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Ashish Anand Arya

Drama

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Ashish Anand Arya

Drama

हर रिश्ते से परायी

हर रिश्ते से परायी

19 mins
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जिन्दगी अक्सर ही इन्सान को बहुत कमजोर मानकर उसके साथ तरह-तरह के मजाक करती रहती है। इसी जिन्दगी को जीने के हालातों तले इन्सान के सामने कई मकाम आते है। कभी-कभी हर लम्हा ही बहुत खास होता है, तो कभी कई-कई लम्हे बिना किसी अहसास के ऐसे ही गुजर जाते हैं। जिन्दगी हर जरूरत पर ही एक नया सा मोड़ लेती है और इन्सान उस हर बार पर जिन्दगी की बिसात का मोहरा भर बन कर रह जाता है। जिन्दगी के इसी सिलसिले में इन्सानी जरूरत की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए इन्सान ने खुद के लिए समाज ‘नाम‘ का एक पड़ाव खड़ा किया है। ये समाज ऐसा है, जो अपने जरिये से हर बार पर इन्सान की दूर-दूर तक बिखरती सोंच को एक सलीके में सहेजने की कोशिश में लगातार लगा रहता है। इसी समाज के अन्दर जिन्दगी को खुश रखने के लिहाज से जिन्दगी को चन्द बेड़ियों से बाॅधा गया है, जिनमें से एक का नाम ‘शादी‘ है।

शादी के सिलसिले को अन्जाम देने के बाद दो अजनबी एक-दूसरे के इतना करीब आ जाते हैं कि एक-दूसरे को समझना उनकी मजबूरी बनती जाती है। काफी कुछ ऐसी ही हालत छवि की भी हो रही थी। बचपन से आॅखों में सजाये लाखों सपनों के चलते उसे खुद के पैरों पर खड़ा होने का एक मौका जरूर मिला था। पर थी तो वो भी समाज के एक आम परिवार का हिस्सा ही ! माॅ-बाप के अरमानों ने आखिर में उसे शादी के इस पड़ाव पर ला खड़ा किया था। आज वो साहिल नाम के उस पति के साथ थी, जिसे समझने की मजबूरी हर बार पर उसे खुद को ‘हारा‘ जैसा समझने के लिए मजबूर करती जा रही थी। आज उसे महसूस हो रहा था कि वो सब, जिसे अक्सर ही जिन्दगी में उसने एक खेल के नजरिये से गुजार दिया था, वही सब आज उसकी हकीकत से खिलवाड़ कर रहा था।

बचपन से ही जरूरत के हर मोड़ पर सबसे खास किरदार अदा करने वाला नीर, शायद आज भी उसको सबसे अच्छा ‘दोस्त‘ था। शुरू से आज तक जब भी छवि को किसी कमी का अहसास हुआ, खुद के सारे सवालों का जवाब देने के लिए हर बार नीर उसे वहीं-कहीं अपने आस-पास ही नजर आया। पर आज जब उसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब वो चाहकर भी उसे अपने करीब कहीं भी नहीं देख पा रही थी। साहिल की शख्सियत से सामने आने वाला हर सच, उसके आज तक किये गये हर ऐतबार के लिए सिर्फ एक सवाल बन कर पेश आ रहा था। ख्वाबों में छवि ने जो भी सोचा था, अपने अरमानों के आॅचल में उसने जो कुछ भी सहेजा था, उस सबको ‘साहिल‘ नाम के इस शख्स की असलियत सिर्फ और सिर्फ एक गलतफहमी साबित करती जा रही थी और वो चाहकर भी कुछ भी नहीं कर पा रही थी।

