विवाह

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मुझे वापस सिंगापुर जाने में दो दिन रह गए थे। बच्चों के लिए कुछ खरीदी करनी थी। इसलिए भैया और भाभी के साथ शापिंग चली गई। जैसे ही ऊपर जाने के लिए सिढियों के पास आई ही थी कि किसी के जोर जोर से चिल्लाने की आवाज सुनकर को उस ओर घुमाया तो आश्चर्य और घिन आ रही थी। जिसका चेहरा मैं अपने जीवन में फिर से नहीं देखना चाहती थी, वहीं चेहरा सामने आ गया। सोनाक्षी प्रवीण पर चिल्ला रही थी


"एक नं. के निकम्मे हो। कुछ काम धाम करते नहीं, मैं क्या-क्या करूँ, सब मुझे अकेले ही करना पड़ता है” जबकि उसके एक हाथ में मकई के तीखे मीठे दानों की पुडिया और एक हाथ में कोक का डिब्बा।


बच्चे को और सारे शापिंग के सामान को प्रवीण उठा रखा था, पसीने से भीगा हुआ और हारे हुए चेहरे के साथ। बडी मासूमियत से उसने मेरी ओर देखा और आवाज लगाई "प्रसू" इस जानी पहचानी आवाज को सुन मैंने उसे बडी दीन भाव से देखा तो उसने मुझसे कहा "मुझे माफ करना प्रसू अगर मैं तुम्हारी कुछ बातों से समझौता करता या तुम्हें मानता तो शायद आज कुछ अलग स्थिति रही होती”


"कहाँ हो जी, कहाँ मर गए? लडकी देखी की फिसल गए, चलो अब मेरी मदद कीजिये सामान उठाने में” जबकि उसके हाथ में एक छोटा सा हलका पैकेट रखा था।।


माँ, भैया भाभी हवाई अड्डे पर मुझे छोडने आए थे। माँ को अपना ध्यान रखने व सही समय पर खा पीकर दवाइयां लेने को कहा और मेरी चिंता न करने को कहा। यह भी कहा कि कुछ महीनों में उन्हें अपने साथ रहने बुला लेगी। सारी जाँच पड़ताल पूर्ण करने में समय कैसे निकल गया इस बात का पता नहीं चला साथ में पूरानी यादो के लिए भी समय न था। हवाई जहाज में अपनी जगह पर बैठ गई। न चाहते हुए भी बिती जिंदगी की बातें रह रहकर मेरे मन में घर कर रही थी। इतने में एयर-होस्टेस ने आकर मुझसे पूछा "मैडम आप काफी लेना पसंद करोगी या चाय?"


"मुझे ग्रीन टी चाहिए नीम्बू के साथ" दोनों बच्चे सो गए थे। चाय पीने के कारण सर हल्का महसूस हो रहा था। न चाहते हुए भी मैं अपने बीते दिनों की यादों में खो गई। माता पिता की इच्छा से मेरा विवाह संपन्न हुआ था। प्रवीण से मेरा विवाह हो गया था। छः महिनों तक ठीक था। उसके बाद एक एक करते प्रवीण की सारी असलियत बाहर आ रही थी। हम दोनों के स्वभाव में जमीन-आसमान का अंतर था। प्रसन्ना सादगी जीवन के साथ असलियत में रहती थी। जो भी हो सामने कह देती थी। पीठ पीछे बात करने की आदत नहीं थी उसकी। लेकिन प्रवीण का स्वभाव कुछ अलग था। वह अपना जीवन सदैव सपनों की खिचड़ी पकाकर उसमें रहता था। जिंदगी की असलियत उसके मायने नहीं थी। सामने कुछ और पीछे कुछ और, ऐसा प्रवीण का व्यवहार था। उसके इस व्यवहार की असलियत को कई बार उसके सामने लाया गया लेकिन वह प्रसन्ना को मान नहीं देता था। वह उसकी हर जिम्मेदारी और काम की अवहेलना करता था। प्रसन्ना के बीमार होने पर भी वह उसका साथ नहीं देता। ऐसी कई छोटी छोटी लाल मिर्च से भरी घटनाओं से उसका जीवन आगे बढ़ रहा था। कई आकस्मक घटनाओं का प्रसन्ना को अपने जीवन में स्वाद चखना पडा। प्रसन्ना एक इवेंट आर्गनाइजर कंपनी में बडे ओहदे पर काम करती थी। उसके उपर कई कर्मचारियों के साथ अपने टीम की जिम्मेदारियाँ होने पर भी वह अपने काम को बडी सावधानी व बिना गलतियों के संभालती थी और सदैव सबकी प्रशंसा भी पाती थी। अपने पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी होने पर भी वह अपने घर को अपने बच्चों को बडी सावधानी से संभालती थी और आने वाली हर छोटी मोटी समस्याओं को सावधानी व बिना गलती के दूर करती थी।


