हत्यारे
हत्यारे
तुम कहते हो तुम हत्यारे नहीं, क्या खँजर से मारना ही हत्या होती है। क्या किसी का लहु बहाना ही हत्या होती है।
जब तुम किसी जानवर को अपने शौंक के लिए मारते हो क्या वो हत्या नहीं।
जब तुम किसी ग़रीब इन्सान को दुत्काराते हो, उसकी ग़रीबी का मजा़क बनाते हो, तब भी तुम किसी की हत्या करते हो।
जब तुम किसी की अनपढ़ता का मज़ाक बनाते हो, क्या वो हत्या नहीं।
माना तुम सुन्दर हो, बेहद खुबसूरत हो, लेकिन किसी साधारण रँग-रुप वाले का जब तुम मज़ाक बनाते हो, उसे बदसूरत कहते हो, क्या वो हत्या नहीं।
जब तुम किसी को अपने उँचे ओहदे के घमन्ड में छोटा महसूस कराते हो, क्या वो हत्या नहीं।
तुम कहते हो कि तुम हत्यारे नहीं
जब तुम दहेज ना दे पाने पर किसी ग़रीब बाप के घर से उसकी बेटी की बारात वापिस लौटा लाते हो, क्या वो हत्या नहीं।
जब तुम किसी को सम्मान ना दे कर के सरे-महफिल उसका अपमान करते हो, क्या वो हत्या नहीं।
जब तुम किसी के लिए अपशब्द बोलते हो,क्या वो हत्या नहीं।
जब तुमकिसी मासूम कली को खिलने से पहले मसलते हो, उसकी आबरू लूटते हो, क्या वो हत्या नहीं।
जब तुम पैदा होने से पहले ही किसी बेटी को कोख में ही मार देते हो, क्या वो हत्या नहीं।
जब बेटा पैदा ना होने पर किसी औरत को दोषी ठहराते हो, क्या वो हत्या नहीं।
जब तुम अपनी ही बहु-बेटी की निलामी करते हो, उनका सौदा करते हो, क्या वो हत्या नहीं और तुम कहते हो तुम हत्यारे नहीं।