फिर अब छवि क्या करने जा रही थी,

जानने के लिए जल्द ही आयेगा।

छवि तो हालांकि शुरू से ही शादी जैसे हर फैसले के बिल्कुल खिलाफ थी, लेकिन जब हकीकत की बेड़ियों ने उसे अपने आगोश में ले ही लिया था, तो उसने भी वक्त की जरूरत को समझने की कोशिश की थी। जिन्दगी में इसी समझौते के तहत उसने अपने आस-पास और इधर-उधर की चीजों को देख-टटोल कर, आने वाले मकामों के लिए चन्द नयी परिभााषाएं गढी थीं। ससुराल, पति, पत्नी, रिश्ते जैसी हर हकीकत के लिए उसने सोंच का एक अलग दायरा बनाया था। पर इस ससुराल में पहुॅचने के बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे दिन गुजर रहे थे, उसे ऐसा लगने लगा था, जैसे उसको सोंचने का नजरिया साहिल की हर जरूरत के हिसाब से बहुत छोटा था। इस नयी जगह पर हर फैसले के नतीजे में उसे अपनी आॅखों में केवल चन्द बूॅदें ही ईनाम में मिलती थीं। ऐसे में कटते हुए वक्त के बीच एक दिन आखिरकार उसे वापस अपने मायके आने का मौका भी मिला।

बचपन से अपनी रही उन गलियों में लौट कर, जैसे ही छवि ने खुद की ख्वाहिशों पर एक सवाल के साथ नजर डालने की कोशिश की, बचपन का वही दोस्त हमदर्द ‘नीर‘ एक बार फिर से उसके सामने खड़ा था। नीर को सामने देखते ही छवि की आॅखें एकदम से छलछला उठीं। जिसके लिए आज तक नीर खुद की हर ख्वाहिश और खुद को सवालों के कटघरे में खड़ा करता आया था, उस चेहरे को ऐसे बिलखता देख कर नीर से खुद को पल भर को भी न रोका गया। मौके पर वो अगले चन्द लम्हे सवालों और जवाबों के सिलसिले में ढलते चले गये-

‘‘तुम कहाॅ चले गये थे ?‘‘

‘‘मैं ! चला गया था ? ये तुम्हें क्या हो गया है ? ये क्या बोल रही हो तुम ? और ये अपनी क्या हालत बना रखी है तुमने ?‘‘

नीर के मुॅह से निकले सवाल छवि को पल भर में महसूस करा गये कि वो कितनी जज्बाती हो चली है। उसे अपने साथ घट रही हर हकीकत पता थी। पर उसके बिना बताये, नीर इन सब बातों को भला कैसे जान सकता था ! नीर को ये सब बताना जरूरी है, ये ख्याल अगले ही पल छवि के मन में था। जिन्दगी के वो नये सवाल अब छवि की जुबान पर थे, जिनका जवाब शायद नीर के पास भी दिल की गहराइयों में कहीं सिमटा हुआ था; लेकिन उसे जुबान पर लाने की हिम्मत दिखाने का उतना आजाद हौसला, उस एक सच्चे साफ हमदर्द दिल में ही था-

‘‘तुम तो कहते थे, शादी कर लो। खुद-ब-खुद जवाब मिल जायेंगे खुद-ब-खुद जवाब देने वाला मिल जायेगा।‘‘

‘‘ये तुम्हें क्या हुआ है ? क्या तुम्हें साहिल पसन्द नहीं ? हर बात तो वो कितने सलीके से कहता है। सभी से ही बड़ी तहजीब से बात करता है। सभी की फिक्र करता है। तो तुम्हारे साथ उसने ऐसा क्या बुरा कर दिया ?‘‘

‘‘बुरा कर दिया ! बुरा कर दिया जाता, तो भी अच्छा था। हर लम्हे पर तिल-तिल कर मरने से तो बहुत अच्छा है कि एक बार में ही जिन्दगी को ‘न‘ कह दिया जाये। पर यहाॅ तो न ‘हाॅ‘ कहा जाता है और न ‘न‘ कहा जाता है। उनसे पूछूॅ, तो क्या पूछूॅ ? हर बात के शुरू होने से पहले तहजीब, सलीके और करीने की रोक-टोक हर ख्वाहिश को बस चुप करा जाती है। ये सारे पति ऐेसे ही होते हैं क्या ? सारे पतियों के पास उनकी बीवियों के लिए, क्या ऐसी ही एक कायदों की लम्बी लिस्ट होती है, जिन पर ढलना बीवी का फर्ज होता है ? तुम भी तो एक मर्द हो न ! बोलो, तुम अपनी बीवी को किन-किन सलाखों के पीछे बाॅध कर रखोगे ? बताओ मुझे। कुछ बोलो न तुम ! इतना बोलते थे, आज भी बोल कर बताओ।‘‘

