले चुनाव में फिर उसे भी अपने जैसा ही काबिल एक नया उम्मीदवार अपने मुक़ाबले में खड़ा सामने मिलेगा।
तो एक बार फिर से चुनावों में ई वी एम प्रथा जारी है, क्योंकि मशीनों की सच्चाई चुपके-चुपके ही सही, पर सच में इन्सानों पर भारी है।
