घर, पुरुष व स्त्री
घर, पुरुष व स्त्री
एक मृत शरीर पर सफ़ेद चादर आज किसी ने उढ़ा दी । कौन था वह ? मालूम नहीं । कितने दिनों से यही क्रम चलता रहा था । ऐसे ही अनगिनत शवों पर अनेक नाम अंकित थे । दूर से ही धुंधले होते रिश्तों के समीप जाने की मनाही थी ।
एक स्त्री को देखा तो सन्न रह गया ,मुंह में मास्क लगा हुआ था ; धूमिल सी छवि आकृति प्रतिलक्षित होती थी ।
दो हाथ स्त्री की ओर बढ़े और उसे पीछे को धकेलने लगे । वह शवगृह की ओर मुड़ना चाहती थी , परंतु , उसे वापस खींचा जा रहा था । मोर्चरी स्त्री की चित्कार सुनाई दे रही थी । स्वप्न के टूटने की आवाजें नहीं होती ।
उसे याद आने लगा यह तो वही है जिसको उसने मंगलसूत्र पहनाया था ,दो मासूम बच्चों की प्यारी मां ,बच्चे स्कूल जाते थे ,कोरोना महामारी में बेरोज़गारी ,सड़क पर जीजिविषा के जद्दोजहद में खाने का ठेला लगाया । खून पसीने की कमाई से अर्जित धन किया भी वो निजी हस्पताल ने ऑक्सीजन सिलेंडर व वेंटिलेटर के खर्च में भुनवा लिया था ।
जीवन को जीने के लिए कितनी मशक्कत उठानी पड़ी अंत में दो आंसू व सुख चैन छिन जाने के अलावा क्या मिला ..?
इलाज के नाम पर सरकार ने भी हाथों को तंग कर लिया । खाने में गेंहू मिला चावल मिला,राशन भी मिला । गरीब को ढांढस ना मिला, समस्त जीवन को झंझावातों ने आकर घेर लिया । उससे घर व घर से घरवाले छिन चुके थे ।
आज एक निजी संस्था ने एक कार्यक्रम की शिरकत के लिए कोरोना के दौरान हुई लोगों के घरवालों को बुलाया तो था । क्यों? मालूम नहीं । घर के हाउस लोन को माफ तो कर दिए हैं , एक मकान पा लिया है परंतु, बिजली और पानी के बिल का क्या ? उसका हिसाब कौन करेगा ? बच्चे या पत्नी ? वह स्त्री जिसे कभी पति ने नौकरी के लिए बाहर नहीं जाने दिया था । भीख से पेटभर सकता है परंतु भविष्य नहीं सुधर सकता है ।
आंखों में आंसू लिए वो भी किस कर्म की सजा पा रहा था । उसका शरीर धीरे -धीरे धुंआ होने लगा । ईश्वर से उसने कुछ पूछना चाहा तो ईश्वर की आवाज़ सुनाई दी ," --फिर जाना है क्या ?"
उसने धीरे से कहा ," -नहीं अब नहीं .!जो पाया था वो खो चुका हूं ..! मिथ्या का सत्य जानकर क्या भला होगा ?"