प्रसन्ना और प्रवीण ने अपने बच्चों का धोती और साडी का एक कार्यक्रम बडी धूमधाम से मनाने का सोचा और प्रसन्ना इसकी सारी जिम्मेदारी स्वयं लेना चाहती थी। लेकिन प्रवीण ने उसका विरोध किया और कहा "इस कार्यक्रम की तैयारी करना तुम्हारे बस की बात नहीं, मुझे औरतों की जिम्मेदारी पर कोई भरोसा नहीं। और कहता है कि "मेरी बहन को इसकी जिम्मेदारी सौंपते है क्योंकि वह इन सब को अच्छे से करती हैं। हमारे घर के सभी कार्यक्रम वहीं अच्छे से निभाया है”


"क्या तुम्हारी बहन औरत नहीं?"


"उनकी बात अलग है। उनको जिम्मदारियों को संभालने का अहसास है” उसकी इन बतों को सुनकर मैं गुस्सा हुई लेकिन लाचार भी थी। प्रवीण वहाँ से चला गया। मैं जो इवेंट आर्गनाइजर की कर्मचारी हूँ और मेरे काम की सभी तारीफ करते है। जब मैं किसी कार्यक्रम की जिम्मेदारी उठाती हूँ तो सभी कहते है कि "चिंता की बात नहीं सब समय पर ठीक-ठीक हो जायेगा" और प्रवीण कहते है कि मुझे जिम्मेदारियों को संभालने नहीं आता और मुझ पर उसे कोई विश्वास नहीं।।


हमारे फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में नये लोग आए थे। उसका और मेरा साथ अच्छा चल रहा था। मेरी छोटी-छोटी तकलीफों को वह दूर करती थी। वह माँ बनने वाली थी। बच्चे की पैदाइश में डाँ. ने कुछ उलझनों को बताया तो वह अपनी बहन सोनाक्षी को बुला लिया अपने काम में सहायता करने। उसका स्वभाव भी कुछ प्रवीण जैसा ही था।। इस बात का पता मुझे बाद में चला। उसके जैसे रहन सहन सीखने की बात प्रवीण मुझसे कई बार कहता था। लेकिन जो लडकी दसवीं पास भी न कर सकीं और गाँव की थी। इससे सीखने की बात मुझे अच्छी नहीं लगीं।


