होलिका दहन
होलिका दहन
जल्दी ही होली आने वाली थी और निहारिका इस बात को लेकर काफी परेशान थीं। उसकी दोस्त रीत भी वही बैठी हुई थी। वो निहारिका को परेशान देखकर बोली- “यार तू कब तक ऐसे ही डरती रहेगी? तू उससे भाग भी नहीं सकती क्योंकि तू किसी को कुछ बताना भी तो नहीं चाहती।”
निहारिका ने खड़े होते हुए कहा- “तुझे क्या लगता है कि मैं किसी को कुछ बताना नहीं चाहती, ऐसा नहीं है यार, कोई इस बात को नहीं समझेगा कि त्यौहार के समय पर कोई करीबी ऐसा घटिया काम भी कर सकता है। नहीं यार कोई मेरा यक़ीन नहीं करेगा।”
“तो तू क्या करेगी? पिछली बार तो कोरोना की वजह से तू बच गई लेकिन इस बार तो वो पिछले साल की कसर भी पूरी करने की कोशिश करेगा।” रीता परेशान थी।
निहारिका पिछले साल की होली की यादों में खो गई। चारों तरफ़ रंग बिखरा हुआ था। सब लोग आंनद में थे। निहारिका भी अपनी सहेलियों के साथ गुलाल खेलने में मग्न थी कि तभी किसी ने उसे पीछे खींच लिया और उसके साथ बदतमीजी करने लगा। जब बात निहारिका की इज्ज़त तक आई तो उसने हिम्मत करके किसी तरह उस इंसान के चेहरे पर पानी डाला तो सामने जो चेहरा आया उसे वो आज भी नहीं भूल पाई।
कुछ दिनो बाद जब आज फिर वही माहौल बना था कि वही आदमी फिर किसी लड़की को पकड़ कर कह रहा था- “पिछली बार तो तुम बच गई थी और एक साल कोरोना ने……….।”
"क्या कह रहे हो पापा? आपने फिर भांग पी ली।” उस लड़की के वहाँ से भागते ही निहारिका बोली- “क्या हुआ मामाजी? हाथ क्यो रुक गए? अगली बार मेरे करीब भी आए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा क्योंकि इस बार होलिका दहन मैं करूँगी।”