हमारा गाँव

हमारा गाँव

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 "सच" क्या कहा आपने, फिर से कहिए।" कहा डॉक्टर चरण ने आश्चर्य प्रकट करते हुए। "यस् मैं जो भी कह रहा हूँ यह सत्य है चरण। इस गाँव आए हुए बीस वर्ष बीत चूके। उस गाँव से कोई भी जान लेवा बीमारी का शिकार बनकर आज तक कोई मेरे पास नहीं आया। बस छोटी मोटी बीमारी जैसे बूखार, सर्दी, खाँसी, सरदर्द, लेकिन अब तक किडनी, दिल या लिवर संबंधित बीमारी के कारण कोई मेरे पास इलाज के लिए नहीं आया।" इस प्रकार डॉ. हरि बड़ी उत्सुकता से बता रहे थे। डॉक्टर चरण को ये सारी बातें बड़ी अजीब लगी। वे सुदिर्घ आलोचना में डूब गए थे। इन्हें आश्चर्य हो रहा था कि अचानक डॉक्टर हरि की इन बातों ने उनकी आलोचना को तोड़ा । "उस गाँव का निवासी किसी भी जानलेवा बीमारी के कारण मृत्यु का शिकार नहीं बनता, बल्कि सहज मृत्यु व अधिक उम्र के कारण उसकी मृत्यु होती।" डॉक्टर चरण द्वारा गहरी सोच से निर्णय लिया गया।                          

वह एक छोटे से शहर का प्राइवेट अस्पताल।  उस गाँव के साथ आसपास के छोटे बड़े बीस गाँवों के लिए यही एक पास वाला अच्छा अस्पताल था। गाँवों में रहने वाले लोगों की सेवा करने का महान आशय होने के कारण डॉक्टर हरि अपना अस्पताल उस गाँव में खोला और प्रसिद्ध डॉक्टर का नाम भी मिला।डॉक्टर हरि की दोनों संतान पढ़ाई में सफलता प्राप्त कर विदेश में अपने आप को बसा लिया। अपने बाद इस अस्पताल के संरक्षक की चिंता में उन्हें डॉक्टर चरण के रुप में आशा की किरण दिखाई दी। उन्होंने भी डॉक्टर हरि जैसे अरमानों को अपने में पनपा रखा था। वह एक युवा डॉक्टर था। डॉक्टर चरण को उस गाँव की विशेषता जानने की उत्सुकता होने लगी। उस गाँव का नाम था महादेवपुर।                                                            


"आप क्या काम करते हो।" स्तेथोसकोप को बच्चे के दिल पर रखकर जाँच करते हुए बच्चे के पिता से डॉक्टर चरण प्रश्न पूछ रहा था।                         

 "इस महादेवपुर से थोड़ी दूरी पर स्थित क्वारी मे  'डेली लेबर' के रूप में काम करता हूँ।" उसने समाधान दिया।             

 "अच्छा, बताओ कि आपके ग्राम वासी क्या क्या काम करते हैं।"                  

"दिन में सभी उस क्वारी में काम करते है, बाबूजी कुछ लोग अपने घर की खूली जगह या आँगन में साग-सब्जी के साथ फलों को भी उगाते है और कुछ लोग पान की दुकान व फिर कुछ लोग होटल चलाते हैं। साथ में मूर्गी पालन भी करते है। हमारी महिलाएं सिलाई कढ़ाई का काम करती हैं।"                         

"क्या आपके गाँव में बच्चे पढ़ने नहीं जाते, क्या पाठशालाएं नहीं है।" डाक्टर चरण ने दवाइयों की पर्ची पर लिखते हुए प्रश्न किया।                   

क्यों नहीं बाबूजी..... हमारे गाँव में बच्चों के लिए पाठशाला भी है और उनके खेलने के लिए बड़ा बगीचा भी है।"             

"अरे वाह! बढ़िया...... बताओ कि आप खाने में कैसा आहार लेते हो"                                       

