एक तालाब की कहानी
एक तालाब की कहानी
इस नाड़ी के निमार्ण को लेकर यह किंवदंती प्रचलित है कि एक कुम्हार जाति की महिला अपनी गाय के बछडों को चरा रही थी तभी उसने देखा कि वहाँ एक गड़ढे में पानी भरा हुआ था और वह पानी दूसरे व तीसरे दिन भी यथावत था। कुम्हारी महिला को लगा कि यहाँ यदि पानी का बड़ा तालाब खोदा जाय तो पीने के पानी का जुगाड़ हो सकता है, यही सोच रखते हुए उसने लगातार डेढ-दो माह तक अपने पशुओं को चराने के साथ-साथ नियमित रूप से खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया।
लवां गांव में रहने वाले पालीवाल ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने इस कार्य को सराहा और उसके साथ एकजुट होकर खुदाई के कार्य में सहयोग देना प्रारम्भ कर दिया और विशाल तालाब खोदकर उसे उस महिला का नाम दिया।
पालीवाल समुदाय के लोगों को तालाब,कुआ,बावडी,खडीन की तकनीक का ज्ञान था,इसी तकनीक के कारण पालीवाल समाज के लोगों ने विशाल तालाब खोदकर घाट,मंदिर आदि बनवाए और कुम्हारी महिला द्वारा प्रारंभ किये गये तालाब के प्रयास को पूर्ण कर उस महिला के नाम कर दिया।
इस नाड़ी का आगोर लगभग 60 हैक्टर है और 3-4 हैैक्टेयर क्षेत्र में पानी भरा हुआ रहता है। इस नाड़ी से लोगो को वर्षभर पानी मिलता रहता है।
वर्तमान में पंचायत के सहयोग से नाड़ी के चारो और बाड बनायी हुई हैं, जिससे कोई भी व्यक्ति नाड़ी केके पानी एव नाड़ी के आगोर को गंदा नहीं कर सके। साथ ही रामदेवरा में भरने वाले मेले के दौरान यहाॅ नियमित रूप से पहरा रहता है, जिससे कोई भी व्यक्ति नाड़ी के पानी को गंदा न कर सके।
इसके अलावा सैकड़ों सालों से गांव के लोग भी इस तालाब के पानी को स्वच्छ व पीने लायक बनाये रखने के लिए बारी-बारी पहरा देते थे और किसी जानवर को भी तालाब के अंदर जाकर पानी पिलाने से मनाही हैं।
