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rekha karri

Inspirational

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हमें लाचार मत समझो

हमें लाचार मत समझो

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मोहन सरकारी नौकरी करते थे। उनके बड़े भाई कृष्ण प्रसाद गाँव में ही खेती बाड़ी सँभालते थे। सरकारी नौकरी होने के कारण मोहन का हर तीन साल में तबादला हो जाता था इसलिए मोहन के माता-पिता कृष्ण प्रसाद के साथ ही रहते थे। मोहन के पास साल दो साल में एकाध बार चले जाते थे। दस पन्द्रह दिन रह आते थे। इसीलिए भाइयों के बीच यह तय हुआ कि खेती से आए हुए पैसों में से तीन हिस्से कृष्ण प्रसाद को मिले और मोहन को एक ही हिस्सा। दिन आराम से गुजर रहे थे। कृष्ण प्रसाद के दो बेटे थे। विशाल और विनोद !!दोनों पढ़ाई कर रहे थे। मोहन की दो बेटियाँ थीं वे भी शहर में पढ़ रहीं थीं। मोहन दो साल में रिटायर होने वाला था इसलिए उसका तबादला होम टाउन में हो गया। कृष्ण प्रसाद के घर से दो तीन घंटों का रास्ता था। अब तक बहुत बढ़िया था सब ठीक है तो हम यहीं रुक जाते पर आगे का हाल पढ़िए। 

कृष्ण प्रसाद रसोई की तरफ़ कॉफी माँगने गया तो पत्नी रमा तैयार खड़ी थी मोर्चा सँभाले। जैसे ही वह अंदर गया वह बोलने लगी अब तो आपके भाई यहीं आ गए हैं तो आपके माता-पिता को वहाँ भेज दीजिए। हम कितने साल उन्हें देखेंगे!!! मैं नहीं कर सकती अब देवर देवरानी ने अब तक बहु मज़े किए हैं। अब मेरे से नहीं होगा इतने लोगों को करना। कृष्ण प्रसाद ने कहा —मेरे माता-पिता अपना काम खुद ही कर लेते हैं ...तुम तो सिर्फ़ खाना बनाकर खिलाती हो और क्या कर देती हो उनके लिए ? 

आप तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैंने आज तक खाना बनाने के अलावा कुछ नहीं किया। अब मैं भी आराम करना चाहती हूँ।वैसे भी हमारे बच्चे भी पढ़ाई कर रहे हैं।पैसे कहाँ से आएँगे। कृष्ण प्रसाद को ग़ुस्सा आया भूलरही हो रमा आज तक हमें तीन भाग पैसे मिल रहे हैं और उन्हें सिर्फ़ एक भाग ही फिर भी इतनी शिकायतें। वह छोटा है उसकी दो -दो बेटियाँ भी हैं फिर भी उसने एक बार भी कुछ नहीं कहा ? 

हाँ -हाँ क्यों कहेगा। हम हैं न उनकी भी ज़िम्मेदारियों को सँभालने के लिए। हमारे बेटे हैं तो क्या उनकी शादियों के बाद भी उन्हें हमें ही संभालना पड़ेगा।हमारे बाद उन्हें कुछ देना भी तो पड़ेगा। वही लड़कियाँ हैं तो शादी करो और भेज दो बस। मुझे बहस नहीं चाहिए।आप क्या बोलते हैं ? क्या सोचते हैं ?मुझे नहीं मालूम।आपके माता-पिता को उनके घर भेजना ही है।बस कहे देती हूँ।कहते हुए पैर पटक कर जाती है। 

कृष्ण प्रसाद सोचते हुए अपनी पत्नी के पीछे कमरे की तरफ़ बढ़ता है। उसने देखा ही नहीं था कि माता-पिता ने उनकी सारी बातें सुन ली है। 

वासुदेव और रोहणी दोनों को उनकी बातों से बहुत बुरा लगा। कमरे में पहुँच कर रोहणी ने कहा देखा आपने बहू को !!!कितनी बातें बोल गई। मैंने उसके लिए क्या नहीं किया अपनी सारी मेहनत से इनके बच्चों को मैंने ही तो पाला था। 

वासुदेव ने कहा वैसे भी उसने ग़लत क्या कहा रोहणी दो बेटे हैं तो हमें दोनों के साथ रहना चाहिए था। छह महीने एक के पास और छह महीने दूसरे के पास रहते तो शायद किसी पर भी हम बोझ नहीं होते। आप भी ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं हम माँ बाप हैं।हमारा भी बँटवारा हो सकता है क्या ? रोहणी कलियुग क्या-क्या न दिखाए देखना ही है। चलो छोड़ो जो होगा देखा जाएगा। अब इसके बारे में मत सोचो। 

