एपिसोड-५ शालू...,"द अन्
एपिसोड-५ शालू...,"द अन्
"राधे घर पहुंचते ही अपने-आपको कमरे में बंद कर लेता है। बोहोत ग्लानि महसूस करता है । दोस्तों को भेज देता है। यहां पंचों में आपस में सलाह-मशविरा होता रहता है ।
"वैध जी का छोटा बेटा सहर से भाई के साथ लौट आता है। कुछ दिनों से उसने "सालू का बहुत बारीकी से निरीक्षण किया है। 'त्रिभुवन ने छुप-छुपकर देखा कौणो छोरी है,जो निर्भीक, दुस्साहसी अपने चरित्र की दृढ़ता पूर्वक रक्षा करने वाली' "फिदा हो जाता है...,
जब एक दिन खलिहान में सालू घास ढ़ेर पर बैठी हुई दुनिया-जहान से बेखबर गन्ना छिलकर खा रही थी। सुन्दरता ऐसी की गदराया बदन शरीर को जैसे किसी मूर्तिकार ने बोहोत फुर्सत में तराशा हो,दूध सी रंगत हाथ लगाए तो मैली हो जाए। ऐसा रुप-रंग दिया था। "ईश्वर ने उसे**
पंच गवाहों से पूछताछ करते हैं। सिर्फ राधे के दोस्त ही उसके पक्ष में गवाही देते हैं। गांव की लुगाईयों का मत तो सालू की तरफ रहता है। राधे की सताई हुई रहती है चाहे शादीशुदा हो या कुंवारी एक सुर में कहती है,सालू निर्दोष है।
"सालू से भी उसका पक्ष रखने को कहते हैं पंच छोरी तूणे कछु कहना है? "सालू बैखोफ कहती है । म्हारा तो ये कहना के छोरी अपनी इज्जत की खातिर किसी दरिंदें से बचने के लिए जो कर सके वो म्हाणे किया। म्हाणे कौणों पाप णी किया।
पंचों का फैसला पुरुष प्रधान समाज के हिसाब से ही आता है ।सालू के घर वालों का **हुक्का-पानी बंद**कर दिया जाता है। सालू को पूरे गांव में "मुंह काला"कर के गांव में घूमाया जाए।
सालू ने तो माइक वाले सरपंच से माइक छीना और कहने लागी ; देखो बहणों मेरा पक्ष जाणे बिणा ही फैसला लेना कहां का न्याय है ।
आपण लोगंही बतावा कि छोरी की इज्जत सारे आम उतारी जावे और ये **खाप पंचायतें**ये फैसला देवें । मैं धरने पर बैठी रही हूं।अब क्ररांती होवेगी (क्रांति) या तो ….;
अब आगे ...