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Ajay Singla

Thriller

4  

Ajay Singla

Thriller

एक सुखद मोड़ - भाग २

एक सुखद मोड़ - भाग २

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एक सुखद मोड़ - भाग २

विशंभर को जीप चलाने का बड़ा शौक था। वो जब भी कहीं बाहर जाता तो खुद ही जीप चला कर जाया करता था। साथ में अपने एक नौकर को ले जाया करता था जो उसके ड्राइवर का काम भी कर दिया करता था। एक बार उसे कहीं दूर गांव जाना था। उसका वो नौकर भी कहीं गया हुआ था। विशम्भर ने सोचा सुबह जल्दी निकल जाऊँगा तो शाम ढलने से पहले उस गांव में पहुँच ही जाऊँगा। इसलिए वो अकेला ही निकल पड़ा। दोपहर का खाना रास्ते में एक ढाबे पर करके वो मेन रोड से जा रहा था कि आगे सड़क पर कोई दुर्घटना होने के कारण वो बंद कर दी गयी थी। उसने वहां एक दो लोगों से उस गांव जाने का कोई और रास्ता पूछा पर किसी को उस गांव या रास्ते के बारे में कुछ नहीं पता था। फिर एक आदमी ने बताया की ये जो सामने एक कच्चा रास्ता जा रहा है ये आगे जाकर फिर इसी मेन रोड से मिलता है पर ये रास्ता है बहुत लम्बा और रास्ते में घना जंगल भी पड़ता है

विशम्भर बहुत आधीर हो रहा था इसलिए उसने इसी रस्ते की तरफ जीप मोड़ ली। कुछ दूरी तक तो कभी कभार कोई आदमी या गाडी वाला दिख रहा था पर थोड़ी और आगे जाने पर रास्ता बहुत सुनसान हो गया। रास्ता ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। विशम्भर को लगा शायद वो गलत रास्ते पर आ गया है तो उसने गाडी वापिस मोड़ने की सोची। अभी वो ये सोच ही रहा था की गाडी एक पत्थर से टकराई और पलट गयी। विशम्भर के सिर में चोट आने के कारन वो बेहोश हो गया। जब उसे होश आया तो काफी रात हो चुकी थी। उसे कोई गहरी चोट तो नहीं आई थी पर जखम कई जगह थे और सारा शरीर दर्द कर रहा था। किसी तरह हिम्मत करके वो उठा तो देखा गाडी बुरी हालत में थी और चल नहीं सकती थी।

विशम्भर भूख प्यास से भी बेहाल हो रहा था। इतने में उसे जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई दीं। वो बहुत डर गया। वो जैसे तैसे नजदीक के एक पेड़ पर चढ़ गया। वो सोच रहा था कि सुबह होते ही उसे किसी की मदद मिल जाएगी और कोई न कोई उसे उसके गांव पहुंचा ही देगा। ऐसी स्थिति में वो पहले कभी नहीं फंसा था। वो आज तक कभी भूखा नहीं सोया था। डर के कारन उसे नींद भी नहीं आ रही थी। इतना डर उसे पहले कभी नहीं लगा था। रात ख़त्म हुई तो वो पेड़ से नीचे उतरा पर उसे ये पता ही नहीं चल रहा था कि किस दिशा में जाना है। उसने एक तरफ चलना शुरू किया पर वो जंगल के और भी अंदर होता जा रहा था। जंगल में एक नाला बह रहा था। उस को इतनी प्यास लगी थी कि वो बिना ये सोचे कि पानी शुद्ध है की नहीं, पीता चला गया। कुछ दूरी पर उसे एक अमरुद का पेड़ दिखा। उसने पेट भर कर अमरुद खाये। उसे अमरुद कुछ ज्यादा पसंद नहीं थे पर आज भूख के कारण उसे बहुत अच्छे लग रहे थे।

जब सूरज ढलने लगा तो विशम्भर को चिंता सताने लगी कि आज फिर पेड़ पर ही रात गुजारनी पड़ेगी। उसे अपना मखमली बिस्तर याद आ रहा था। दिन बीतने लगे पर कोई भी उस जंगल में नहीं दिखा। उस के जख्मों में थोड़ा मवाद भी बहने लगा था और उनसे दुर्गन्ध भी आने लगी थी। इसके कपडे भी सारे फट चुके थे और बहुत गंदे हो गए थे। वो बस फल खाकर और पानी पीकर जीवित था। अब उसे लगने लगा था कि उसकी मृत्यु करीब है। रात में नींद तो उसे आती नहीं थी बस यही सोचता रहता था कि मैंने ऐसा क्या पाप किया है जो मुझे ऐसी सजा मिल रही है। उस की दाढ़ी भी काफी बढ़ गयी थी और वो काफी कमजोर भी हो गया था। अगर कोई उसे ऐसी हालत में देखे तो पहचान नहीं सकता था।

फिर दो महीने बाद वो जब पेड़ पर सुबह सुबह उसकी खुली तभी उसे किसी आदमी की आवाज सुनाई दी। पहले तो उसे लगा कि उसे कोई भ्रम हुआ है पर जब उसने आँखें खोल कर देखा तो दो आदमी उसके सामने खड़े थे। उसकी जान में जान आई। जब उसने बताया कि वो गांव का जिंमीदार है और अपना और अपने गांव का नाम बताया तो वो लोग हंसने लगे। वो उसे या उसके गांव को नहीं जानते थे और उसकी हालत देख उसे पागल समझ रहे थे। वो गरीब किसान थे और उसे अपने गांव ले आये। उनके पास जो रूखी सुखी रोटी थी उसमे से एक विशम्भर को दे दी। विशम्भर को वो रोटी अमृत समान लग रही थी। उसने दो महीने बाद रोटी खाई थी। गांव के बाहर एक मंदिर था। विशम्भर ने सोचा रात यहीं बिता लूँ सुबह सोचूंगा क्या करना है। कई दिनों से वो सोया भी नहीं था तो लेटते ही नींद आ गयी। उसे सपना आने लगा। सपने में उसने देखा कि उसके बेटे जायदाद के लिए आपस में लड़ रहे हैं और उसे भी भला बुरा कह रहे हैं कि उसने उनको अपनी जायदाद के बारे में पहले कुछ नहीं बताया। उनको इस बात की कोई फिक्र नहीं थी कि उनका बाप जिन्दा है या मर गया। फिक्र इस बात की थी कि वो उनके लिए क्या छोड़ कर गया है।

विशम्भर की नींद खुल गयी। वो सोचने लगा कि मैं तो सारी जिंदगी पैसा इकठ्ठा करता रहा अपने बच्चों के लिए जैसे कि मेरे दादा पड़दादा ने या मेरे पिता ने इकठ्ठा किया था पर इसको इकठा करने से क्या लाभ। शायद इन दो महीनों ने उसे अंदर से भी बदल दिया था। अब उसकी सोच भी बदल गयी थी। उस ने अब ठान लिया था कि अब अपनी पहचान किसी को इस गांव में नहीं बताएगा और खुफ़िया तरीके से अपने गांव जा कर देखेगा कि मेरे जाने से किसी को कोई फर्क पड़ा है कि नहीं। 


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