कृष्ण प्रसाद सोचने लगा कि भाई से कैसे बोलूँगा तभी रमा आती है और कहती है कि क्या सोच रहे हैं ? कब अपने माता-पिता को भाई के घर ले जाकर छोड़ेंगे ? कृष्ण प्रसाद ने कहा कल रविवार है न कल चला जाऊँगा और देख आऊँगा कि उन्होंने सामान जमा लिया है कि नहीं? रमा ने कहा देखकर आने की ज़रूरत नहीं है ? उन्हें भी साथ ले जाइए और उन्हें वहाँ छोड़कर आ जाइए। रमा ज़्यादा हड़बड़ी मत मचा खून के रिश्ते हैं !!काम तो आएँगे ही मैं धीरे से बात करूँगा। मेरा पति तो ऐसे कामों में बहुत ही धीरे है।इसलिए सब इनका फ़ायदा उठाते हैं ख़ैर!!!चलिए सो जाइए कल सुबह जल्दी उठना है।कहते हुए वह सो जाती है। सुबह जल्दी से उठकर कृष्ण प्रसाद ने नाश्ता किया और जैसे ही बाहर निकलने लगा कि सामने से मोहन को आते देखा। मोहन भाई आप !!!!!मैं आप ही के पास आ रहा था मोहन ने कहा -हाँ कृष्णा माँ पिता जी से मिले बहुत दिन हो गए।सोचा आज रविवार है तो मिल लूँ। रमा ने कहा नमस्ते मोहन जगति और बच्चे कैसे हैं? ठीक हैं रमा कल ही सामान आया है न उन्हें ही जमा रहे हैं। माता-पिता के पैर छूता है।उसने देखा हमेशा से हँसमुख रहने वाले पिता गुमसुम थे। रमा चाय लाने के लिए रसोई में जाती है।रोहणी कहती है बहू बच्चे सब कैसे हैं? बेटा तू अपना घर जमा ले फिर हम तेरे पास आएँगे।एक ही जगह रह -रह कर हम बोर हो गए हैं। वासुदेव ने सोचा बात इसने बहुत ही अच्छे ढंग से बेटे के सामने रखा है। मोहन चाय पीकर चला गया। इधर रमा और कृष्ण प्रसाद भी निश्चिंत हो गए कि चलो दस दिन में ये लोग जाएँगे। मोहन दस दिन के बाद आकर अपने माता-पिता को अपने घर ले जाता है। उन्हें देखते ही बच्चे उनका सामान उनके कमरे में रख देते हैं। जगति एक बार आती है चाय देकर हाल-चाल पूछकर चली जाती है। अपने कमरे में जाते ही पति पर चिल्लाते हुए कहती है ..इतने दिन जेठ जी के घर में ही थे हमारे आते ही उन्होंने इन्हें हमारे मत्थे मड दिया है। मैंने तो सोचा था कि रिटायर होने के बाद थोड़ा सुकून की ज़िंदगी जिएँगे पर नहीं उनसे तो हमारी ख़ुशी देखी ही नहीं जाती। जगति धीरे बोल माँ पापा सुन लेंगे इतने सालों से तो वे ही उनकी देखभाल कर रहे हैं न ? मुफ़्त में नहीं कर रहे थे ...पैसे भी तो ले रहे थे।अब इन्हें भेज दिया है तो पैसे भी देने के लिए कहिए। उनके बच्चों के लिए किया उनके बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया सारा काम ख़त्म कराकर जब वे कुछ नहीं कर सकते तब हमारे पास भेज दिया हुँह करते हुए सो गई। 

वासुदेव ने देखा कि यहाँ रोज़ सुबह शाम खाना ,नाश्ता सब समय पर मिल जाता है पर बहू बिलकुल बात नहीं करती।बच्चे कभी -कभी आ जाते हैं हेलो !हाय बोल कर चले जाते हैं। इसी तरह से कुछ महीने गुजर गए। एक दिन सुबह जब मोहन नहा धोकर अपने कमरे से बाहर आया तो देखता है !!!माँ पापा नहीं दिख रहे हैं क्योंकि रोज सुबह दोनों वाकिंग करके बैठक में पेपर पढ़ते रहते थे या आपस में बातचीत करते रहते थे।आज नहीं दिखे उसने जगति और बच्चों से बारी -बारी से पूछा एक ही जवाब था हमें नहीं मालूम है। जगति ने कहा -आजकल वे अपने कमरे से भी बाहर कम निकलते थे। आपके पापा तो हमेशा फोन पर किसी से बातें करते रहते थे। मोहन को डर लगा उसने भाई को फ़ोन किया कि आपके घर आए हैं क्या कहकर। कृष्ण प्रसाद के न कहते ही सब उन्हें ढूँढने के लिए भागे।सब जगह ढूँढ लिया पर नहीं मिले। हताश होकर सब घर पहुँचे और उन्हें लगा उनके कमरे को तो हमने देखा ही नहीं है ....भागकर वहाँ पहुँचे टेबल पर एक चिट्ठी मिली जिसमें कहीं का पता लिखा था और यह भी लिखा था कि तुम सब इस पते पर जाओ। 

बहुओं को ग़ुस्सा आया।यह क्या बात हुई कामधाम छोड़ कर इनके पीछे भागें पर विषय को जानने की इच्छा भी थी ...पते पर पहुँच गए पूछताछ कर ऑफिस रूम में पहुँच गए देखा तो वह एक गेटेड कम्यूनिटी का रिटायर मेंट होम थे। बहुत सुंदर जगह थी।

ऑफिस में माता-पिता दोनों बैठे थे वासुदेव ने कहा मैंने बहुत पहले ही अपनी जायदाद के तीन हिस्से कर दिया था। आप दोनों अपने -अपने हिस्से ले लीजिए मेरे हिस्से से मैंने यहाँ एक छोटा सा घर खरीद लिया है। अब मैं और रोहणी यहीं रहेंगे।यहाँ पर सारी सुख -सुविधाएँ हैं।हमारे ही आयु के लोग यहाँ रहते हैं।कभी आना चाहो तो आप लोग आ सकते हैं। हम अपना अंतिम समय अपनी इच्छा से बिताना चाहते हैं। आप अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जियो। हमारे बाद इस घर को हम इन्हीं के सुपुर्द कर रहे हैं ऐसे लोगों के लिए जिनके पास पैसे न हों और उन्हें ज़रूरत हो। बच्चों के बहुत समझाने पर भी वासुदेव टस से मस नहीं हुए अंत में हारकर बच्चे वापस अपने -अपने घर चले गए। वासुदेव जी ने यह दिखा दिया कि माता-पिता कभी लाचार नहीं होते। 


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