घरौंदा।।

घरौंदा।।

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'हैलो! हैलो! कैसी है यार तू ??" फोन पर चीखते हुए मोनिका ने कहा। जानी पहचानी आवाज और बुलाने के तरीके को सुनकर सुरभि एकदम से सकते में आ गई।इतने सालों बाद मोनिका को मेरा नंबर कहां से मिला? और इतने अर्से बाद ये मुझे अचानक क्यों फोन कर रही है।कई सवाल सुरभि के दिमाग में चक्कर काटने लगे। सुरभि ने भी हैलो हैलो कह कर फ़ोन काट दिया मानो उसने कुछ सुना ही नहीं। कमरे में आकर कपड़े समेटने लगी, घर के काम निपटाने लगी ताकि मोनिका उसके दिमाग से निकल जाए।पूरा दिन सुरभि अनमनी सी रही। मोनिका के बारे में सोचकर उसको गुस्सा आने लगा। खाना खाकर कमरे में लेटे लेटे कब वो अपने कालेज के दिनों में खो गई पता ही नहीं चला।


 एक जमाने में बहुत गहन दोस्ती थी दोनों में। मोनिका बहुत ही खूबसूरत थी ऊंची कद काठी,लंबे बाल, दूधिया रंग तीखे नैन-नक्श।और उसको इस बात का अंदाजा भी था के लड़के उस पर जान छिड़कते हैं। उसे अपने खूबसूरत होने का गूरूर था। वहीं सुरभि साधारण सी दिखने में पर पढ़ाई में अव्वल।जब भी सुरभि और मोनिका साथ निकलते लोग सुरभि को मोनिका का नजर का टीका कहकर चिढ़ाते।वह मन में घुटती पर बाहर कुछ न कहती। उन्हीं के क्लास में शेखर भी पढ़ता था। सुरभि को वह बहुत पसंद था पर शेखर ने कभी सुरभि की तरफ देखा ही नहीं ।और लड़कों की तरह उसे मोनिका की खूबसूरती आकर्षक लगती।वह बहाने ढूंढता उससे बातें करने के। मोनिका कभी भी उसे तवज्जो नहीं देती। एक दिन बातों बातों में सुरभि ने मोनिका को अपने मन की बात कही के वो शेखर को पसंद करती है।

दूसरे दिन सुरभि ने देखा मोनिका शेखर से दोस्ती बढ़ा रही है, सुरभि का मन कड़वा हो गया। मोनिका अपनी खूबसूरती का गलत फायदा उठा रही थी। सुरभि के मन की बात जानकर भी वह शेखर के करीब जा रही थी और ज्यादा समय शेखर के साथ ही बिताती मानो इशारों में वह सुरभि को नीचा दिखाने का प्रयत्न कर रही हो। गलती से भी अगर सुरभि शेखर से बात करती तो मोनिका उसे झिड़क कर रख देती। मोनिका के स्वभाव में आए बदलाव के कारण सुरभि धीरे धीरे मोनिका से अलग होने लगी।

फ़ाइनल इयर के एग्जाम नजदीक आ रहे थे। सुरभि परीक्षा के साथ साथ सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गई।एक दिन अचानक मोनिका ने सुरभि को बताया की उसकी शादी तय हो गई है सुजय के साथ और वह शादी के बाद परदेस चली जाएगी हमेशा के लिए, सुरभि अवाक हो उसकी बातें सुन रही थी, फिर शेखर?? उसके साथ तुम्हारा रिश्ता? उसका क्या??

"तुम ने शेखर को बताया? " सुरभि प्रशन पे प्रशन किये जा रही थी। मोनिका ने उसे बीच में टोकते हुए कहा "शेखर मुझे वो सब नहीं दे सकता जो सुजय से शादी कर के मुझे मिलेगा।शेखर एक मामूली सा इंसान हैं मैं अपनी जिंदगी उसके दो कमरे के घर में नहीं बिता सकती।"

सुरभि विस्मित सी मोनिका को देख रही थी, " कितनी आसानी से तुमने निर्णय ले लिया मोनिका,शेखर के जज़्बात,उसकी इच्छा कुछ भी जानने की कोशिश नहीं की, कैसे तुम उसके दिल से खेल सकती हो कैसे अकेली निर्णय ले सकती हो,तुम सब कुछ जानकर ही शेखर के करीब गयी थीं ना?"


