गेली
गेली
गोलू खाना खाने बैठा ही था कि एक गिलहरी उछलती हुई थाली के सामने आ गई। ये देखकर गोलू को अच्छा लगा उसने एक निवाला उसकी तरफ बढ़ा दिया। गिलहरी ने निवाले का अल्प सा हिस्सा खाया और उछलकर गोलू की गोद मे आ गई।
ये देखकर गोलू बेहद खुश हुआ।
अब गोलू को अपना खास दोस्त मिल चुका था।
अब रोज स्कूल से आते ही दोस्त के साथ देर तक खेलना
गोद मे लेकर उसे नहलाना, खाना खिलाना उसकी
दिनचर्या का एक हिस्सा बन चुका था।
अपने दोस्तों से कहता 'मैं गोलू हूँ और ये मेरी गेली हैं'।
अब गेली भी उसके घर का एक हिस्सा बन गई थी।
मगर गहरी दोस्ती को नजर भी बहुत जल्दी लगती हैं, दोपहर के वक़्त घर मे खेल रही थी खेलते खेलते घर
से बाहर आ गई ,तभी एक काले कुत्ते ने उसपर झपट्टा मार लिया।
पूरे परिवार में जैसे सन्नाटा छा गया।
गोलू के रोते रहने से आंखे सूज गई, तबीयत खराब हो गई। परिवार वाले उसे भूल जाने को कह रहे थे ,
मगर गोलू कैसे भूल जाये। "कहते हैं वक़्त हर ज़ख्म को भर देता हैं"। दिन महीने साल आखिर बीत गए।
गोलू अब गोकूल हो गया था। शादी हो गई, बच्चे भी बड़े हो गए थे।।
गोकुल को किसी काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ा।
दोपहर का वक़्त था बरगद के नीचे बैठकर विश्राम कर रहा था। ठंडी हवा के कारण आंख लग गई।
अचानक पैरों पर किसी के चलने का अहसास हुआ।
झट से बैठ गया और पैरों की तरफ देखा तो
आंखें खुली की खुली रह गई।
पैरों पर एक नन्ही गिलहरी फुदक रही थीं।
क्षण भर में बीती यादें नज़रों के सामने घूम गई।
ओर यकायक चेहरे पे खुशी की लहर दौड़ गई।
उसे बचपन की दोस्त गेली जो मिल गई थी।
