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Jisha Rajesh

Drama

3  

Jisha Rajesh

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घर की राह

घर की राह

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"आज को घर को बड़ा सजा कर रखा है तुमने," विकास ने अपने फ्लेट दाखिल होते ही वहाँ लगे गुब्बारों और मोमबत्तियों की ओर अचरज भरी नज़रों से देखते हुए अपनी पत्नी आशा से पूछा, "क्या बात है ?"

आशा का चेहरा उतरा हुआ था। उसने दीवार पर टँगी घड़ी की ओर देखा। रात के डेढ़ बजे थे। उसने विकास से नज़रें फ़ेर ली और उसकी तरफ़ पीठ कर खड़ी हो गयी।

"आप फ़िर भूल गए न," आशा ने करूण-स्वर में कहा, "आज हमारी बेटी साक्षी का जन्मदिन था।"

"अरे !" विकास ने अपने सिर पर हाथ रख लिया, "क्या करूँ, दफ्तर में इतना काम जो रहता है। चलो अब देर मत करो। मुझे कल सुबह जल्दी जाना है।"

"विकास," आशा जल्दी से उसके पीछे चल दी, "परसों पापा का अॅपरेशन है। आप हमारे साथ चलिए न। पापा बहुत ड़रे हुए है।"

"देखो आशा," विकास ने ठण्ड़े स्वर में कहा, "वह सब तुम संभाल लेना। परसों मुझे दफ्तर में कुछ बहुत ज़रूरी काम है।"

अगले दिन सुबह विकास ने अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट अपने बाॅस को दिखाई जो उसने दिन-रात एक कर तैयार की थी।

"तुमने बहुत अच्छा काम किया है।" बाॅस ने गंभीर स्वर में कहा, "पर यह कॅन्ट्रेक्ट हम किसी और को दे चुके है।"

"आप ऐसा कैसै कर सकते हैं ?" विकास विचलित हो गया। "मेरा सारा परिश्रम विफ़ल हो जाएगा।"

"व्यापार भावनाओं में बहकर नही किया जाता, विकास।" बाॅस ने उसे बाहर जाने का ईशारा किया।

विकास अपने कक्ष में आकर बैठ गया। मन में एक अजीब सी शून्यता थी। वह सोच में पड़ गया। क्या उसने सिर्फ एक काॅन्ट्रेक्ट ही खोया है या कुछ और भी?

"हाँ !" उसके मन से निकली आवाज़ ने विकास को चौंका दिया। "तुमने बहुत कुछ खो दिया है, विकास। तुम रात-दिन काम में लगे रहे। अपने परिवार को बिल्कुल भूल गए । इस कारण तुमने अपनो का प्यार खो दिया। वे खूबसूरत पल खो दिए जो जीवन को यादगार बनाते है। काम और सफ़लता प्राप्त करने के मौके जीवन में और भी मिल जायेंगे पर वे क्षण कभी वापस नही आयेंगे। अब तुम केवल एक मशीन बन चुके हो। तुम में अब न मानवता है न संवेदनाऐं। समय रहते अपने आप को संभाल लो नहीं तो फ़िर मौका न मिलेगा।"

"अरे आज आप इतनी जल्दी कैसै लौट आए?" फ्लेट का दरवाज़ा खोलते ही आशा बोली। सदैव देर रात को आने वाले विकास को शाम ही को घर पर पाकर आशा हैरान हो गयी।

"मुझे क्षमा कर दो, आशा।" विकास ने अपने हाथ जोड़े। "मैं घर की राह भूल गया था। किन्तु अब वापस आ गया हूँ।"

"सुबह का भूला जब शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।" आशा ने हँसते हुए विकास को गले से लगा लिया।


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