गृहलक्ष्मी
गृहलक्ष्मी
जब नोटबंदी हुई तो गृहलक्ष्मी का बहुत मजाक उडा़या गया कि पति से छुपा कर कितना धन एकत्रित किया है। घरों में लड़ाइयाँ भी हुयीं। रंजन भी पीछे नहीं था इन सबमें। पहले तो पत्नी के खिलाफ मोर्चा ही खोल लिया था उसने कि छुपा कर इतना धन रखने की क्या आवश्यकता थी? आखिर कमाई तो मेरी थी न? पत्नी भी आहत हुयी और उसने आगे से छुपा कर बचत करने से तौबा कर ली। बात पुरानी हुयी तो लड़ाई तो बन्द हुयी परन्तु अब रंजन चटखारे ले ले कर मित्रों के आगे रितु की करनी बताता था। ऊपर से वह हँस देती पर उसे क्रोध भी आता। ऐसा क्यों करता है रंजन? अगर बचत की भी थी तो आड़े वक्त में काम ही आती न? सबके सामने इतना मजाक उड़ाने की क्या आवश्यकता थी? और तो और नोट बदल कर वापस तक नहीं दिये। फिजूलखर्ची में उड़ा डाले।
अब ये कोरोना जो आया तो रंजन के दफ्तर में भी छँटनी हो गयी और उसकी नौकरी चली गयी। ऐसे समय में दूसरी नौकरी मिलना आसान नहीं था। बड़ी बचत की आदत तो रंजन को थी ही नहीं। थोड़ी बहुत जमापूँजी थी उससे कब तक घर चलाया जा सकता था? हाँ रितु की कोचिंग कक्षाएँ अवश्य चल रही थीं जो अब ऑनलाइन में तब्दील हो चुकी थीं। परन्तु वह कितना कमा लेती है यह तो रंजन ने भी कभी जानने का प्रयास नहीं किया था। उसके हिसाब से वह यह कार्य अपने शौक पूरे करने के लिए करती थी जो एक टाइम पास से ज्यादा कुछ नहीं। और नोटबंदी में जो अवहेलना रंजन ने रितु की करी थी उसके बाद बचत के बारे में पूछता भी किस मुँह से?
उसे परेशान देख रितु ने कारण पूछा। थोड़ी टालमटोल के बाद रंजन ने सारा सच बता दिया। रितु मुस्करा कर बोली
"आपको इतना परेशान होने की है आवश्यकता नहीं है। मैं इतना कमा लेती हूँ कि माह के जरूरी खर्चे पूरे कर सकूँ, और लक्जरी की ऐसे कठिन समय में जरूरत ही नहीं है। मेरे पास आकस्मिक खर्चों के लिए भी इतनी बचत है कि परेशान नहीं होना पड़ेगा आपके पिछली बार के ताने मैं भूली नहीं थी पर क्या करूँ, आदत है बचत की, बदल न सकी। आप चिंता छोड़ कर नौकरी ढूँढने का प्रयत्न करिए।"
आज रंजन गर्व से अपनी पत्नी का मुखड़ा देख रहा था जो सचमुच गृहलक्ष्मी थी।