छवि के मुॅह से निकले इल्जाम इतने सारे थे कि उनको सुन कर पल भर में नीर के चेहरे पर खामोशी छा गयी। इससे पहले हमेशा ही पल भर में हर सवाल का जवाब हाजिर करने वाली नीर की जुबान आज जैसे कुछ सहम गयी थी। पर वो खामोशी भी सिर्फ चन्द लम्हों की ही मेहमान रह सकी। अपनी छवि के हर सवाल के लिए आज भी नीर के पास एक जवाब तो था ही, जिसे वक्त गुजरने से पहले ही, हमेशा मुसकुराते रहने वाले उन होठों का साथ भी मिल ही गया-

‘‘तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। तुम्हारे साथ बहुत ज्याददती की जा रही है। तुम्हें कभी तुम्हारे ख्वाबों को पूरा करने के लिए तुम्हारा चाहा वक्त ही नहीं दिया गया। तुम्हारी जिन्दगी का हर फैसला, हर बार दूसरों ने लिया। आज भी वही हो रहा है। जिस शख्स से तुम्हें जोड़ा गया, वो तुम पर बेवजह के हुक्म चला रहा है।‘‘ कहते-कहते नीर पल भर को चुप हो गया। खुद को घूरने लगी छवि की आॅखों में उसने भी घूरकर देखा और फिर दो कदम उसकी ओर आगे बढाकर करीब पहॅुचते हुए, एक बिल्कुल बदले लहजे में अपनी बात को शुरू किया-

‘‘अपने बारे में तुमने सच में बहुत सोचा है। पर क्या कभी तुमने उस शख्स के बारे में सोचा है, जो पूरा दिन काम करके चन्द पैसे केवल इस इरादे से कमाता है कि वो उससे अपना एक घर बना सके। वो घर, जिसमें हर चीज उसके मन-मुताबिक हो। अपना सबकुछ, अपनी मेहनत का हर कतरा गैरों की ख्वाहिश पर कुर्बान कर देने के बाद, अपनी ख्वाहिश को सच देखने का सपना हर जिन्दगी में सबसे खास होता है। वो पति, जिसने अपनी जीवन-संगिनी को हमेशा ही किसी खास अन्दाज में अपने ख्यालों में सॅवारा हो; वो जो अपनी पत्नी को हमेशा सबसे हट कर, सबसे खूबसूरत, सबसे अच्छा देखना चाहता हो; वो अगर अपने साथ जिन्दगी बसर करने वाली अपनी उसी ‘जरूरत‘ की जिन्दगी में कुछ वही ख्वाबी छेड़छाड़ करने की कोशिश करे, तो वो पति सचमुच में गलत है न ! क्यों ? तुम्हीं बताओ, वो गलत है न ? सबकुछ केवल उसकी ‘गलती‘ है !‘‘ एक सवाल पर लाते-लाते नीर ने अपनी बात खत्म कर दी।

नीर अभी भी छवि की उन आँखों में ही देख रहा था, जो सुनते-सुनते अब खुद को वो एक जवाब देने के काबिल मानने लगी थी। और फिर वो जवाब छवि की आॅखों में कुलमुला ही उठा। आँखों के कोनों पर भर उठी उन चन्द बूॅदों को अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछते हुए छवि के वो होंठ हिले-

