सांझ के साथी

सांझ के साथी

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सुलझा हुआ व्यक्तित्व, कठोर चेहरा, सिकुड़ी भौंहे और मोटे काले फ्रेम का चश्मा, घने काले बाल जो मजबूत जुड़े में बंधे हुए मानो अपनी आजादी की राह तक रहे हो। कलफ लगी हल्के रंग की सूती की साड़ी और सफेद ब्लाउज, हाथों में रजिस्टर, चाक की डिब्बी पकड़े हमेशा हवा के तेज झोंके की तरह प्रवेश करती है क्लास में, कुछ ४५-५० की होंगी, ये है हमारी मंजुला मैडम। उनके क्लास में आते ही तूफान के पहले की शांति छा जाती है। हम लड़कियों में वो बहुत क्रूर मैडम की तरह विख्यात है। हम सब उनसे बहुत डरते है उनके कठोर व्यक्तित्व की वजह से। कभी हंसी नहीं देखी उनके चेहरे पर।


मंजुला मैडम बहुत अच्छा पढ़ाती है सप्ताह में दो दिन हमारी क्लास लेती है। प्रश्न भी बहुत पूछती है। अपने आतंकित करने वाले स्वर से जब कुछ पूछती है तो आते हुए उत्तर भी हम भूल जाते है। निरुत्तर होकर हमारी गर्दन झुक जाती है। गुस्से में फिर मैडम चिल्ला कर कहती, “इतना समझाकर पढाती हूं फिर भी तुम लोग उत्तर नहीं देती। तुम लोग बेवकूफ हो या मुझे पढाना नहीं आता है। वो तो अच्छा है की सुधा है इस कक्षा में वरना मैं कभी नहीं आती इस क्लास में पढ़ाने।” सुधा हमेशा प्रयत्न में रहती की वो मैडम के प्रश्नों के उत्तर दे सके। 


सुधा बाकी लड़कियों की तरह मंजुला मैडम को सख्त नहीं मानती।वो हमेशा उनसे कहती मैडम के इस कठोर व्यक्तित्व के पीछे कुछ कारण है तुम लोग बेवजह उन्हें गलत मत समझो। सब उसे मैडम की चमची कह कर छेड़ते।


एक दिन हम सभी लड़कियां मंजुला मैडम की बुराई करने में लगी थी। सब अपना राग आलाप रही थी, मैडम बहुत दुष्ट है, कठोर है, बहुत डांटती है, सैडिस्ट है, ऐसे जताती है मानो पढ़ाकर हम पर एहसान कर रही है। उन्हें किसी साइकियाट्रिस्ट के पास ले जाना चाहिए। सब अपनी भड़ास निकालने में लगी थी तभी अचानक से सुधा आ गई जो अब तक अपने को संयमित रखी हुई थी। लाल तमतमाता चेहरा लिए वो हमारे बीच आई और जोर से चिल्लाकर कहा, "क्या जानती हो तुम लोग मैडम के बारे में जो इतना बुरा-भला कह रही हो?”


हम में से एक लड़की ने कहा, “तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मैडम तुम्हारी सगी है।”


“मंजुला मैडम मेरी संरक्षिका है। मुझे और मेरी मां को गांव से लाकर सहारा दिया और मुझे पढ़ा रही है।” सब अवाक हो गई। सुधा ने उनकी कहानी बतानी शुरू की।


मैडम मेरे ही गांव की है और छह भाई बहनों में सबसे से बड़ी है। अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाई और उनके माता-पिता एक र्दुघटना में मारे गए। सब भाई-बहनों की जिम्मेदारी मैडम पर आ गई। सबको सेटल करने में वो इतनी विलीन हो गई की अपने बारे में कभी सोचा नहीं। उनके भाई-बहन सब सेटल तो हो गए पर अपनी दीदी के बारे में कभी नहीं सोचा।


वो सख्त न होती तो अपने भाई-बहनों को अनुशासित न कर पाती। अपनी इच्छाओं को दबाते हुए वह स्ट्रिक्ट हो गई।” सब अवाक होकर मंजुला मैडम की कहानी सुन रहीं थी।


तभी नये सर मिस्टर खन्ना हमारे कक्षा में प्रवेश करते है, हम सब हड़बड़ा कर अपने बेंच पर बैठ गये। सर अपना औपचारिक परिचय देते है और हमारे नाम जानने की कोशिश करते है। हम सबको खन्ना सर एक ही परिचय में अच्छे लगने लगे। सरल स्वभाव, दोस्ताना व्यवहार, ऊंचा कद ५५ साल के लगभग होंगे। मंजुला मैडम के एकदम विपरीत है खन्ना सर।


फिर कालेज के कल्चरल फंक्शन में सर ने हम लड़कियों का खूब उत्साह बढ़ाया। अपने आकर्षक व्यक्तित्व और मिलनसार स्वभाव की वजह से खन्ना सर बहुत ही जल्द कालेज में प्रख्यात हो गये। मंजुला मैडम से भी उनकी दोस्ती हो गई। साथ उठते-बैठते दोनों अच्छे मित्र बन गये।


मंजुला मैडम की तरफ खन्ना सर का झुकाव भी और लगाव भी हमें दिखने लगा। और ये लगाव मंजुला मैडम में सकारात्मक परिवर्तन लाने लगा।मैडम मुस्कुराने लगी, सख्त चेहरा थोड़ा सौम्य लगने लगा। मजबूत जूडा अब ढीली लहराती चोटी हो गया, सख्त आंखों में काजल की धार दिखने लगी, कलफ लगी साडी के साथ अब मैचिंग ब्लाउज पहनने लगी, प्यार में सच में इतनी ताकत है के एक सख्त इंसान को भी कोमल बना दे। हम सब मैडम में आये बदलाव को लेकर खुश और आश्चर्यचकित थी।


घर पर भी मैडम का परिवार ये बदलाव महसूस करने लगा, दबी जबान में भाभियां बात करने लगी, "बुढ़ापे में ये कैसी सनक चढ़ी है दीदी को!”


भाईयों ने जोर से चिल्लाकर अपनी अपनी बीवीयों को फटकार लगाई और कहा, “आज जो आराम की जिंदगी तुम जी रहीं हों वो हमारी दीदी के त्याग और तपस्या का फल है जो उन्होंने हमारे लिए किए। अब उनकी जिंदगी में खुशियां आ रही है, तो हमें सम्मान के साथ उनका निर्णय अपनाना चाहिए।”


कुछ महीनों बाद...


हम सब लड़कियां स्टेज पे खड़े होकर अपने फेवरेट खन्ना सर और खडूस (पुरानी) मंजुला मैडम (अब वो भी हमारी फेवरेट हो रही है) को उनके नये जीवन की शुरुआत पे बधाई दे रहे है। सच ही है सच्चा प्यार कभी भी किसी भी रूप में आ सकता है।


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