हसरतें
हसरतें
कनखियों से झांकती सुनहरी जाने क्यों मुस्कुरा रही थीं...
फूलों की वेणी बनाते कभी पति को देख लेती, तो कभी फूल ले जाते प्रेमी युगल को ।
एक महीने पहले ही शादी करके माधव शहर लाया था सुनहरी को...
प्रेम का तो पता नहीं...
सिर्फ रात के प्रेम को प्रेम कैसे कहे।
नाम के अनुरूप सुनहरी, सुंदर काया मनमोहिनी कजरारी आँखें...
घूघंट को दाँतों से दबाये अपने काम में लगी रहती।
कभी दंतपंक्ति दिख जाती, दूधिया...
अपने सामने लगे फूलों के ढेर से फूल चुन - चुन कर किसी की सेज के लिए लड़ियाँ बनाती।
अचानक पति की निगाह उस पर पड़ी।
वो मगन हो उसी जोड़े को देख रही थी।
"क्या हुआ सुनहरी ? ध्यान कहाँ है ?"
"कुछ नहीं जी..."
"कुछ तो है बोलो, बोलो ना !"
"जी कुछ सोच रहे थे।"
"क्या, बताओ तो ? "
"ऊ देखिए ना कैसे बालों में फूल सजाये हैं, हम फूलों मे रहते हैं, सेज बनाते हैं और ईको बार अपनी सेज का बालों में भी फूल नहीं सजाये।
जब हम कुवांरे थे तो फिल्म में देखते थे ऊ हीरो हीरोइन के बालों में फूल सजाता हैं।
"चुप काहे हो गई और बता !"
"जी आप नाराज मत होईए, बस हम तो ऐसे ही कह दिये।"
चेहरा उतर गया सुनहरी का, शायद कुछ हसरतें थी जो बोल नहीं पा रही थी।
फूलों को पहुँचाना था सो माधव चला गया।
लगभग घर लौटने के समय ही वापस आया ।
कमरे पर पहुंचे तो दरवाजा खोलते ही सुनहरी की आँखें चमक उठी, खुशी और लाज से चेहरा लाल हो गया।
कमरा फूलों से सजा था...
आज फूलों के रंग उसके हाथो के अलावा उसके घर में भी महक रहे थे ।
"ई का है जी !" - चहकती हुई बोली।
"तेरी हसरतों को पूरा करने का पहला कदम।"
"प्यार कभी जताया नही तुझे, हीरो तो नही हूँ लेकिन ऊ से कम भी नहीं जो अपनी हीरोइन के बालों में फूल ना सजा सकूं।"
सुनहरी के काले बालों में सुर्ख गुलाब सजा दिया।
लाज से वह गड़ गई और मुँह छुपा कर माधव के सीने से लग गई ।