‘‘ये तुम्हारा कहा, हर बार इतना सही क्यों होता है ! जिसे मैं कभी ख्याल में भी नहीं ला पाती, उसे तुम सोच कैसे लेते हो ? हाॅ, उनकी इस मजबूरी का ख्याल मैंने कभी नहीं किया। पर ये बात उन्होंने मुझे क्यों नहीं बतायी ? उन्होंने तो क्या, किसी ने भी मुझे नहीं बतायी। तुम्हें भी तो ये सब कुछ पता था और तुम्हें ही ये बात भी पता थी कि ये मुझे कैसे बताना है। तो फिर क्यों ? क्यों आखिर क्यों ये ऐसा होता है कि अक्सर ही अपनी जो हकीकत मैं खुद को समझा नहीं पाती, वो तुम्हें पता ‘‘ बोलते-बोलते ही नीर के उस चेहरे की ओर उठी वो आॅखें अचानक से कुछ ख्याल करके चुपचाप नीचे को झुक गयीं। पूरे कमरे में एकदम से खामोशी फैल गयी। खामोशी की वजह और उसका अंजाम दोनों ही कोई भी कहर बरपा सकते थे। इसीलिए उस खामोशी से ऐतराज जरूरी था। वही ऐतराज नीर के लफ्जों से अगले ही पल सामने भी आया, पर समझदारी के बेशकीमती जरियों में छिपा हुआ-

‘‘तो हमारे साहिल साहब हैं कहाॅ पर ? उनसे मुलाकात के लिए क्या एप्वाइन्टमेन्ट लेना पड़ेगा। हम भी तो दोस्त हुए उनके रिश्ते में, तो फिर इतना हक तो हमें मिलना ही चाहिए।

ये नीर आखिर क्या कहना चाह रहा था ?

छवि को क्या सीधे उसके मुँह पर एक तमाचा जड़कर ये पनप रही सारी परेशानी खत्म कर देनी चाहिये थी ?

नीर के लफ्ज पल भर में उसका इरादा जाहिर कर गये। इसलिए छवि के पास भी अब बोलने के लिए लफ्ज आ चुके थे-

‘‘वो अपने एक जरूरी काम से बाहर गये हैं और शाम तक ही लौटना होगा। खैर ये छोड़ो, तुम अपनी बताओ ! तुम्हारा क्या इरादा है ? तुम्हारी जिन्दगी में कोई गुंजाइश है या बस ऐसे ही लोगों के सवालों के जवाब देते-देते उम्र काटने का इरादा है ?‘‘

बातों का शुरू हुआ वो सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। कुछ पुरानी यादें ताजा हुईं, कुछ नये नगमे गुनगुनाये गये और वक्त काटने का वो तरीका घर से बाहर गये हुए छवि के माॅ-पिताजी के वहाॅ पर आने तक उसी तरह कायम रखा गया। बड़ों के कमरे में आने के बाद एक-एक कर के कई और रिश्तेदार बाहर से उस कमरे में आये और सभी की मौजूदगी ने आलम को रंगीन बना दिया। हर चेहरे पर खुशी मुसकुराने लगी। उसी चलते हुए सिलसिले में दिन के आसमान को रात के नीले रंग ने अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया।

वहाॅ, जहाॅ सबकुछ इस तरह खुशनुमा बातों के जरिये से गुजर रहा था, कुछ ऐसा भी था, जो बड़ी खामोशी से गुजर रहा था। सभी के बीच मुस्कुराती छवि अपने खामोश ख्यालों में डूबी थी। वो लगातार सोंच रही थी कि उसका वो दोस्त, आखिर इतना अच्छा कैसे हो सकता है ! आखिर कैसे कोई कि इतना सब कुछ होने के बाद इतनी आसानी से जज्बात की हर जुर्रत को छिपा सकता है ! हर किसी को बहुत कुछ करते हुए देखकर वो सबकुछ सोंचती रही और उसी के साथ सबकुछ घटता रहा।

