लड़ना सीखो
लड़ना सीखो
जाने क्या बात थी .....घर मे सब ठीक था, कोई कमी नहीं थी,फिर भी जाने क्यों मीता सूखती जा रही थी। उसका चेहरा पीला पड़ता जा रहा था,देखो तो ऐसा लगता था अंदर ही अंदर उसे कोई दुःख है। दोस्तों ने कितना पूछा पर मीता ने बोला "अरे कोई बात नहीं है आजकल काम थोड़ा ज्यादा है इसलिए बस ", सबसे झूठ बोल देती।
पर खुद से कैसे झुठ बोले , जब भी वो एकांत मे बैठती उसे नीरू की चीखे सुनाई देती , उस रात नीरू की अस्मत लूटने की कोशिश की थी दरिंदो ने किसी तरह वो बच तो गयी पर वो टूट सी गयी, हर बार जब अँधेरा होता तो डर से चीखने लगती
"दीदी दरवाज़ा बंद कर दो, वो आ जाएंगे,मुझे ले जायेगे, दीदी ताला लगा दो, मुझे अपने पास छुपा लो,दीदी मुझे नहीं जीना"
इतनी छोटी सी उम्र मे ये क्या हो गया ? इसकी आगे की ज़िन्दगी कैसे चलेगी सोच सोच कर मीता पागल हो रही थी।
पर आज मीता ने निर्णय लिया की वो अपनी बहन को ऐसे डरी -सहमी नहीं रहने देगी ,उसमे आत्मविश्वास जगाएगी , लड़ना सीखाएगी और दूसरे ही दिन उसे कराटे क्लासेज मे दाखिला दिलवा दिया।
अब नीरू अपनी रक्षा खुद है।