एक सुखद मोड़ - भाग १
एक सुखद मोड़ - भाग १
विशम्भर एक गांव का मुखिया था। वो बहुत बड़ा जमींदार था और उसकी काफी सारी पुश्तैनी जायदाद थी। स्वभाव से वो बहुत क्रूर था। गरीब किसानों को जरूरत के समय कर्ज देता था और बाद में कर्ज न चुकाने पर उनकी जमीन हड़प लेता था। गांव की आधी से ज्यादा जमीन पर वो कब्ज़ा कर चुका था। गरीबों से वो सीधे मुँह बात नहीं करता था। अपने कामगारों और नौकरों को डांटता रहता था। गांव के सब लोग उसके गुस्से से थर थर कांपते थे। नौकरों को वो अपने दास की तरह ही समझता था और कई बार तो बड़ी सख्त सजा भी देता था।
उसके तीन पुत्र थे। बड़े दोनों बेटे तो उस के समान ही क्रूर स्वभाव के थे पर छोटा बेटा थोड़ा अलग था। वो गरीबों की मदद करने में विश्वास रखता था और स्वभाव से शांत और सीधा था। विशम्भर उसे इस बात के लिए डांटता रहता था कि वो बाकी दोनों की तरह काम नहीं संभाल सकता। बाकी दोनों बेटे अपने पिता से बहुत डरते थे और उसकी हाँ में हाँ मिला देते थे पर तीसरा बेटा विजय कभी कभी अपने पिता की बात काटने की हिम्मत दिखा देता था। पर बदले में डांट खा कर चुप हो जाता था।
विशम्भर को हर वक्त धन बढ़ाने की लालसा लगी रहती थी और इसी में दिन रात लगा रहता था। कभी चैन से ना तो उसने खाना खाया था ना ही कभी अपने परिवार के साथ शांति से बात करता था। भगवान में भी ज्यादा आस्था नहीं थी। आस पास के गांवों में भी उसकी धाक थी। उसके गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसका नाम शंकर था। दोनों पति पत्नी बहुत धार्मिक थे और हर रोज मंदिर जाते थे। थोड़ी सी जमीन थी और उसपर खेती करके बस गुजर बसर करते थे। कोई संतान नहीं थी। कुछ देर पहले पत्नी की बीमारी के कारण शंकर ने विशम्भर से कुछ कर्ज ले रखा था और उसे लौटाने की तारीख करीब आ गयी थी। इस साल फसल अच्छी नहीं हुई थी तो वो तय समय तक कर्ज नहीं लौटा पाया।
जिस दिन कर्ज वापिस करने की तारीख निकल गयी तो विशम्भर ने शंकर को हवेली पर बुलाया और उसे जमीन के कागज उसे देने के लिए कहा। शंकर ने बहुत मिन्नत की कि उसे एक साल का वक्त और दे दो। अगले साल जब फसल होगी तो वो सारा कर्जा उतार देगा पर विशम्भर ना माना। जब शंकर ने बार बार आग्रह किया तो विशम्भर ने उसे धक्के मारकर निकाल दिया। शंकर अब अपनी ही जमीन पर विशम्भर का नौकर बन कर काम करने लगा।
विशम्भर जब भी गांव से शहर जाता था तो खुद ही जीप चलाता था। रास्ते में दूर से उसे आता देख गांव वाले पहले ही डर के मारे पीछे हट जाते थे। उसके सामने तो सभी उसकी जय जयकार करते थे पर पीठ पीछे सब उसकी बुराई करते थे और कहते थे कि इसे अपने कर्मों की सजा जरूर मिलेगी। किसी गरीब की मदद करना तो दूर की बात, वो उनका दुःख देख कर खुश होता था। उसे वो ही लोग अच्छे लगते थे जो उसकी हाँ में हाँ मिलाते थे। कोई अगर उसकी बात काटता था तो वो उसे अपना दुश्मन समझता था और उसे कड़ी से कड़ी सजा देता था। उसके दोनों बड़े पुत्र भी उसका साथ देते थे। गांव में अगर किसी को कोई परेशानी होती तो उसके छोटे बेटे विजय के पास जाता था पर वो भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाता था बस दो बोल प्यार से बोल लेता था और सांत्वना दे देता था या जो भी थोड़ा बहुत उसके हाथ में होता मदद कर देता।