रात के उस खिले हुए माहौल में आखिरकार उस शख्सियत ने भी अपनी मौजूदगी की दस्तक दे ही डाली, जिसका लोग जाने कब से इन्जतार कर रहे थे। साहिल नाम के उस शख्स से एक-एक कर के सभी को मिलवाया गया। दुआ-सलाम और परिचय की उन घड़ियों के दौरान ही मौके पर मौजूद लोगों ने अपनी अहमियत जताने के लिए अपनी-अपनी खासियत अपनी जुबान से बयान करनी शुरू कर दी। सुनते-सुनते आखिरकार उन सबका जवाब देने के लिए साहिल साहब भी अपने रंग में आ ही गये। ‘‘मैं ये हूॅ‘‘, ‘‘मैं वो हूॅ‘‘, ‘‘मैं ये कर सकता हूॅ‘‘, ‘‘मैं वो कर सकता हूॅ‘‘ ‘‘मैं वो करवा सकता हूॅ‘‘ और न जाने कितने और ऐसे ख्यालों से महफिल की वो रंगीनियत अहसासों के अजीब सिलसिले में तब्दील हो गयी। वक्त की उस घड़ी पर ये सब कुछ देखकर एक बार को तो नीर को भी अपनी उस छवि की तकदीर पर अफसोस होने लगा। पर उस कड़वे सच को इस तरह से बताकर वो अपनी उस दोस्त की आॅखों में एक बार फिर से आॅसू नहीं देखना चाहता था। इसीलिए उस वक्त वो खामोशी से मौके की हर हरकत को देखता रहा। बीच में एक-दो बार साहिल की नजर भी इस अलग दिख रहे खामोश शख्स पर पड़ी। लेकिन उस वक्त तक वो उससे अनजान ही था, इसीलिए अपनी तरफ से पहल करने की उसने कोई कोशिश न दिखायी।

होते-होते आखिरकार रात अपने आलम में गहरा चली। घर में आये सारे मेहमान अपने घरों को लौटने लगे। घर में जमी भीड़ कम हुई, तो छवि ने खुद नीर का परिचय साहिल से अपने एक दोस्त के तौर पर कराया। छवि और नीर के बीच तो बचपन से ही कभी कोई दूरी न रही थी, इसीलिए अभी भी उनका एक-दूसरे के करीब रहने का बर्ताव काफी-कुछ पहले जैसा ही था। वहाॅ मौके पर दोस्तों की नजदीकी की यही बात, उस नजारे को देखने वाले साहिल को अन्दर ही अन्दर काफी कुरेद गयी। लेकिन वो हालात कुछ ऐसे थे कि सबकुछ को एक तीखी नजर से देखने के बावजूद, लफ्जों से कुछ भी न बोल पाया।

वो अंधेरी रात भी और रातों की तरह गुजर गयी। अगले दिन सुबह-सुबह छवि ने साहिल से उसके साथ अपने शहर में घूमने की ख्वाहिश जाहिर की। साहिल ने बड़े रूखेपन से उसे इन्कार कर दिया। छवि को उस वक्त गुस्सा तो बहुत आया, पर नीर के बोले लफ्जों का ख्याल करके वो मन मारकर बैठ गयी। उसी शाम को परिवार के चन्द और खास लोग वहाॅ घर में जमा हुए, तो शुरू हुई बातों के दौर में छवि और साहिल के सामने उस घर से जुड़ी पुरानी बातों का जिक्र चल पड़ा। बातों ही बातों में एक मौके पर नीर का जिक्र भी हो आया। उस मौके पर छवि ने जिस तरह से सबके सामने नीर से जुड़़ी वो छोटी-बड़ी ढेरों बातें बतायीं, उन्हें सुनकर साहिल के अन्दर ही अन्दर उठे शक के ख्याल किन तूफानों में ढलते चले गये, उसे केवल साहिल ही जानता था।

