गूँज की अनुगूँज
गूँज की अनुगूँज
अंजान नंबर से फोन की घंटी बजते ही, मैंने बड़ी उत्सुकता से फोन उठाया। अभी हैलो ही बोल पाई कि उधर से बधाई हो मैडम जी, आपकी रचना प्रतियोगिता हेतु चयनित हो गई है। एक हजार प्रतिभागियों में आपकी रचना को यह विशिष्ट स्थान मिला है। खुशी से नाचते-झूमते, बेसब्री में फोन को होल्ड पर रख कर, पूरे घर को यह खबर सुनाई। तभी उधर से हैलो-हैलो--- आप मुझे सुन पा रही है। मैंने चहकते हुए- हाँ-हाँ मैडम, सुन पा रही हूँ। लेकिन आप का रैंक काफी पीछे है। मैंने कहाँ- मतलब--। उधर से- मतलब- इसके लिए अभी आपको काफी सारे लाईकस और कमेंटस की जरूरत हैं। हम आपको लिंक भेज रहे है,
आप इसे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबियों को भेजिए, जितने लाइक्स और कमेंटस आएंगे, उसी आधार पर आपकी रचना प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार हेतु चयनित होगी। गूँज की अनुगूँज से अचंभित, मन ही मन मतलब मेरी रचना के जाँच का पैमाना विद्वानों और प्रतिभावानों की कसौटी पर खरा उतरना नहीं, बल्कि मेरे रिश्तेदारों, दोस्तों और करीबियों से मुझे मिलने वाले लाइक्स और कमेंटस निर्धारित करेंगे। लगता है! आप की प्रतियोगिता का यह जाँच का पैमाना साहित्य साधना की कसौटी पर खरा नहीं उतरता । उधर से- लगातार हैलो! मैडम आप मुझे सुन पा रही हैं----हैलो !-- और मैंने बुझे मन से फोन रख दिया।
