गले की फाँस
गले की फाँस
"ये क्या मिश्राजी, अगले महीने सेवानिवृत्त होने के बाद आप फिर से इसी ऑफिस में संविदा नियुक्ति चाहते हैं? लगता है चालीस साल की नौकरी करने के बाद भी आपका मन भरा नहीं।" डायरेक्टर जनरल ने मिश्राजी से मजाकिया अंदाज में पूछा।
"सर, दरअसल मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है क्योंकि अपने परिवार में कमाने वाला मैं अकेला ही हूँ।" मिश्राजी ने अपनी मजबूरी बताई।
"क्या... ? मैंने तो सुना है कि आपका बेटा रमेश बहुत होनहार स्टूडेंट है। क्या वह कुछ नहीं करता?" डायरेक्टर साहब ने आश्चर्य से पूछा।
"सिर्फ होनहार होने से ही कहाँ नौकरी मिलती है सर। कई प्रकार के आरक्षण, प्लेसमेंट एजेंसी और संविदा के बाद आजकल वैकेंसी बचती ही कहाँ है..." कहते-कहते बात उनके गले में फँसती-सी महसूस हुई क्योंकि वे भी तो किसी होनहार रमेश की सीट पर कब्जा जमाने की ही तो कोशिश कर रहे हैं।