दो-तीन दिन वहाॅ रहने के बाद दोनों पति-पत्नी वापस उस जगह को लौट गये, जिसे छवि अपने लफ्जों में ससुराल कहती थी। जिन्दगी में अभी भी सबकुछ पहले जैसा ही था, बस दिल के अन्दर कुछ बदलाव आ गये थे। दिल के बदलाव की उस सारी कशमकश को नजरों के सामने साफ-साफ केवल एक वक्त ही पेश कर सकता था। धीरे-धीरे वही वक्त गुजरता भी गया। नीर की बतायी हकीकतों पर खुद को ढालने की कोशिश करते हुए छवि हर बार पर हार कर बिखरती रही। हाॅ, कोशिशों में जुटी उस बेचारी को कभी ये पता न चला कि ये सब इस तरह से इतना ज्यादा उसके साथ जो हो रहा था, उसकी वजह काफी हद तक वही थी। वो नीर की कही बातों को साहिल से छिपाने की कोशिश में अपनी बातों में कभी-कभी खुद नीर का जिक्र कर देती थी। छवि के मुॅह से नीर का नाम सुनना हर बार पर साहिल के मन में नीर के लिए चिढ बढाता ही जाता था। मन की वही चिढ अक्सर साहिल की उल-जलूल और नाराजगी भरी हरकतों में ढल कर सामने भी आती थी, पर छवि वही बात समझ नहीं पाती थी और हर बार पर नतीजे में उसकी आॅखें चन्द आॅसुओं को ईनाम पा कर रह जाती थीं

कई महीनों तक एक-दूसरे को समझने की कोशिशों का वो दिखावा चलता रहा। लेकिन असलियत में उस एक लम्बे अर्से के बाद भी वो दोनों ही एक-दूसरे से उतने ही अनजान थे, जितने वो शादी के बाद पहली बार एक-दूसरे के सामने आने पर थे। और फिर जिन्दगी में आने वाले बदलावों की तर्ज पर एक दिन फिर से कुछ दिनों के लिए साहिल और छवि उस घर में आये, जिससे छवि की सारी बचपन की यादें जुड़ी थीं। साहिल को हर बार की तरह आज भी अपने कुछ जरूरी काम निपटाने थे। अपने उन्हीं कामों के सिलसिले में दिन की शुरूआत होते ही वो अकेले ही घर से बाहर निकल गया। घर में अकेली बैठी छवि अपनी पुरानी यादों से सजे कमरे में बैठकर वक्त काटने के जरिये ढूढने लगी। उसी वक्त पर जैसे ही नीर को उसके वहाॅ आने की खबर मिली, वो अपनी उस दोस्त को देखने के लिए सीधा उस घर में पहुॅच गया।

जब नीर ने उस घर की दहलीज पर कदम रखा, तो उसे छवि के खिलखिलाकर हॅसने का तो नहीं, पर कम से कम उसके उदास न होने का तो पूरा भरोसा था। आखिर उसने उसे दूसरे की खुशी में खुश रहने का खुद पर आजमाया हुआ मंत्र जो पिछली मुलाकात में दिया था। वही मंत्र जिन्दगी से बहुत कुछ चाहने वाली उस छवि को भी खुश रखने के लिए काफी था। पर आज शायद पहली बार छवि के बारे में नीर का सोचा हुआ ख्याल पूरी तरह से गलत था। साहिल से हुई मुलाकात पर उसने साहिल को जितना बेगैरत समझा था, उसकी वो सोच शायद काफी कम थी। वहाॅ कमरे में खुद पर किसी तरह काबू रखकर बैठी छवि, नीर को देखते ही बिलख पड़ी और दौड़ कर उसके सीने से लिपट कर रोने लगी। आज एक बार फिर से छवि की जुबान पर सिर्फ और सिर्फ सवाल अपनी बेकरारी में मचल रहे थे-

‘‘मैं खुद को कहाॅ तक तड़पने की इजाजत दूॅ ? उनकी किस-किस ख्वाहिश के लिए खुद को कहाॅ तक कुर्बान करूॅ ? अरमानों, ख्वाहिशों और समझौतों की ये फेहरिस्त तो मुझे किसी हद पर खत्म होती ही नहीं दिखती। और तो और जब मैं उनका कहा कर देती हूॅ, तब भी किसी भी जरिये से वो मुझे ये अहसास होने ही नहीं देते, कि मैंने कुछ किया भी है। नीर, तुम्हीं बताओ न ! आखिर उन्हें क्या चाहिए ?‘‘