 "बाबूजी हम सभी प्रकार का आहार लेते है जैसे हरि सब्जी, मछली, माँस आदि और हम तीनों बार भी भर पेट अपना आहार लेते है। कोई परहेज नहीं होता।" "तो फिर तेल का सेवन कम करते होंगे।" "नहीं-नहीं बाबूजी अगर सब्जियों में तेल की मात्रा कम हो तो निवाला हलक से उतरता ही

नहीं।"                   

"ठिक है, आपके बच्चे को मामूली सा बूखार है दो-तीन दिन इन दवाइयों का सेवन सुबह और शाम समयानुसार करोगे तो बूखार कम हो जायेगा।"  दवाइयों की पर्ची पर मामूली सी दो गोलियों के नाम लिखकर पर्ची उसके हाथ में थमा दिया।               

"ठीक है बाबू अब मैं चलता हूँ।" "अरे जय सूनो तो आपका यह गाँव कितने समय से है, क्या तुम इस गाँव में कुछ समय से आए हो या तुम्हारा जन्म यही हुआ है।"       

"मेरा जन्म तो यही हुआ है बाबूजी लेकिन मेरे दादा जी कहीं और जन्म लेकर यही आकर बस गए।" "मैं आपके दादाजी से मिलना चाहता हूँ। एक बार मैं तुम्हारे गाँव आना चाहता हूँ।"  "बाबूजी आप काहे कष्ट करें, मैं ही उन्हें आपसे मिलवाने लाता हूँ।

 "बाबू यह बहुत लंबे समय की बात है। मैं यह नहीं जानता कि हम कितनी दूरी पार करें..... हम जिस गाँव में रहते थे उस गाँव में पानी की कमी के कारण, वर्षा के अभाव के कारण खाद्यान्न की कमी के कारण हम दस लोग रात के समय समंदर में जहाज़ चढ़ कर कई दिनों तक इधर उधर घूम कर इस जगह आ पहुँचे। इस पहाड़ के निचली जगह पर स्थित क्वारी में काम कमाया और यही बस गए। उसके बाद कुछ लोग, उसके बाद कुछ लोग इस प्रकार उस गाँव की आबादी इस जगह बसने लगी। यही पर हमने थोड़ी ज़मीन ख़रीद कर खेती करने लगे। पहले हमने झोपड़ी बनाई उसके बाद पक्के मकान बनाया , साथ ही मंदिर बनाया। हमारे भगवान शिव होने के कारण हमने इस गाँव का नाम शिवपुरी रख लिया। कुछ दिनों के बाद एक महर्षि आए। उन्होंने हमारे गाँव के लड़कों को जीवन जिने का सही मार्ग दिखा कर उत्साहित किया। जीवन का राज़ बताकर उनमें जीवन के प्रति उत्सुकता जगाई। उन नवयुवकों को अपने घर के आँगन में, खाली जगह पर फल व सब्जियाँ उगाने के लिए प्रेरित किया। उस महात्मा ने कुछ बीज भी दिए। बाबूजी उस दिन से तो हमारे गाँव का नक्शा ही बदल गया। बच्चों के लिए पाठशाला बनाई, महात्मा हमारे बच्चों को शिक्षा देने लगे। कुछ लोग गाँव में ही रहकर छोटा मोटा व्यापार करने लगे। औरतें सिलाई कढ़ाई का काम करने लगी। बाबूजी इस प्रकार हम अपना जीवन खुशी से बिताने लगें।" जय के दादा इस प्रकार अपनी आप बीती बता रहे थे और डॉक्टर चरण उत्सुकता से सुनने लगे। जय के दादा जाने के बाद, सुदीर्घ विचार कर कुछ मेडिकल विद्यार्थियों का सहारा लेकर शिवपुरी पंचायत आँफिस से उस गाँव में अब तक मरने वालों की डेथ सर्टिफिकेट हासिल की और उसके सहारे उनके जीवन चर्या पर निरीक्षण करने लगे।          