'अरे बस मैडम बस तुम तो चढ़ी जा रही हो मुझे पे।"


मोनिका ने झुंझलाकर कहा।शेखर और मेरे बीच जो है उससे तुम्हारा क्या लेना-देना? कहीं तुम शेखर को प्यार तो नहीं करती ,?कह कर एक विषैली हंसी हंसने लगी मोनिका।मोनिका के मुंह से कड़वी बातें सुन कर सुरभि को रोना आ गया पर शेखर का क्या होगा जिसने मोनिका को अपना सब कुछ मान लिया था ये सोच कर सुरभि का दिल दहल गया उसने गिड़गिड़ाते हुए मोनिका से कहा "परिक्षाएं नजदीक है अगर तुम ने अपनी शादी की बात उससे कहीं तो वह टूट जायेगा और उसका साल बर्बाद हो जाएगा तुम अभी उससे कुछ मत कहना।" कहते हुए सुरभि रो पड़ी।पर मोनिका तो अपने घमंड में चूर थी। सुरभि की एक न मानी और अगले दिन कालेज की केंटीन में शेखर के साथ बैठी काफी पी रही थी, अपनी हीरे की अंगूठी दिखा रही थी। सुरभि भी केंटीन में मौजूद थीं पर अपनी पढ़ाई में मग्न थी। ऊंची आवाज में चीखते शेखर की आवाज से सुरभि का ध्यान टूटा।शेखर और मोनिका लड़ रहे थे "तुम मुझे वो खुशियां नहीं दे सकते शेखर,और सिर्फ प्यार के भरोसे जिंदगी नही जी जाती।"  "तो मुझसे प्यार क्यों किया मोनिका?" शेखर चीख रहा था।"वो मेरा बचपना था शेखर।सुजय ने मंगनी में मुझे हीरे की अंगूठी पहनाई और वो अमेरिका में नौकरी करता है।तुम दे पाओगे मुझे ऐसी खुशियां?" मोनिका निष्ठुर होकर बातें कर रही थी।सुरभि समझ गई के मोनिका ने अपनी शादी की बात शेखर को बता दिया। इससे पहले सुरभि कुछ कह पाती शेखर गुस्से में बाहर चला गया। सुरभि ने बहुत कोशिश की पर शेखर ने फोन नहीं उठाया और न ही कालेज आया। मोनिका ने परीक्षा के बीच में ही शादी कर ली परीक्षा के परिणाम आते ही सुजय के साथ अपना नया जीवन शुरू करने परदेस चली गई।शेखर ने परीक्षा नहीं दी और कहां गया पता भी नहीं चला। सुरभि अच्छे नंबर से पास होकर सरकारी नौकरी में लग गई । 


२साल बाद---


सुरभि के माता-पिता उसके लिए सुयोग्य वर ढूंढने लगे उनमें से उन्होंने एक वर चुनकर उसकी तस्वीर और जानकारी वाली पर्ची सुरभि के कमरे में रख दी।आफिस से आकर सुरभि ने देखा और तस्वीर और पर्ची हाथ में लिए धम से बिस्तर पर बैठ गई। तस्वीर शेखर की थी और वह मुंबई में नौकरी कर रहा है। रिश्ता शेखर के माता-पिता ने भेजा था।रात भर सुरभि सोचती रही शेखर से जरूर उसका पहले का नाता है नहीं तो जिंदगी इतनी आगे बढ़ जाने के बाद अचानक से शेखर का उसकी जिंदगी में वापस आना कोई चमत्कार से कम नहीं है।सुबह उठ कर सुरभि ने शादी के लिए हामी दे दी। कुछ महीनों बाद दोनों परिवारों ने मिलकर धूमधाम से सुरभि और शेखर की शादी की और नवयुगल अपनी नयी जिंदगी शुरू करने मुंबई आ गया।

पहली रात को शेखर ने सुरभि का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा" मेरा वर्तमान और भविष्य दोनों तुम हो मेरे और मोनिका बारे में तुम्हे सब कुछ पता है और फिर भी तुमने मुझे अपनाया है थैंक्यू सुरभि!! मोनिका मेरा गुजरा हुआ कड़वा कल थी और तुम मेरा सुनहरा भविष्य। मैं वादा करता हूं मेरा गुजरा कल हमारी नयी जिंदगी पर कभी हावी नहीं होगा।" सुरभि ने शेखर से कहा "तुम्हारे साथ मेरी जिंदगी बहुत खूबसूरत होगी मुझे पूरा यकीन है।" और दोनों पूरी रात आनेवाली जिंदगी के सपने बुनते रहे।

दोनों ने मिलकर एक खूबसूरत सा घरौंदा बनाया और एक दुसरे पर भरोसे, प्यार और सम्मान के साथ ५ साल गुजार दिए।


वर्तमान में--


दरवाजे की घंटी लगातार बजती रही, सुरभि हड़बड़ा कर उठी, पूरा घर अंधेरे में था। पुरानी यादों में कब उसकी आंख लग गई पता नहीं चला और शेखर दरवाजे पर कब से घंटी बजा रहा होगा सोचते सोचते वो अपनी चुन्नी ठीक करती दरवाजे की ओर भागी।शेखर चिंतित सा दरवाजा पर खडा था। दरवाजे खुलते ही शेखर ने प्रश्नों की बौछार कर दी "क्या हुआ सुरभि तबियत ठीक नहीं है क्या? सारा घर अंधेरे में है?तुम ठीक हो ना?"