एक दिन मेरा स्वास्थ्य कुछ ठीक न होने के कारण मैं जल्दी ही अपने काम से छुट्टी लेकर घर लौटी। घर की दूसरी चाबी मेरे पास होने के कारण मैंने दरवाजा खोला और अंदर आ गई। जैसे ही बेडरूम के पास से गुजर रही थी कि अंदर से खुसफुसाने की आवाज आने लगीं। दरवाजा डरते हुए थोड़ा सा खोला था कि अंदर का दृश्य देखकर लगा जैसे मेरी साँसें रुकने लगी और आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। जैसे तैसे अपने आप को संभाला और सोफे पर आकर बैठ गई। थोडी देर बाद अपने कपड़ों को ठीक करती हुईं सोनाक्षी कमरे से बाहर निकली। उसके पीछे प्रवीण बडी जोश से सीटी बजाता आ रहा था। दोनों मुझे देख घबरा गए। सोनाक्षी हडबडाकर भाग गई। प्रवीण कुछ कहना चाहता था कि मेरे तीक्ष्ण नयनों के अंदाज को देख कर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। अंदर जाकर अपनी शर्ट बदली और बाहर चला गया। उसके जाने के बाद कितनी देर तक मैं रोती रही पता नहीं चला। बच्चों के आने का समय हो गया था इस कारण मैंने अपने आप को संभाला। मुँह धोकर उनके पसंदीदा नाश्ता बनाया और अपना हुलिया ठीक कर हाँल में बैठ गई। दोनों बच्चे मुझे घर पर देखकर खुश हुए। अपनी स्कूल की बातें बताई, उनके गृह कार्य में उनकी सहायता की। खाना बना रही थी लेकिन मन विचलित हो रहा था। बच्चों के साथ मिलकर खाना खाया और टेबल पर प्रवीण के लिए खाना रख कर बच्चों के साथ सो गई। प्रवीण देर रात घर आए। मुझे बच्चों के साथ कमरे में सोता देख मेरे पास आने की हिम्मत नहीं की। इस प्रकार की चुप्पी हमारे बीच पाँच दिन चली। अंत में छठवे दिन प्रवीण आकर कहने लगे "मैं तुमसे तलाक लेना चाहता हूँ और सोनाक्षी से शादी”


उससे अधिक घिन होने के कारण मैंने भी तुरंत हाँ कह दी। "ठीक है लेकिन मेरी दो शर्तें हैं। पहली शर्त यह है कि दोनों बच्चे मेरे साथ रहेंगे, उनके मामले में कोई दखलंदाजी नहीं करोगे और जीवन में उनसे कभी नहीं मिलोगे। दूसरी शर्त यह है कि इस बीच हम दोनों ने मिल कर नये फ्लैट के साथ जो भी जमीन या शेयर खरीदी वो सभी तुम्हें पूरी तरह से मेरे नाम करने पड़ेंगे”


पहली शर्त से तो प्रवीण खुश था लेकिन दूसरी शर्त से नाराज। लेकिन सोनाक्षी की दीवानगी में फसा, तलाक की बात सुन प्रसन्ना ने कोई आश्चर्य या कोई कारण न पूछने पर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन वह खुश था कि उसे तलाक आसानी से मिल रहा है। तलाक में समय था इस बीच प्रवीण सारी जायदाद प्रसन्ना के नाम व तलाक के कागज जुटाने में कर रहा था। प्रसन्ना को उदास देख उसके बॉस जो उसके काम से बहुत खुश थे उन्होंने कारण पूछा तो प्रसन्ना ने सारी कहानी बिना किसी झिझक के बताई। उन्होंने उसे सिगापुर का ब्रांच जो हाल ही में आरंभ किया उसे संभालने को कहा। वहाँ की सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी और अपना भागीदारी भी बनाया। प्रसन्ना को बडी राहत मिली। उसे चिंता थी कि बच्चों के साथ वह कहाँ जायेगी? वह अपने माता पिता, भाई पर बोझ बनना नहीं चाहती थी। उसके परिवार वालों को चिंता हुई, जब प्रसन्ना ने तलाक की बात बताई तो। उन्होंने कहा अगर तुम पहले बताती तो कुछ कर सकते थे। प्रसन्ना सिंगापुर जाने व वहाँ का काम संभालने व उसे अपना भागीदार बनाने की बात बताई और चली गयी। आज पूरे दस साल बाद वह भारत आई थी क्योंकि उसके भैय्या ने उसे माँ का स्वास्थ्य बिगड़ने के समाचार के साथ उसे व उसके बच्चों को देखने की इच्छा प्रकट की थी। डॉक्टरों की राय भी थी कि प्रसन्ना को देख माँ का स्वास्थ्य ठीक हो जाएगा।।


"मैम आपका डिनर" इस आवाज से वह सपनों की दुनिया से बाहर आ गई। बच्चे भी जाग गए थे और उन्हें भी भूख लगी थी।


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