गहना

गहना

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"अब कौन समझाए इस पगली लड़की को, नारी स्वतंत्रता का अलख जगायेंगी, ऐसे आती है क्रांति।" अम्मा किसी काम से छत पर आई, देखा सामने की छत पर बैठे तीन चार लड़के उनकी छत पर फैले कपड़ों की ओर इशारा कर हँस रहे है। उनकी भाव भंगिमा से स्पष्ट था की उनकी बातों का विषय कोई सात्विक नहीं है। लग रहा था जैसे कोई शर्त लगा रहे हो। उन्हे देखकर वो लड़के खिसक लिये। बिटिया रानी ने जो अपने अंतर वस्त्र अलगनी के ऊपर खुले मे सूखने डाले है, लड़कों के लिये यही मसाला विषय है। बड़बड़ाते हुए अम्मा उसके उन कपड़ों को थोड़ा पीछे सरका रही थी की बिटिया ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया। बोली--"क्यों पीछे किये मेरे कपड़े। आदमी भी अपने अधोवस्त्र खुले में डालते है। बनियान उतार के घूमते है ,उनको शर्म क्यो नहीं आती।" अम्मा ने समझाया --"हमारे शास्त्रों में स्त्री पुरुषों के लिये जो नियम कायदे बने वो निराधार तो नहीं हो सकते। ईश्वर ने स्त्री पुरुष की जो संरचना की, सोच विचार के ही की होगी। जब देवता ही अपनी भावनाओं को वश मे नहीं रख पाते, ये तो इन्सान है।" बिटिया रानी कुछ कहती कि अम्मा बोल पड़ी --"बेटा स्पर्धा के लिये बहुत विस्तृत क्षेत्र फैला पड़ा है। डट जाओ मैदान में, बढ़ो आगे। पर याद रखो अपनी निडरता,और शालीनता का गहना अपने साथ रखो।"


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