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गुलाब कि पंखुड़ियां

गुलाब कि पंखुड़ियां

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वो अलसायी हुई झुलसाती सी गर्मी कि दोपहर … चाह कर भी सो नहीं पा रही थी, तो सोचा चलो आज डायरी

लिखूं......वैसे भी काफी दिन हो गए थे लिखे, पर जैसे ही डायरी खोला गुलाब के सूखे पत्ते झरने लगे। खुशबू

तो नहीं थी उनमे......पर उन्हें देख कर मेरा मन महक उठा।

ये कॉलेज के उन यादगार पलों कि निशानी थी जो भुलाये नहीं भूलती, ये फूल मुझे उस दिन सौरब ने देते हुए अपने प्यार का इज़हार किया था। मैंने ऐसा सोचा नहीं था, उसके यकायक ऐसे करने से मैं सकपका गयी थी , कुछ बोल नहीं पायी बस शरमाते हुए गुलाबी हो गयी और वहाँ से हट गयी। उस दिन मन मे हज़ारों गुलाब मानो एक साथ खिल उठे हों ,हज़ारों घुंघरू एक साथ झंकृत हो रहे हों, रह - रह कर धड़कन तेज़ हो रही थी, घर आ कर मैं शीशे के सामने बैठी, खुद में आये अचानक बदलाव को देख रही थी,जो बस एक गुलाब के  कारन खिल उठा था। इतनी सुन्दर तो मैं कभी नहीं लगी थी, पर तभी हवा के तेज़ झोके ने मेरा ध्यान भंग किया और माँ कि बात स्मरण हो आयी ।

उन्होंने कॉलेज भेजने से पहले कहा था , "सुन बिटिया तुझे लड़कों और लड़कियों वाले कॉलेज में भेज रही हूँ ,पर कभी मेरा विश्वाश न तोड़ना ,कोई ऐसा कदम न उठाना कि फिर पछताना पड़े ,तेरे बापू ने तेरा ब्याह पहले ही तय कर दिया है ,इस बात का ध्यान रखना "

अचानक वो गुलाब गिर गया हाथों से और उसकी पंखुड़ियां बिखर गयी चारों  तरफ़, मैं ज़मीन पर बैठ गयी रात भर ऐसे ही निकल गया ,पर सुबह कि किरणों के साथ मैंने अपना फैसला ले लिया। पंखुड़ियों को डायरी में रखा, उसी के साथ सौरब कि यादों को भी और चली गयी माँ के पास और उनसे लिपट गयी।


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