Manchikanti Smitha

Drama

4.0  

Manchikanti Smitha

Drama

वृध्दाश्रम

वृध्दाश्रम

6 mins
464


शाम का समय, शांत वातावरण, सड़क के दोनों किनारे बड़े बड़े छायादार पेड़, ठंडी हवा चल रही थी। चारों ओर का वातावरण सभी के मन को प्रसन्न व उल्लासित करनेवाला था। लेकिन शर्माजी को ऐसे वातावरण में भी बेचैनी के साथ उनका मन उदास था। वे अपने बेटे सोहन के पास अमेरिका आए थे। क्योंकि उनको एक बेटा हुआ था। बेटा चाहता था कि दादी और दादाजी की देखरेख व परवरिश का अपने बेटे पर प्रभाव पड़े। ऐसे मन मोहक वातावरण में भी उनका मन अशांत व आँखों में पानी की लहरें उफान भर रही थी। वे सुनसान रास्ते से घर जा रहे थे। सड़क से घर ऊँचाई पर होने के कारण साफ साफ घर का नजारा देख सकते थे। बालकनी में मिसेस शर्मा (सुजाता) अपने पोते को गोद में उठाए खड़ी थी। पोता बड़ा प्रसन्न, अपनी दादी की गोद में किलकारियाँ भर रहा था।


शर्माजी दिल्ली के सरकारी कार्यालय में बड़े औहदे पर थे। उनकी पत्नी सुजाता भी काम काजी थी। दोनों को अपने बेटे सोहन की जिद के सामने झुकना पड़ा व वे दोनों अपने अपने बॉस से छुट्टी की प्रार्थना करने पर उनकों अनेक उलझनों को पार करने पर बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिली और वे दोनों अपने बेटे के पास चले गए। वहीं से पेड़ रूपी समस्या की जड़े फैलने लगी। दो तीन दिन ठीक रहा। उसके बाद वह छुट्टी का दिन था। सब साथ बैठकर खाना खा रहे थे, तभी सोहन के फोन की घंटी बजी। सोहन अंग्रेजी चाल में अपने मित्रों से बात कर रहा था। उसका इस प्रकार बात करना देख शर्माजी बहुत खुश हुए। उन्हें अपनी परवरिश व अपने बेटे पर गर्व महसूस होने लगा। तब सोहन अपनी बात समाप्त कर अपने पिताजी को निहारते देख कहता है कि "पापा क्या हुआ! आप ऐसे क्यो देख रहे हो?" 


"तुम्हारे पापा को तुम्हारी अंग्रेजी भाषा पर गर्व हो रहा है।" सुजाता ने कहा। 

"मैं ही तो इसे प्रतिदिन अंग्रेजी सिखाया करता था। उसी का प्रतीरूप आज देख रहा हूँ।" शर्माजी ने बताया।


"पापा आपने नहींं मैंने अंग्रेजी सीखा है। आपकी अंग्रेजी इतनी पक्की कहाँ।" इसके साथ अपने चेहरे पर व्यंग भरी मुस्कान के साथ अपना भोजन समाप्त किया। शर्माजी और सुजाता दोनों एक दूसरे का मुंह देखकर चुप रह गए। यह शुरुआत थी।


एक दिन सुजाता सोफे पर बैठकर पत्तियों वाली सब्जी ठीक कर रही थी कि फोन की घंटी बजी वह उसके माँ का काल था। वह बातें करते बरामदे जा खड़ी हुई। बातों का सिलसिला लगभग 40 मिनट चला। अंत में माँ से बात खत्म कर अंदर आई ही थी कि उसी समय अपने कमरे से सोनाक्षी बाहर आकर अपने कमर पर हाथ रखकर सुजाता से कहने लगी "माँ जी कितनी बार कहा है कि सोफे पर बैठकर भाजी साफ मत कीजिए। आप सुनती ही नहींं, इंडिया जैसी हरकतें करना छोड़ दो और अंग्रेजी चाल समझ लो कुछ दिन के लिए ही सही"


"निकाल तो रही हूं बहू, बस माँ का फोन था इसलिये...... "आप कुछ भी नहींं समझती, बस अपनी मनमानी करती रहती हो।"


और सोनाक्षी कमरे में चली गई। शर्माजी और सुजाता दोनों एक दूसरे का मुँह देखते रह गये। दोनों के आँखों में सागर की लहरें उफान भर रही थी। एक दिन खाने की मेज़ पर सोहन अपने माता पिता को समझा रहा था कि यहाँ अंग्रेजी में बात करें, आपके लिए थोड़ा कठिन है लेकिन सीखना ही पडेगा। 


शर्माजी अपने बेटे का यह व्यवहार देख निराश हुए। सोचने लगे कि मुझे ही बेटा सीखा रहा है कि विदेश में कैसे रहे। जब कि शर्माजी बड़े पद पर थे। अंग्रेजी अच्छा जानते थे। एक दिन सोनाक्षी शाम को अपने काम से घर लौटी तो देखा कि बेटा बहुत रो रहा है। सास से पूछा यह क्यों रो रहा है। 


सुजाता ने बताया कुछ पता नहींं। चुप होने का नाम ही नहींं ले रहा। सोनाक्षी ने पूछा कुछ खाया क्या? तब सुजाता ने बताया थोड़ा खाया। सोनाक्षी अपने बेटे को सुजाता की गोद से अपने गोद में ली। थोड़ी देर में ही वह चुप हो गया। सोनाक्षी फ्रिज खोल कर देखा उसका खाना वैसे ही पड़ा था। सोनाक्षी अपनी सास सुजाता पर चिल्लाने लगी और कहने लगी कि बेटे ने कुछ नहींं खाया। इस पर सुजाता ने बताया कह तो रही हूं कि थोड़ा सा खाया। सोनाक्षी ने कहा फ्रिज मे खाना वैसे ही पड़ा है। कुछ नहींं खिलाया और कह रही हो उसने खाया। पता नहींं आपने सोहन की परवरिश कैसे की, उसे कैसे पाला। इस बात पर वह थोड़ा क्रोधित होकर बोली "बहू मैं तुमसे कह तो रही हूं कि मुन्ने ने थोड़ा खाया।" 


इस पर सोनाक्षी ने कहा कि "माँ जी आप अपनी गलती क्यों नहींं मानती है। क्या इसलिये हमने लाखों रुपये खर्च कर आपको बुलाया था। हमारे लाखों रुपए बरबाद कर रहे हो।" 


और वह अपने कमरे में चली गयी। शर्माजी और सुजाता दोनों मुँह देखते रह गए। सुजाता की आँखों में पानी की बूंदों का उफान था। शर्माजी समझ गए कि इन्हें माता पिता की कोई कीमत नहीं। केवल इन्हें अपने बच्चे के लिए नौकर की आवश्यकता है।


उनके आँखों के सामने अपना अतीत एक बार फिर से हिलोरे लेने लगा। उन्हें अहसास होने लगा कि उनकी ही छवि एक बार आँखों के सामने दृष्टांत हुई है। 


शर्माजी के पिता दिनानाथ एक स्कूल में हिन्दी के अध्यापक थे। वे बच्चों को कई अच्छी बातें बताते। भागवत, महाभारत, रामायण की कथाएँ सुनाते थे और उन्हें शिक्षित करते। सभी छात्र उनसे अधिक प्रेम करते और महाभारत के श्लोक सीखते। दिनानाथ के पिता की मृत्यु होने के कारण छोटी सी आयु मे ही उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। बड़ा परिवार था। तीन बहनें और एक भाई, सभी का विवाह किया। पैसों की तंगी के कारण शर्माजी को अच्छी शिक्षा न दे सके। शर्माजी अपने आप से ही युनिवर्सिटी मे रहकर शिक्षा प्राप्त की और बीच बीच में प्रतीयोगी परिक्षा की तैयारी भी करने लगे और अंत में उन्हें अच्छा पद भी प्राप्त हुआ। अपने करीबी रिश्तेदारों मे गुणवती लड़की सुजाता से विवाह हुआ। वैवाहिक जीवन सुख रूप चलने लगा। 


शर्माजी को सोहन का जन्म हुआ। उसकी याद सता रही थी। इस कारण दिनानाथ और लक्ष्मी अपने पोते को देखने चले। एक दिन दिनानाथ सोहन को भगवत गीता के श्लोक पढ़ा रहे थे, वह भी अच्छी तरह से सीख रहा था और बोल रहा था। दिनानाथ को तंबाकू के सेवन का शौक था। जब वे अपने पोते के पास थे। तब उनकी छींक के कारण तंबाकू सोहन पर गिर पड़ा। तब सुजाता अपने बेटे को बुलाया तब वह नहींं आया तो वह उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए उसे पीटते हुए ले गई। दिनानाथ व्याकुल हो उठे। लक्ष्मी ने कहा बहू उसे क्यों पीट रही हो। वह लापरवाही से कहने लगी, पिताजी आप तंबाकू का सेवन करते हो तो ध्यान रखिये कि वहाँ पर सोहन न हो। और वह अपने कमरे में चली गईं।


एक दिन शर्माजी और सुजाता ने अपने मित्रों को दावत देने की सोची तो उन्होंने अपने माता पिता से पहले ही कह दिया कि वे अपने कमरे से बाहर न निकले और अपना भगवतगीता व व्यजनों का पांडित्य उन पर न झाड़े। यह बात दिनानाथ को बुरी लगी। जब सुबह हुई तो दोनों अपने बैग उठाये और बेटे से कहा हम गाँव जा रहे है। बेटे ने कहा क्यों बाबूजी आप चार दिन सोहन के साथ बिताने वाले थे ना। दिनानाथ ने कहा कि जरूरी काम है और बहुत सारे काम छोड़ आए है जिसे निपटाने है। सोहन रोते हुए उनके साथ जाने की जिद की लेकिन लक्ष्मी ने उसे चुप करा समझाया कि वे अपना काम निपटा कर दो चार दिनों बाद फिर से लौट आयेंगे। बेटा और बहू कुछ कह रहे थे लेकिन उन्होंने उनकी बातों पर ध्यान नहींं दिया और चले गए। शर्माजी को अहसास होने लगा कि दुनिया मे वृध्दाश्रमों की संख्या क्यों बढ रही है। कई ऐसे लोग है जो अपने व्यवहार को बहता देखते है। यही कारण है कि वृध्दाश्रमों की संख्या बढ़ रही है और उन वृध्दाश्रमों मे कई लोगों को दुखित व उदासी के वातावरण में अपना जीवन बिताना पड़ रहा है।



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