निरिक्षण से आश्चर्य हुआ कि गाँव के किसी भी व्यक्ति को 80 साल की उम्र तक या उसके बाद दिल की बीमारी की कोई छाया ही दिखाई नहीं दी। उनका मरण सहज व मृत्यु का दर कम था। डॉक्टर चरण कुछ विचार कर अपने मेडिकल छात्रों को वहाँ की व उनके परिसर प्राँतों व उनके बंधुओं से बातचीत करने को कहा। वे सभी उनके खाने पीने व उनके पारिवारिक बंधुओं से बातचीत कर जाँच की। उनके परिक्षण से इस बात का पता चला कि वे कोई मघ्यपान का सेवन नहीं करते न कोई आत्महत्या, सर्वसाधारण जीने वाले शारीरिक व मानसिक यहाँ तक की किसी बिमारी का शिकार भी न थे। सामान्य खान पान का सेवन कर किसी पारंपारिक बीमारी का शिकार भी न थे। ना ही वे योगा करते ना ही कोई व्यायाम। सभी खाद्यान्नों का अच्छी तरह सेवन कर जीवन यापन करनेवाले थे। उनकी भौगोलिक स्थिति पर भी ध्यान देने पर सर्व साधारण परिणाम पाया गया। उनके रहस्य का पता ठीक ठीक लगाने के लिए डॉक्टर चरण ने अपना ठिकाना उसी शिवपुरी में कर लिया।             

अपने देश की राजधानी में मेडिकल काँनफ्रेंस का वह हाँल था। डॉक्टर चरण उस समावेश मे शिवपुरी के बारे में भाषण दे रहे थे। "Dear Doctors सच में शिवपुरी एक अद्भुत मिसाल देने वाला गाँव है। यह हमारे लिए सबक है। वहाँ के लोग अधिक से अधिक समय तक एक दूसरे के साथ बातचीत कर साथ निभाते हैं। गली मुहल्ले में जो भी मिलता उनसे हँस कर बात करना, एक दूसरे के सुख दुख में भाग लेना यही उनका स्वभाव होता था। उस गाँव में सभी बड़े परिवार थे। तीन से चार पीढ़ियों के लोग मिलकर प्रेम से रहना, घर में दादा दादी की बातों को सुनना, उनकी सलाह का मन रखना, सब साथ मिलकर भोजन करना, सप्ताह में एक दिन सभी लोग मंदिर जाकर पूजा-पाठ में भाग लेना। किसी एक पर समस्या आने पर सभी मिलकर उस समस्या को सुलझाना, साथ ही एक दूसरे की सहायता करना। किसी एक के घर में कोई भी समस्या हो या खुशी का माहौल हो एक दूसरे की सहायता मिलती इस बात का भरोसे वाले भाव उनके चेहरे पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते थे।  उनको धरोहर के रूप में सहज स्वभाव से जीना, मित्रता निभाना, इस आधुनिक युग के तनाव से दूर उनका व्यवहार था। हम सदैव निरोगी रहने के लिए क्या करें, क्या खाए, किस बात पर ध्यान दे, कितना व्यायाम करें इस बात पर अधिक ध्यान देकर अधिक अस्वस्थता को गले लगाकर सुदिर्घ बीमारी का शिकार हो रहे है। वे ग्राम वासी इन सब चिंताओं से दूर सहज जीवन, मैत्रिक व्यवहार कर लंबी उम्र व सहज मरण को प्राप्त कर रहे है। उनके मुख पर सदैव प्रेम व अपनेपन की भावना कूट कूट कर दिखाई देती है। आप भी इस शिवपुरी जाकर देखिए मैंने तो इसका आस्वाद किया है। गाँव के घर में कदम रखते ही तीन पीढ़ियों के लोग स्वागत करते, प्रेम भाग को व्यक्त करते, अपनेपन की भावना को पनपते रहते है। सभी साथ मिलकर भोजन करना, स्रियाँ घर का काम समाप्त कर शाम को अपने पतियों को क्वारी से थक कर आते हुए पतियों के लिए सजधज कर उनका प्रेम से बाट देखते दिखाई देती है। यह सब एक अद्भुत शक्ति का अदृश्य दृश्य दिखाई देता है।         

 इस प्रकार सभी शांतिपूर्वक इस भाषण को सुनकर आश्चर्य प्रकट करते हुए सुन रहे थे। इसी बीच डॉक्टर चरण अपना भाषण समाप्त कर स्टेज उतरते है।


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