सवाल ऐसे थे कि नीर ने उन्हें सुनकर और पूॅछा। जवाब में छवि पिछली मुलाकात के बाद से अब तक खुद के साथ हुई हर बात नीर को बताती चली गयी। बोलती हुई छवि के होठ जब हिलने बन्द हुए, नीर के चलते हुए दिमाग में फिर से बहुत बातें थीं। लेकिन आज शायद पहली बार उन्हें कहने के लिए उसके पास लफ्ज न थे। काफी देर तक वो खामोशी से छवि के उस सिसकते चेहरे को देखता रहा। हालातों से लाचार उस दोस्त ने फिर उस वक्त अपनी उस दोस्त के कन्धों पर हाथ रखते हुए पहले उसे अपने सहारे का भरोसा दिलाया और फिर बोला-

‘‘हर कोई वैसा नहीं होता छवि, जैसा हम चाहते हैं। ये हमारे साहिल साहब भी उन जुदा से लोगों में से एक हो सकते हैं। हो सकता है खुशियों के छोटे-छोटे सिलसिले की बजाय, वो सरप्राइज देने के शौकीन हों ! यानि जब तुम उनसे आस लगाना छोड़ दोगी, हो सकता है, उस वक्त पर वो एक साथ तुम्हारे दामन में इतनी खुशियाॅ लाकर समेट दें कि तुम उनकी शुक्रगुजार भर हो कर जाओ। और हो सकता है कि इससे भी ज्यादा कुछ हो जाये।‘‘

नीर के लफ्ज एक बार फिर से उसकी छवि को एक भरोसा दिला गये थे। पर आज नीर को खुद अपने बोले लफ्जों पर भरोसा न था। नीर का वो अहसास उस वक्त और पुख्ता हो गया, जब घर से बाहर निकलते हुए उसकी नजरें बाहर से अन्दर आते साहिल से मिलीं। जान-पहचान के इस शख्स से मेल-जोल के लफ्ज बोलने की बजाय, उसकी आॅखें इस कदर लाल हो उठीं, जैसे उनमें गुस्से के अलावा कुछ न हो। वो चुपचाप नीर को घूरते हुए घर के अन्दर चला गया।

उस दिन के बाद न तो नीर एक बार भी छवि के घर आया और न ही छवि की तरफ से उससे मिलने के लिए की गयी किसी भी कोशिश को उसने पूरा होने दिया। नीर की तरफ से दिखायी गयी इस बेरूखी से छवि काफी परेशान भी हुई। पर परेशान हो कर वो आखिर कर भी क्या सकती थी ! होते-होते आखिरकार नीर की बेरूखी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। अब छवि के मन में जो भी सवाल उठते, वो अकेली ही उनसे जूझती रहती और धीरे-धीरे उसने अपने सवालों के लिए जवाब तलाशना भी शुरू कर दिया।

अपने ससुराल में रहते हुए छवि ने हर परेशानी से बिना किसी सहारे के जूझने की आदत डाल ली। पर परेशानियाॅ तो फिर भी अभी भी उसी तरह कायम थीं। छवि जूझने का तरीका जान चुकी थी। पर साहिल से उसकी दूरी की वो मजबूरी, उनके बीच अभी भी उसी तरह मौजूद थी। खामोशी से गुजर रहे वक्त के उस सिलसिले में दोनों को आपस में करीब लाने के लिए अब किसी एक कड़ी की जरूरत थी। उन्हीं गुजरते हालातों में एक दिन अचानक नीर की तरफ से छवि के लिए भेजा गया एक खत उस पते पर आ पहुॅचा। साहिल की नाराजगी अभी भी दिल में अन्दर ही अन्दर उतने ही उफान पर थी। खत के उपर नीर का नाम पढते ही खत को छवि तक न पहुॅचने देने के लिए उसने खत को अपनी गिरफ्त में ले लिया और अकेले में जाकर उस पर लिखी गयी इबारत को पढने लगा-

