एलियन

एलियन

3 mins
233


मैं अपने यान में बैठा अपनी मातृभूमि में हज़ारों विस्फोट होते हुए देख रहा था। मैं धरती से करोड़ों मील दूर एक ग्रह पर रहता था जो कि एक दूसरी गैलेक्सी में था। हमारा ग्रह काफी विकसित था। टेक्नोलॉजी में पृथ्वी से बहुत आगे था। असल में एक एस्टेरॉइड के टकरा जाने के कारन ग्रह पूरी तरह नष्ट हो गया था। कुछ ही लोग थे जो भीषण टक्कर में से निकल पाए थे, उनमें से एक मैं भी था।

जो लोग बच पाए थे उनका कोई आपस में संपर्क भी नहीं हो सकता था क्योंकि ग्रह के सारे उपकरण विस्फोटों से नष्ट हो गए थे। सब लोक बस अपने अपने यान से जिस दिशा में भाग सकते थे भाग लिए।  मेरे लिए ये एक बड़ी चुनौती और जरुरत थी कि ऐसा ग्रह मिले जहाँ मैं आराम से रह सकूं। रास्ते में लाखों गैलेक्सी आयीं पर कोई भी रहने लायक नहीं थी। मैंने आकाश गंगा गैलेक्सी में प्रवेश किया और देखते देखते सोर मंडल में पहुंच गया। तब सूरज से कुछ दूरी पर मुझे एक लाल सा दिखने वाला ग्रह मिला जिस पर रहा जा सकता था, ये मंगल ग्रह था। कुछ देर मैं वहां रहा पर वहां तूफ़ान बहुत आते रहते थे, दूसरा वहां कोई प्राणी नहीं रहता था इसलिए मेरा मन नहीं लगता था। मैं फिर यान में बैठ कर सफर पर निकल पड़ा। 

थोड़ी दूर ही गया था कि एक नीला सुंदर सा गोला दिखाई दिया। मैंने अपना यान वहां पर उतर दिया। ये वो पृथ्वी थी जिस पर में पिछले १२० वर्षों से रह रहा हूँ। असल में मैं यहाँ वर्ष १९०० में आया था। हमारे ग्रह के लोगों की उम्र अमूनन २००-३०० वर्ष होती है और हम अपनी शकल कैसी भी बना सकते हैं, हमारे ऊपर उम्र का असर भी नहीं होता और हम सारी उम्र निरोग रहते हैं। 

इस ग्रह पर बहुत चहल पहल थी और मैंने मनुष्य का रूप धारण कर लिया।

मैं अलग अलग जगहों पर गया। समुन्दर तट मुझे बहुत अच्छे लगत थे। जब में सहारा के रेगिस्तान गया तो अपनी मातृभूमि याद आ गयी क्योंकि दिखने में वो वैसा ही था। निआग्रा फाल्स पर भी मैंने कुछ समय बिताया और एंजेल फाल्स पर तो मैं पूरा साल रहा। इजिप्ट के पिरामिड्स को देख कर लगा शायद ये किसी मेरे जैसी एलियन सभ्यता की मदद से बने हैं। धरती के जंगल और वन जीवन को देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता था और मैंने अपना बाकी का जीवन यहीं बिताने का फैसला किया। मैं जहाँ भी जाता था वहां की भाषा जल्दी ही सीख लेता था। 

फिर कुछ साल बाद वर्ल्ड वॉर फर्स्ट शुरू हो गयी और उसकी तबाही देख कर मन बहुत दुखी हुआ और जब दूसरे विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम से हमला हुआ तो अपने ग्रह के विस्फोटों का मंजर आँखों के सामने आ गया। उसके बाद परमाणु हत्यारों की दौड़ शुरू हो गयी तब लगा कि शायद पृथ्वी का भविष्य भी सुरक्षित नहीं है और ऐसा लगा शायद मुझे कोई और ग्रह ढूंढ़ना पड़ेगा। मैं कुछ नहीं कर सकता था। मेरा मन काफी अशांत रहने लगा। आदमी काफी लालची भी हो गया था। वो अपने फायदे के लिए जंगल काट रहा था और हवा और पानी को दूषित कर रहा था।

मैं काफी दुखी था। तभी किसी के कहने पर मैं शान्ति की खोज में मैं हिमालय पर आ गया। मेरा यान माउंट एवेरेस्ट के पास उतरा। वहां की सुंदरता देखकर मन को कुछ प्रसन्नता मिली।फिर कुछ नीचे आया तो बर्फ से ढकी पहाडिआं और उनके बीच में फूलों से भरी वादिओं को देख मन में पक्का कर लिया कि अब सारी जिंदगी यहीं बितानी है। ये उत्तराखंड का इलाका था। यहाँ मैं गुफाओं में बैठे ऋषि मुनियों का दर्शन भी करता था और उनके विचार भी सुनता था।

वातावरण की शुद्धता और मन की शुद्धता दोनों मिल जाने से बहुत शांति मिली। अब अपनी बची खुची जिंदगी यहीं बिताने का इरादा है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama