Manchikanti Smitha

Drama

4.9  

Manchikanti Smitha

Drama

माँ

माँ

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"सॉरी सर, रश अधिक होने के कारण मैं आपको अंदर नहीं भेज सकती। आपका नंबर आने के लिए कम से कम एक घंटा और अवश्य लगेगा, मैं कुछ नहीं कर सकती। अगर मैंने ऐसा किया तो बाकी सब लोग शोर मचाने लगेंगे। मुझे समझने की कोशिश कीजिए। टोकन नं. 15" कह कर रिसेप्शनिस्ट ने आवाज लगाई।         

ऑफिस में जरूरी काम होने के कारण श्रीनिवास अनमना सा हो गया।  माँ का स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण मैं उन्हें अस्पताल डॉक्टर के पास लाया था। अभी एक घंटा समय होने के कारण माँ को वहीं बैठे रहने के लिए कह कर, आधे घंटे में काम समाप्त कर आने का वादा कर मैं ऑफिस की ओर बढ़ गया क्योंकि ऑफिस वाले बार बार फोन कर तंग कर रहे थे। 

अनसुया बार बार दरवाजे की ओर देख रही थी कि कहीं बेटा आया तो नहीं। इतने में नर्स ने आकर उनकी बारी आने की सूचना दी पर बेटे के वहाँ पर न होने के कारण अनसुया ने अंदर जाने से मना कर दिया। तब नर्स ने उनके बाद वालों को भेज दिया।               

कुछ देर बाद श्रीनिवास पसीने से लथपथ वहाँ पहुँचा और माँ से पूछा "माँ क्या आपने डॉक्टर को दिखा लिया।" माँ ने कहा "तू नहीं था इसलिए मैंने नहीं बताया।"  

तब दोनों अंदर जाने ही वाले थे कि नर्स ने कहा "सर डाक्टर चले गए।"                     

"ऐसे कैसे चले गए उन्होंने ही अपाईंटमेंट दिया था।"          

"मुझे नहीं पता सर।"                              

"क्या मुझे एक दो दिन में फिर से अपाईंटमेंट मिल सकता है।"     

"सॉरी सर वे एक महीने के लिए कैंप पर जा रहे हैं। अब एक महीने बाद आना।"                                     

श्रीनिवास क्रोधित होकर अनसुया से कहने लगा- "अगर बता लेती तो अच्छा होता था। अब पुरानी दवाइयों से ही काम चलाना। एक महीने तक अपनी बीमारी के बारे में कुछ नहीं कहना। अपनी बीमारी को सह लेना।"  दवाइयाँ लेकर वे दोनों घर पहुँचे।श्रीनिवास की पत्नी अपने मायके गयी थी, क्योंकि वह माँ बनने वाली थी। माँ का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण बेटा घर के कामों में माँ अनसुया के कामों में मदद करता था।                

"डॉक्टर अब माँ का स्वास्थ्य कैसा है। अगर 10 दिन पहले ले आते तो शायद कुछ कर पाते। थोड़ी दवाइयाँ बदलकर उनका स्वास्थ्य ठीक कर सकते थे। अब उनका आपरेशन करना पड़ेगा।"        

"क्या,आपरेशन ! क्या वह इसे सह पायेगी। दवाइयों से काम नहीं हो सकता। कोई गंभीर समस्या।"   

"यहीं बात मैं आपसे पुछना चाहता हूँ। इतनी गंभीर स्थिति क्यों आई। आप इतने दिनों से क्या कर रहे थे। उनकी हालत बहुत बिगड़ चुती है। आपरेशन ही सही है। दो तीन दिन निगरानी में रखना होगा। बी. पी., शुगर नार्मल होने के बाद आपरेशन करेंगे। आप पढ़े लिखे लोग ही ऐसा करोगे तो कैसा।"                                        

"क्या जमाना आ गया अपने आफिस के कामों में इतने व्यस्त हो जाते है कि माँ की हालत अधिक बिगड़ने पर ही उन्हें डॉक्टर याद आते।" ऐसा दूसरे डॉक्टर से कह रहे थे। इन बातों को सुनकर श्रीनिवास शर्मिंदा हो गया और माँ पर, डॉक्टर पर बहुत क्रोध आ रहा था। उन्हें क्या मालूम कि मैं अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाते हुए माँ का कितना ध्यान रखता हूँ। इन्हें क्या मालूम मेरे बारे में।                                       

दो तीन दिन में अनसुया माँ का बी.पी., शुगर नार्मल हों गया और आपरेशन की तैयारी की गई। माँ को आपरेशन के लिए ले जा रहे थे। श्रीनिवास अपनी माँ को देख रहा था अनसुया भी अपने बेटे को अलग न होने दे रही थी उसकी आँखों में पानी भर आया।       

"माँ तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हें इतनी तकलीफ हो रही थी।"                                          

"तुमनें ही तो कहा था कि दवाइयों से काम चला लेना, मुझे नहीं बताना अपनी बीमारी के बारे में।"                         

"मैंने ऐसा कब कहा माँ।"                              

"बेटे जब पिछली बार हम डॉक्टर के पास आए तब डॉक्टर अपाईंटमेंट न मिलने पर तुम्हीं ने कहा था।"            

श्रीनिवास सारी बातें भूल चूका था, याद आते ही"माँ वह तो मैंने यूँ हीं आफिस की टेंशन के कारण कहा था। तुमने उसे गंभीरता से ले लिया।"                                         

"बेटा मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ, मुझे कुछ बातें याद नहीं रहती। डॉक्टर कुछ बातें बताकर कुछ भूल गई तो तुम्हें तकलीफ उठानी पड़ेगी, साथ में मेरा सही इलाज भी नहीं हो पायेगा, इस कारण मैंने जाने से मना कर दिया था।" श्रीनिवास भावुक हो गया था। अनसुया की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। भावूकता मे कुछ कहता नर्स अनसुया को आपरेशन थीयेटर मे ले गई। श्रीनिवास भावनाओं में डूबा पिछली बातों की यादों में डूबा बाहर बैठा था।            

किस तरह वह अपनी माँ के आसपास मंडराता था। अनसुया भी उसका बहुत ध्यान रखती थी। किसी खास रिश्तेदार की मृत्यु होने के कारण वह श्रीनिवास को अपनी सास के पास छोड़ मायके गई। दिन भर तो वह ठीक था, लेकिन रात होते ही वह सारी रात रो रो कर सारा घर सर पर उठा लिया। दादा दादी, पिता, चाचा के चुप कराने पर भी चुप नहीं हुआ। उसे संभालना उनके लिए कठिन हो गया। जैसे ही अनसुया को यह बात पता चली वह किसी भी प्रकार अपने मायके से ससुराल पहुंची और श्रीनिवास को गले लगा लिया।

ऐसी कई छोटी मोटी घटनाएं उनके मातृत्व का प्रतीक थी। एक दिन श्रीनिवास स्कूल से आते ही माँ से कहा कि स्कूल में सभी बच्चों ने भगवत गीता श्लोक प्रतियोगिता में भाग लिया है। तब माँ के पूछने पर कहता कि उसने भाग नहीं लिया क्योंकि उसे डर लगता हैं। अनसुया ने कहा कि तुम भी सभी श्लोक अच्छी तरह से गाते हों और कितनी अच्छी तरह से मुझे सुनाते हो, तब श्रीनिवास कहता हैं कि तुम्हारे सामने डर नहीं लगता. तब अनसुया धैर्य देकर अपना नाम लिखवाने के लिए कहती। और कहती कि मैं तुम्हारे पास रहूँगी। वह दिन आ गया सारे बच्चों ने श्लोक सुनाया। जब श्रीनिवास की बारी आई तब माँ को अपने सामने न देखकर घबरा जाता है और टीचर के बार बार समझाने पर भी वह नहीं गाता। उसकी मां को आने मे थोडी देर हो जाती। अचानक अपनी मां को सामने आया देख वह बडी उत्सुकता से श्लोक गाने लगा और सारा हाल तालियों की गडगड़ाहट से गूँज उठा। पुरस्कार भी पाया।     

माँ ने समझाया कि बिना डरे हुए उसे अपने जीवन में माँ का सहारा लिए बिना आगे बढ़ना है। उस दिन से वह अपने जीवन की हर सीढ़ी को आसानी से चढ़ने लगा।                       

"ये दवाइयां लेकर आए।" नर्स की आवाज से वह यादों से बाहर आता हैं और डॉक्टर से पूछता है कि उसकी मां कैसी है। तब डॉक्टर ने कहा "घबराने वाली बात नहीं है आपरेशन ठीक रहा। अब कोई डरने वाली बात नहीं, थोडी देर बाद उन्हें रुम में शिफ्ट किया जायेगा।"                                        

अनसुया के होश में आते ही कमजोरी के कारण कमजोर अवस्था में वह बेटे को पास बूला कर कहने लगी कि तुम जब छोटे थे तब मेरा प्यार केवल तुम ही तक सिमित था। लेकिन तुम्हारी बात अलग है। तुम कामवाले हो, शादी शुदा हो, बेटे हो इन सभी में तुम्हारा प्यार बांटना आवश्यक है। तुम्हें हर बात का ध्यान रखना जरूरी है। तुम ने कहा था कि एक महीने अपनी बीमारी के बारे मे बात नहीं करना। तब मैंने समझा कि दवाइयाँ तो चल रही है। उसमें छोटीमोटी परेशानियां तो चलती रहती है। इसलिये मैंने तुमसे मेरी बीमारी के बारे में नहीं बताया, तुम्हें तकलीफ़ देना या दूसरो की नजरों में तुम्हें गिराना या तुम्हें बदनाम करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। तुम आफिस की परेशानियों में उलझे रहते थे। यही कारण था कि मैंने अपनी बीमारी के बारे में तुमसे बात नहीं की। मैं भी जान न पाई कि बात यहां तक पहुँच जायेगी।"                           

दोनों गले लग गए और वह अपनी मां से किए व्यवहार को याद कर पछता रहा था। उसने तय किया कि अब माँ से के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेगा।


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