पालीवालों का त्याग और राखी
पालीवालों का त्याग और राखी
भाई-बहन के प्रगाढ स्नेह का प्रतीक था बंधन का त्यौहार हिन्दू धर्म में सभी समाज और वर्ग द्वारा बड़े उत्साह के साथ बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। परन्तु हिन्दू धर्म का एक वर्ग श्री आदि गौड़ वंशीय पालीवाल ब्राह्मण आज भी यह त्यौहार पिछले 730 साल से नहीं मनाते हैं। भाई बहन के स्नेह के इस पावन पर्व को नहीं मनाने के पीछे भी बहुत ही दर्दनाक घटना बतायी जाती है।
इतिहासकार एवं साहित्यकार ऋषिदत पालीवाल बताते है कि राजस्थान के पाली मारवाड में पालीवाल की सदी से रह रहे थे। पाली नगर में करीब एक लाख के लगभग पालीवालों की आबादी थी. सभी ब्राह्मण समुद्र बताया जाता है कि यहां आने वाले प्रत्येक ब्राह्मण को एक ईंट व एक रूपए का सहयोग कर उसे भी संपन्न बनाते थे। इस प्रकार पालीवाल ब्राह्मणों की खुशहाली के चर्चे पूरे भारत में थे। पाली के आसपास उस समय के आदिवासी लुटेर उनको लूटते रहते थे तब पालीवाल समाज के मुखिया ने राठौड़ वंश के राजा सहा को पानी नगर का शासन संभालने और उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना की, तब सीहा राठौड़ ने पाली नगर के पालीवालों की रक्षा का दायित्व अपने उपर लिया।
तत्कालीन यवन आकांता जलालुदीन खिलजी जो शमशुद्दीन को मारकर फिरोजशाह द्वितीय के नाम से दिल्ली का शासक बना था. उसने पाली की समृद्धि के चर्चे सुने थे और मारवाड़ में आकमण के दौरान उसने विक्रम संवत 1348 ईस्वी सन 1291 के लगभग अपनी सेना के साथ पाली को लूटने के लिए आक्रमण कर दिया। तब राठोड वंश के शासक सीहा युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए, उनके पुत्र आस्थान में भी यवन सेना से युद्ध किया, वह भी वीरगति को प्राप्त हुए उसके बाद यवन सेना ने पाली नगर पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया, लोगों पर अत्याचार किये पीने के पानी के एकमात्र तालाब में गौवंश को मारकर डाल दिया जिससे पानी अपवित्र हो गया। तत्कालीन समय में पीने के पानी के सीमित संसाधन ही थे। पालीवाल ब्राह्मणों ने सेना के आक्रमण को देख अपने आपको भी युद्ध में झोंक दिया
युद्ध दौरान हजारों पालीवाल ब्राह्मण शहीद हुए। रक्षा बंधन श्रवणी पूर्णिमा के दिन ही कई ब्राह्मण तालाब पर पूर्वजों के तर्पण व श्रावणी उपाकर्म के लिए गये हुए थे, जिनको भी यवन सेना ने मार डाला। इस प्रकार श्रावणी पूर्णिमा रक्षा बंधन के दिन युद्ध करते हुए हजारों ग्राह्मण शहीद हुए पूरी पाली रक्त रंजित हो गयी, मातायें-बहने बहुताधिक संख्या में विधवा हो गयी, कहा जाता है कि युद्ध के दौरान शहीद हुए ब्राह्मणों की करीब 9 मन जनेउ व विधवा माताओं के हाथी दांत का करीब 84 मन चूडा उतरा, जिसको अपवित्र होने से बचाने के लिए वर्तमान पाली शहर स्थित घोला चौतरा नामक कुए में डालकर उसे बंद कर दिया गया।
तत्पश्चात जो पालीवाल ब्राह्मण जीवित बचे उन्होंने रक्षा बंधन के दिन ही अपने जातीय स्वाभिमान, धर्म रक्षार्थ पाली नगर को छोड़ना उचित समझा। श्रवणी पूर्णिमा की रात को सभी बचे हुए ब्राह्मणों ने संकल्प कर पाली नगर का एकसाथ परित्याग कर दिया और पूरे भारत में फेल गए उसी दिन से पाली के रहने वाले ब्राह्मण पालीवाल ब्राह्मण कहलाये। पालीवालों के साथ जो भी अन्य जातिया जैन, महाजन, नाई, दर्जी, कुम्हार आदि पाली रहते थे उन सबने भी पाली छोड़ दी और अलग-अलग जगह बस गये।
हजारों पालीवाल ब्राह्मणों के 12 गौत्रों में से 4 गौत्र गुजरात की तरफ चले गये और 8 गौत्र पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर में आकर बस गये जो आज पूरे भारत में लाखों की संख्या में है। पाली नगर के श्री आदि गौड़ वंशीय ब्राह्मण जो वर्तमान में पालीवाल ब्राह्मण जाति से जाने जाते है वह रक्षा बंधन के दिन हुए अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करते हुए आज भी पूरे भारत में रक्षा बंधन का त्यौहार नहीं मनाते
वर्तमान में पालीवाल ब्राह्मण रक्षा बंधन के दिन को पालीवाल एकता दिवस के रूप में मनाते है और पालीवाल दिवस को चिरस्थायी बनाने के लिए वर्तमान में पाली नगर में ही बड़े स्तर पर "पालीवाल धाम" करोड़ों रुपए खर्च कर विकसित किया जा रहा है, ताकि वर्तमान पीढ़ी पूर्वजों के बलिदान को हमेशा याद रख सके और पालीवाल समाज के इतिहास पर गर्व कर सके। पालीवाल ब्राह्मण समाज द्वारा पाली नगर में पुराने बाजार स्थित धौला चौतरा" को विकसित किया गया है ।