‘‘मैंने तुम्हारे साथ जो भी करने की कोशिश की, वो जरूर बुरा था, पर खुद को हर बार तुमने जिस तरीके से हर गुनाह से बचाया, वो सचमुच काबिले-तारीफ था। मेरे लिए तुम जितनी अच्छी शुरू से थी, उतनी ही अच्छी आज भी हो। मानता हॅू, वो मेरी ज्याददती थी, जिसने तुम्हें मुझसे मुॅह मोड़ने पर मजबूर कर दिया। पर अब मुझे फिर से तुम्हारी जरूरत है। क्या तुम अपने अकेलेपन को अपने इस दोस्त से बाॅटना पसन्द करोगी ?‘‘

खत के ये सारे लफ्ज पढने के बाद साहिल को ये अहसास होने लगा, जैसे शायद उसने ही अपनी पत्नी को पहचानने में गलती की है। उस दिन पहली बार साहिल अपनी तरफ से छवि को खुद घुमाने के लिए बाहर ले गया। आने वाले चन्द दिनों में तो जैसे छवि की पूरी जिन्दगी ही बदल चुकी थी। और आज छवि को नीर के वो आखिरी लफ्ज याद आ रहे थे-

‘‘हो सकता है एक दिन वो तुम्हारे दामन में‘‘

आज छवि अपने दोस्त की इस बात को फिर से साहिल के सामने भी जाहिर करना चाहती थी। लेकिन साहिल के उस प्यार ने उसे इस बात का मौका भी न दिया।

खुशियों के उस भीने आलम में देखते ही देखते महीनों गुजर गये। सब कुछ बहुत अच्छे से गुजर रहा था कि एक दिन अचानक ही नीर का लिखा वो खत अलमारी के एक कोने से छवि की नजरों के सामने आ गया। खत को पढने के बाद छवि ने साहिल से बिना कोई बात किये, उससे अपने मायके जाने की बात कही। साहिल भी बिना कोई सवाल किये फौरन उसके साथ जाने को तैयार हो गया। चन्द घण्टों के सफर के बाद दोनों छवि के मायके में थे। वहाॅ साहिल को घर वालों के साथ अकेला छोड़कर, हाथ में खत का वही टुकड़ा छिपाकर छवि नीर के घर की ओर चल पड़ी। घर का दरवाजा खुलते ही नीर उसे सामने खड़ा दिखायी दिया। वो दौड़ कर उसके सीने से लिपट गयी। छवि के हाथों में थमा खत का वो कागजी टुकड़ा जमीन पर गिर पड़ा।

अभी दोनों दोस्त एक-दूसरे के आमने-सामने उसी तरह करीबी से खड़े थे कि तभी उस घर अन्दर से एक औरत निकल कर बाहर आयी। औरत का ध्यान सीधे उस कागज के टुकड़े पर गया, जिसे उसने उठाकर पढना शुरू कर दिया। कुछ घड़ी बाद जैसे ही छवि को उस जगह पर किसी और के होने का अहसास हुआ, उसने एक शर्म से सहम कर नीर को अपनी बाॅहों से अलग कर दिया। वहाॅ सामने खड़ी उस औरत के बारे में नीर उस वक्त छवि को सिर्फ इतना ही बता पाया कि वो उसकी पत्नी है। उस एक बात के बाद नीर आगे कुछ भी न कह सका, क्योंकि अब तक वो औरत अपनी आॅखों में छलक आये आॅसुओं को अपने हाथों में छिपाकर घर के अन्दर की तरफ दौड़ चुकी थी। ठीक उसी वक्त पर एक और शख्स ने उस घर की दहलीज पर कदम रखा। नीर के मुॅह से एक सहमी सी आवाज निकली-

‘‘साहिल !‘‘

सामने खड़े साहिल ने छवि से मौके का आखिरी सवाल किया-

‘‘क्या तुम्हें ऐसा दोस्त अभी भी चाहिए।‘‘

उस एक सवाल के बाद वहाँ किसी के मुँह से कोई आवाज नहीं निकली और जिन्दगी का सब कुछ रिश्तों की सलामती के नाम होकर रह गया।


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