"अरे बस बाबामैं ठीक हूं तुम अंदर तो आओ।" कहते हुए सुरभि ने शेखर के हाथों से बैग लिया।कमरों में रौशनी कर सुरभि रसोई में चाय बनाने लगी। पीछे से शेखर ने आकर उसके माथे को छुआ और देखने लगा की बुखार तो नहीं। तसल्ली होने पर वह सुरभि को हाल में बिठाकर खुद दोनों के लिए चाय ले आया। सुरभि शेखर के प्यार और स्नेह देखकर रो पड़ी,अचानक से सुरभि को रोते देख शेखर घबरा गया "क्या हुआ सुरभि ?कुछ तो गड़बड़ है ?मुझे नहीं बताओगी?" शेखर ने कहा

कुछ नहीं तुम्हारे स्नेह को देख कर आंखे भर आई।शेखर ने एक मीठी चपत लगाई और कहा पागल हो तुम। सुरभि ने जैसे तैसे बात को घुमा दिया।

अगले दिन शेखर के आफिस जाने के बाद सुरभि घर से अपना काम देख रही थी के फोन की घंटी बजी, हैलो !! सुरभि ने कहा। "अरे यार ! कल मेरा फ़ोन क्यों काटा तुमने" कहते हुए मोनिका सुरभि को झिड़क रही थी। "काटा नहीं नेटवर्क प्राब्लम था,कहो कैसी हो तुम इतने सालों बाद कैसे याद किया ?" सुरभि ने पूछा । 

"मै वापस आ गई हमेशा के लिए, सुजय से मेरी ज़मीं नहीं, मैं किसी की ग़ुलाम बनकर नहीं रह सकती हमने अपने रास्ते अलग कर लिए।कल तुम्हारे घर गई थी सोचा तुमसे मिल लूं अंकल जी ने बताया तुम्हारी शादी हो गई और तुम मुंबई में हो, मैं ने नंबर उन्हीं से लिया। मैं कल मुंबई आ रही हूं तुमसे मिलने और नयी नौकरी खोजने।अच्छा तुम्हें पता है क्या शेखर कहाँ है?" उसके अचानक आए सवाल से सुरभि सकपका गई। कैसे कहे की वो और शेखर अब पति पत्नी है, सोचते सोचते सुरभि ने फोन काट दिया। विचारों की ऊहापोह में उलझकर उसने दोपहर खाना भी नहीं बनाया।

मोनिका क्या शेखर की जिंदगी में वापस आ गई है। क्या शेखर मुझे छोड़कर उसके पास चला जाएगा, क्या मोनिका शेखर को उससे छीन ले जाएगी, एसी न जाने कितने विचार उसके दिमाग में पूरा दिन घूमते रहे।शाम को शेखर ने आकर देखा घर अस्त-व्यस्त है, बर्तन भी वैसा ही रखा है सुरभि ने खाना नहीं खाया और सुरभि अनमनी सी बैठक में बैठी है। अनहोनी की आशंकाओं से भरे शेखर ने सुरभि को झकझोरा। 

सुरभि शेखर को पकड़ कर रोने लगी और उसे सब सच सच बता दिया।शेखर सुरभि को बाहों में भरकर हंसने लगा। सुरभि कुछ समझ न पायी।हमारा प्यार क्या इतना कमजोर है सुरभि जो किसी मोनिका के आने से टूट जाए, तुमने सोच भी कैसे लिया के मैं मोनिका के पास चला जाउंगा। तुमसे बेहतर जीवन साथी मुझे कभी नहीं मिल सकता था। तुमने मेरे जीवन को इतनी खूबसूरती से सजाया और महकाया है के मोनिका जैसे बुरे सपने की इसमें कोई जगह नहीं है।शेखर की बातें सुन सुरभि को थोड़ा हल्का महसूस हुआ।

अगले दिन सुरभि पूरे आत्मविश्वास के साथ तैयार थी मोनिका से मिलने के लिए। मोनिका ने फोन पर अपने आने की इतला दी सुरभि ने अपने घर का पता उसे बताया।

घर के दरवाज़े पर "सुरभि शेखर निवास " देखकर मोनिका ठिठक गई। फिर भी अपने विचारों को झटक कर उसने दरवाज़े पर दस्तक दी।

