Shobhit शोभित

Tragedy

4.9  

Shobhit शोभित

Tragedy

गुनाहगार इश्क

गुनाहगार इश्क

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मैं, सुनयना कश्यप, बी कॉम पास किये हुए लगभग 6 महीने बीत चुके हैं, अच्छे नंबर आए, अब फ्लोरिडा जाकर बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स करने का विचार है, फॉर्म वगैरह भर दिया है, कुछ औपचारिकतायें बाकी हैं. मैं पूरी तरह तैयार हूँ जाने के लिए, पर मेरा दोस्त, विनय, मुझे रोक रहा है, कह रहा है पढाई यहीं कर लो इंडिया में. पढाई कर लो, फिर दोनों मिलकर काम कर लेंगे।

 पहली बात तो यह कि उसका मुझे सोना बुलाना बिलकुल पसंद नहीं, घर वाले प्यार से मुझे नैनू बुलाते हैं और बाकि सब सुनयना. पता नहीं एक बार मुझे पीलिया हुआ था और शरीर थोड़ा पीला हो गया था और तब से सोना.. सोना.. उफ़्फ़ !

 दिनेश के जाने के बाद.. अरे मैं भूल गयी आपको दिनेश के बारे में बताना। दिनेश मेरे बचपन का दोस्त था और इस बार बी कॉम के एग्जाम में नक़ल करते हुए पकड़ा गया था। मैं उसे अच्छे से जानती थी और ऐसी उम्मीद कभी थी उससे.. पढाई में अच्छा था वो पर क्लास में पहले नंबर पर हमेशा विनय ही आता था.. इसलिए लगता है कि शायद विनय का कहना सही है कि शायद वो अव्वल नंबर पर आने के लिए, ऐसा कर रहा थाष उस दिन के बाद से मैंने अब तक विनय की सूरत दोबारा नहीं देखी, उसकी फैमिली ने केस किसी तरह पूरा मामला निपटा कर उसे अपने मामा के यहाँ भेज दिया और वो वहीं है तभी से..

 हाँ मैं कह रही थी कि दिनेश के जाने के बाद, विनय ने मुझे बहुत संभाला है एक बहुत सच्चे दोस्त की तरह, जरुरत के वक़्त साथ दिया है। अगर विनय का साथ नहीं होता तो शायद मैं टूट जाती। पता नहीं क्या जरुरत थी दिनेश को इस बेबकूफी की, खैर सब का अपना दिमाग होता है।

 दूसरी बात जो मुझे विनय कि पसंद नहीं है वो यह है कि वो मुझ पर ऐसे हक जमाता फिरता है जैसे मैं उसकी नौकर हूँ, पर कोई नहीं, दिल का बुरा नहीं है और मेरा दोस्त है इसलिए मैं उसे पलता के कुछ कहती नहीं।

आज उसने मुझे ट्रीट के लिए बुलाया है, चार्टड एकाउंटेंसी के कोर्स में उसको प्रवेश मिल गया है और वो यह ख़ुशी मेरे साथ मनाना चाहता है. मुझे ख़ुशी है कि उसको सही राह मिल गई. विनय जिस तरह कॉलेज में सबका, खासकर लड़कियों का, चहेता था मुझे नहीं लगता था कि वो आगे ज़िन्दगी में फोकस कर पायेगा. पर अब वो सीरियस है, अच्छा लगता है। अच्छा लगता है कि जिसे सब देखते हो और वो आपके साथ खड़ा हो।

 कोजी कार्नर रेस्टोरेंट पर मैं लगभग टाइम पर पहुँच गयी, विनय का गले लग कर बधाई दी, बुके दिया उसको. फिर पिज़्ज़ा खाते खाते वो ज्यादातर चुपचाप ही रहा, मैं हैरान कि विनय और चुप, पर शायद वो अब पढाई में बिजी रहेगा और मुझे इतना समय नहीं दे पायेगा, यह कह नहीं पा रहा।

तभी वेटर हमें, मेरा फ़ेवरेट, चॉको लावा केक दे जाता है, सब कुछ भूलकर मैं केक पर टूट जाती हूँ, पर यह क्या..

 ..इसमें अंगूठी क्या कर रही है !

एक दम से विनय भी मेरा हाथ पकड़ के नीचे बैठ गया और बोला

“मुझसे शादी करोगी.” बिना रुके उसने फिर कहा,

“सोना मैं तुमसे और सिर्फ तुमसे प्यार करता हूँ. मेरी हर सांस मेरी हर धड़कन में, मेरे हर पल में तुम हो सिर्फ तुम जो सोना.”

मैं सन्न थी और वो लगातार बोल रहा था,

“मुझे यकीन है कि मैं सिर्फ इसलिए जन्मा हूँ कि तुमसे प्यार कर सकूँ और तुम सिर्फ इसलिए कि एक दिन मेरी बन जाओ. तुम मेरी जो सोना और अगर तुम अपने दिल से पूछोगी तो जान लोगी की मैं सच कह रहा हूँ.”

मैं ऐसे हो गई मानों कोई मूरत बैठी हो. मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ कि क्या जवाब दूँ. मैंने विनय को कभी इस नज़र से देखा ही नहीं. विनय को क्या मैंने कभी किसी को इस नज़र से देखा ही नहीं. मैं तो अभी पढाई करना चाहती हूँ. अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ.

“अगले महीने कर लें शादी ?” विनय की आवाज ने मेरी विचार यात्रा पर विराम लगा दिया।

“देखो विनय, मैं अभी पढाई करना चाहती हूँ, शादी वादी का मैंने अभी कुछ सोचा ही नहीं।”

“शादी करोगी तो मुझसे ही करोगी ?”

“मैंने कहाँ ना अभी सिर्फ पढाई और कुछ नहीं।”

“कोई और पसंद है क्या ?”

“विनय! मैंने कहा ना अभी सिर्फ पढाई।”

“प्लीज सोना !”

“अरे क्या सोना सोना सोना करते रहते हो, सुनयना नाम है.” उसके बार बार कहने से झल्लाती हुई मैं बाहर आ गई। एक ऑटो रोका और घर के लिए चली गई।

 विनय के फ़ोन कई दिन से आ रहे और बार बार यह ही बात होती है कि शादी से इंकार क्यों? क्या मैं पसंद नहीं? क्या कोई और पसंद है? अब तो मैंने उसके फ़ोन उठाने बंद कर दिए हैं कि क्या बोलूं उसको, जवाब एक ही है मेरे पास और वो उसको कबूल नहीं.

 धीरे धीर अब फ़ोन आने बंद हो गए हैं उसके. मैंने भी अभी पलट के फ़ोन नहीं किया है उसको क्योंकि पता नहीं उसका भूत उतरा या नहीं.

 पता नहीं लोग दुसरो की भावनाओं को क्यों नहीं समझते !

आज वीसा के लिए एम्बेसी में इंटरव्यू है, बड़ा दिन है पापा जी को साथ ले जाने का मन है पर अमेरिकी एम्बेसी के रुल ही इतने सख्त हैं कि केवल एप्लिकेंट को ही अन्दर प्रवेश मिलता है बिल्डिंग में और कोई अन्दर जा नहीं सकता तो पापा बेचारे बाहर कहाँ घूमते फिरेंगे।

ओला पर टैक्सी बुक की थी पर उसने आखिरी समय पर कैंसिल कर दी है.. क्या दिन हैं! कभी यही ओला वाले कैश बैक देते नहीं थकते थे और आज मनचाहा तरीके से पब्लिक को परेशान करते हैं. अब समय बचा नहीं कि दूसरी टैक्सी का इंतजार करूँ. पापा भी ऑफिस जा चुके. सड़क से ऑटो ही लेना पढ़ेगा.

सड़क पूरी तरह खाली है, कॉलोनी में कहाँ कोई फालतू बाहर निकलता है. मुझे मदर डेयरी के पास से ऑटो मिल जाने कि पूरी उम्मीद है, वहां खड़े रहते हैं कुछ ऑटो हमेशा.

“हे भगवान ! बचा लो, कोई ऑटो दिला दो।” मैंने मन ही मन प्रार्थना करते हुए सड़क के मोड़ तक बस पहुंची ही थी कि

“छपाक !” किसी ने मेरे चेहरे पर पानी डाल दिया।

नहीं ! ये पानी नहीं, तेजाब है। कौन ? क्यों ? किसने ? आँख भी नहीं खुल रही।

“बचाओ ! आह ! उईई !” बोलते हुए मैं बेहोश ही हो गई।

अस्पताल में होश आया तो पूरा चेहरा पट्टियों से ढंका हुआ है, सब अँधेरा अँधेरा चेहरे अब पहले वाली जलन तो नहीं पर कुछ दर्द है।

“पापा ! मम्मी ! कहाँ हो ?”

“बेटा, मैं यहीं हूँ, तेरे पापा जरा बाहर डॉक्टर के पास हैं।”

“क्या हुआ मम्मी ?”

“कुछ नहीं, सब ठीक हो जायेगाष वो तो भला हो विनय का जो वहीं था और तुम्हे फ़ौरन अस्पताल पहुंचवाया वर्ना पता नहीं क्या हो जाता। चलो तुम लोग कुछ देर बात करो, मैं जरा तुम्हारे पापा से मिल के आती हूँ।”

“सोना ! अब तो करोगे न मुझसे शादी ?”

“विनय तुम बहुत अच्छे हो, पर तुम समझते क्यों नहीं यह सही समय नहीं है। अभी तो हमें बहुत कुछ करना है, फिर देखेंगे।”

“उसके बाद भी मुझसे ही करोगे न ! ”

“विनय, तुम समझते क्यों नहीं, मुझे दो साल के लिए बाहर जाना है, मैं ऐसे किसी बंधन में नहीं बंध सकती.” चेहरा दर्द में और विनय के प्रश्न पर गुस्सा, दोनों के बाबजूद संयम के साथ मैंने उसको आराम से बोला।

“साली ! तुझसे और कौन करेगा, अब शादी इस जले हुए चेहरे के साथ, मैं ही करूँगा।”

“विनय !”

“तुम सालियाँ होती ही ऐसी हो, तेरा ये चेहरा मैंने ही जलाया है ताकि कोई और तुझे पसंद ही न करे। वो साला दिनेश भी तेरे पीछे पागल था ! उसको भी मैंने ही भगाया था। कोई बात नहीं, तू तड़प और जब कोई न मिले तब आ जाना मेरे पास।”

मेरे दिमाग में जैसे बम फट रहे हैं। बोलना बहुत कुछ चाहती हूं पर इतना ही कह पाई।

“विनय ! कभी नहीं सोचा था कि तुम इतना नीचे गिर सकते हो, पहले थोड़ी उम्मीद थी भी कि शायद मैं तुझसे शादी करती पर अब तो मुझे ज़िन्दगी भर कुंवारी रहना पसंद है पर तेरी गुलामी नहीं। दूर हो जा मेरी नज़रों के सामने से और दोबारा फटकना भी मत वर्ना अभी पुरानी दोस्ती के वास्ते छोड़ रही हूँ. अगली बार सीधे थाने भेजूंगी। चल भाग।

“अरे विनय, कहाँ जा रहा हो, रुको न।”

“मम्मी, उसे जाने दो। उसे जरुरी काम है।”


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