हाथ जला लेकिन आंखो में खुशी थी
हाथ जला लेकिन आंखो में खुशी थी
"देरी हो रही है मुझे दफ्तर जाने को मेरा नाश्ता लगा दो और टिफिन भी तैयार कर दो।"
"और हां, मेरी एक मीटिंग भी है, आज तो थोड़ी देरी होगी आने में "
"मेरे जीवन साथी ने फिर से आवाज लगाई, मनीषा अभी तक तुमने नाश्ता नहीं लगाया?"
"मैं धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतरी और उनसे कहने लगी, कि ऐसा करते हैं आज खाना बाहर से मंगा लेते हैं और अभी चाय ब्रेड नाश्ते में ले लेते हैं।"
"उन्होंने कहां अरे! भाग्यवान, मुझे देरी हो रही है जो भी देना है दो, लेकिन जरा जल्दी करो।"
"देरी होने के कारण ये अपने ही धुन में व्यस्त थे।"
"जैसे -तैसे मैंने नाश्ता लगाया।"
" चाय ब्रेड खा कर इन्होंने हाथ धोया ही था, कि एक कॉल आ गया और बात करते-करते ही ये निकल गए।"
"मैं टिफिन भी न दे पाई, और इनको व्यस्त देखकर ना ही कुछ कह पाई।"
"मीटिंग में बिजी होने के कारण दिन में खाना भी नहीं खा पाए और रात को भी देर से घर आए।"
" घर की ओर लौटते समय इनके पेट में अब चूहे तेजी से दौड़ने लगे।"
" घर आ कर देखा कि मैं लेटी हुई हूं, तो मुझे उठाने की बजाय खुद ही किचन में चले गए खाना लगाने के लिए।"
"लेकिन ये क्या ?कुछ बना हुआ ही नहीं है ।"
"तो एक बार के लिए इनको मन ही मन बड़ा रोष आया कि एक तो देरी हो गई और खाने का भी कुछ भी बना हुआ नहीं।"
"भूख भी तेज गति में और बढ़ती ही जा रही है।"
"फिर इन्होंने मुझे धीरे से उठाया और पूछा क्या हुआ आज खाना नहीं बनाया?"
"तो फिर मैंने इन को बात बतानी शुरू करी।"
"सुबह आप जल्दी में थे, मैंने आपसे कहा था ना कि आज खाना बाहर से मंगवा लेंगे।"
"हां, लेकिन मैंने भी तो बोला था, कि मुझे आने में लेट हो जाएगी।"
"और तुम तो हमेशा ही मुझे मना क्या करती हो बाहर का खाना खाने से।"
"फिर आज.... उन्होंने इतना कहा ही था कि"
"धीरे से मैंने साड़ी का पल्लू हटा अपना हाथ बाहर निकाल दिखाया।"
"देखते इन्होंने विस्मित शब्दों में कहा, अरे यह क्या हुआ? कैसे हुआ?"
"मैंने इनको सारी बातें बताई ।"
"आज सुबह ही मैंने सोचा आप के लिए खीर बनाऊं, दूध को जैसे ही उबाल के गैस से नीचे रख रही थी वह मेरे बाएं हाथ पर गिर गया।"
"इसलिए मैं आपको आज टिफिन भी नहीं दे पाई और अभी का खाना भी नहीं बना पाई।"
"इतना कहते ही मेरी आंखें आंसुओं से भर गई ।"
"फिर रुंधे स्वर से आगे कहा, सुबह जैसे तैसे मैंने एक हाथ से ही आपको नाश्ता परोसा था।"
"इतना सुनते ही ये झट से पास आए और कस के बांहों में भर, मुझे गले से लगा लिया। "
"फिर अफसोस जताते हुए बोले कि, मैं भी ना, काम में व्यस्त होने के कारण तुम्हारी बातों पे बिल्कुल ध्यान ही नहीं दिया और ना ही पूछा कि खाना क्यों बाहर से मंगाना है!"
"चलो कोई बात नहीं, अभी भी ज्यादा लेट नहीं हुई है। अभी आर्डर देकर खाना बाहर से मांगा लेता हूं।"
"तुम आराम करो, खाना आते ही, मैं लगा लूंगा, फिर हम दोनों संग संग वह भी कैंडल लाइट डिनर करेंगे ।"
"इतना सुनते ही, मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक गए ।"
" खुद से ही कहने लगी, कि हाथ जला लेकिन आंखों में खुशी थी कि मेरे हमसफ़र ने मेरे दर्द को समझा और प्यार से मुझे गले लगाया।"
"जी हां दोस्तों, हम सब अपने जीवनसाथी से ऐसा ही चाहते हैं । यह मेरी ही कहानी नहीं, आप सबों की भी कहानी है। जब हम दुख तकलीफ में होते है या दर्द से गुजर रहे होते हैं, तो हम सबसे पहले यह ही चाहते हैं कि, हमें हमारा जीवन साथी समझे और उसका साथ स्नेह हमें हर कदम पर मिलता रहे।