मुस्कुराते हुए सुरभि ने दरवाजा खोला और मोनिका को गले लगाया और अंदर बुलाया। सुरभि के मन की सारी शंकाएं मिट गई और वो पूरी आत्मविश्वास से भरी हुई थी, वहीं मोनिका किसी शंका से ग्रसित लगी।

बैठक में मोनिका को बिठाकर सुरभि ने शेखर को आवाज दी। मोनिका पूरे घर का निरीक्षण करने लगी, छोटे से घर में जरुरत की चीजें बड़े करीने से सजी हुई और हर कोने में सुरभि और शेखर की प्यार भरी तस्वीरें।शेखर के आते ही मोनिका के चहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।पर शेखर ने बड़ी गर्म जोशी से मोनिका से हाथ मिलाया मोनिका को काटो तो खून नहीं , उसके चहरे पर आत्मग्लानि और शर्मिंदगी साफ झलक रही थी। "ओह!! तो तुमने मेरे जाने के बाद मेरे छोड़े हुए प्यार से शादी कर ली । बड़ी चालाक निकली तुम सुरभि। शेखर तुम क्या सच में मुझे भूल चुके हो? सुरभि के साथ तुम खुश हो या ढोंग कर रहे हो? क्या सुरभि ने तुम्हें वो खुशियां दी जो मैंने तुम्हें उन दो सालों में दिए थे जब हम कालेज में थे?" मोनिका अपनी जुबान से जहर उगल रही थी क्योंकि उसके पास कुछ नहीं बचा था और वो अपमानित महसूस कर रही थी।

पर सुरभि और शेखर पर उसकी बातों का कोई असर नहीं हुआ।शेखर ने सुरभि का हाथ थामा और मोनिका कि आंखों में आंखें डालकर कहा" हम जिंदगी में बहुत आगे निकल आए हैं मोनिका अब इन प्रश्नों के कोई मायने नहीं है। बिना किसी अपराध के,तुम मुझे ठुकराकर , अपमानित कर मेरी जिंदगी से चली गई क्योंकि मैं तुम्हारे काबिल नहीं था।उसकी कचोट मेरे मन में कई सालों तक थी पर सुरभि के प्यार, परवाह, आत्मियता और उसके विश्वास ने तुम्हारे दिए हर दर्द, अपमान और कचोट को धूमिल कर दिया।अब मुझे तुमसे कोई उम्मीद, कोई लगाव,कोई शिकायत नहीं।हम हमारे छोटे से घरौंदा मैं बहुत खुश और संतुष्ट हैं। सुरभि कि खुशियां जीवन की छोटी छोटी बातों में है, उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की दिखावटी चीज़ों के लिए।"

मोनिका को शेखर की बातें तीर जैसी चुभने लगी। "मैं तुम्हारे जिंदगी में वापस आना चाहती थी शेखर,सुजय मेरी गलती था। मैंने उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया" मोनिका गिड़गिड़ाने लगी।।

"तुम बहुत स्वार्थी और स्वकेन्द्रित हो मोनिका हमेशा अपनी खुशी के बारे में सोचा। अपनी खूबसूरती का घमंड था तुमको, प्यार से ज्यादा दिखावटी पन से मोहब्बत थी तुम्हें।तुम सही थी मैं तुम्हारे काबिल नहीं था और शायद हो भी नहीं सकता। सुरभि ने मुझे मेरे कमियों के साथ अपनाया ये जानते हुए भी के मैं तुम्हें बेइंतहा मोहब्बत करता था।हम बहुत खुश हैं एक दूसरे के साथ। सुरभि से बेहतर मेरे लिए कोई और नहीं हो सकता।" शेखर की बातों से मोनिका शर्म से पानी-पानी होने लगी।

"तुम आई, तुमसे मिलकर हमें अच्छा लगा।और भविष्य में तुमसे दोबारा मिलने की संभावना नहीं है।तुम जहां भी रहो खुश रहो" कहकर शेखर दरवाजे की तरफ मुड़ा। अपमान का घूंट पीकर मोनिका रोती हुई वहां से चली गई।इस मेहमान को विदा कर शेखर के मन को बहुत सुकून मिला।

रात को शेखर की बाहों में सिमट कर सुरभि सोचने लगी लंबे तूफान के बाद एक गहरी शांति का अनुभव हो रहा है।अब कोई शंकाएं नहीं कोई प्रशन नहीं।शेखर और मेरी दुनिया भरोसे, प्यार और विश्वास की मज़बूत नींव पर बनी है।अतीत के सारे पन्ने शेखर ने समेटकर कर दफन कर दिए।अब सिर्फ खुशियां हैं और उजला सवेरा है।


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