जीवन चलने का नाम है,
पर जब लगे पूर्णविराम —
देख हमें, दूसरे करें अनुसरण,
करते चलो परोपकारी काम,
ताकि याद करे ये संसार।
मेरी भाभी सुरेशो देवी सिर्फ रिश्ते में भाभी नहीं थीं, वे हमारे भरे-पूरे परिवार कुनबे की ताकत थीं। गाँव में जैसा अपनापन होता है, वैसा ही उनका स्वभाव था। जब भी मैं उन्हें याद करता हूँ, उनकी शांत मुस्कान और मीठी वाणी कानों में रस घोल देती है।
मेरे भाई, स्वर्गीय शिवलाल, और मैं लगभग हमउम्र थे। बहुत-सी भाइयों जैसी यादें आज भी मेरी स्मृति में तैरती रहती हैं। भाई का विवाह और भरा-पूरा परिवार आज भी मेरी आँखों के सामने पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म की तरह गुजर जाता है। मुझे याद है, भाई मेरी बाइक-स्कूटर पूरे अधिकार से ले जाया करता था, किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि मुझे आँख दिखा दे। लंबी कद-काठी, मजबूत शरीर और रौबदार मूँछें — आज के युवाओं जैसे फैशन, कुछ वैसी ही उनकी शख्सियत थी।
समय का पहिया ऐसा घुमा ,बहुत कुछ बदल दिया। हमारा पूरा परिवार-कुनबा गरीब ज़रूर था, पर हौसलों में कमी नहीं थी। मेरे बड़े भाई स्वर्गीय शिवलाल बहुत निडर और साहसी इंसान थे। पूरे गाँव में उनकी हिम्मत की मिसाल दी जाती थी, लेकिन नशे की लत ने उनकी ज़िंदगी हमसे छीन ली।
उस समय भाभी के सामने दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। चार बच्चे — तीन बेटियाँ और एक बेटा — और ऊपर से उन्हें सँभालने और बड़ा करने की पूरी ज़िम्मेदारी आ पड़ी। फिर भी मैंने उन्हें कभी कमजोर पड़ते नहीं देखा। ईश्वर दयालु है — एक हाथ से लेता है तो दूसरे हाथ से कुछ देता भी है। इतनी हिम्मत हर किसी में नहीं होती, सोचकर पीछे देखता हूँ तो सिहरन सी पैदा होती है, किन हालात से ,भाभी गुजरी होंगी,ये अहसास अब होता है।
गरीबी ने धीरे-धीरे हालात को गंभीर बना दिया, लेकिन भाभी के घर में कभी दिलों की गरीबी नहीं रही। भाभी ने खेतों में मज़दूरी की, कठिन परिश्रम किया और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने बच्चों को पढ़ाया। कहते हैं, जब आप सच्चे दिल से ईमानदारी का काम करते हैं, तो उसका फल ज़रूर मिलता है। कठिन परिस्थितियों में भी हार न मानने का उनका जज़्बा उन्हें परिवार में सबसे अलग बनाता था। शायद यह प्रेरणा उन्हें मेरी बुआ से मिली हो, जो ऐसे ही हालात से गुज़री थीं और जिनसे उनकी गहरी मित्रता थी।
लेकिन जीवन की एक और कठिन परीक्षा बाकी थी। बाद में जब उन्हें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हुई, तब भी उन्होंने दर्द को कभी अपने चेहरे पर आने नहीं दिया। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि किसी को सोचने-समझने का समय ही नहीं मिला। जैसे रेत को जितनी तेजी से मुट्ठी में बंद करो, वह उतनी ही तेजी से फिसल जाती है।
वे दर्द में भी मुस्कुराकर कहती थीं,
“राजेश, मेरे बच्चों का ध्यान रखना। मैं ठीक हूँ।”
एक कैंसर का मरीज ऐसा बोलता है, तो सोचिए कितनी हिम्मत की ज़रूरत होती होगी।
मुझे आज भी याद है, उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से अपनी दो बेटियों का विवाह बड़े सम्मान से किया, बिना किसी के आगे हाथ फैलाए। उन्होंने कभी लाचारी नहीं दिखाई, न अपनी तकलीफ को किसी पर बोझ बनने दिया।
आज भाभी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने हमें जीने का एक तरीका सिखा दिया। अपने बच्चों को भी वे स्वाभिमान और मेहनत से जीवन जीना सिखा गईं, चाहे अंतिम समय ही क्यों न रहा हो।
मेरे लिए वे सिर्फ भाभी नहीं थीं, वे जीवन की सबसे बड़ी सीख थी जीवन में कैसी भी परिस्थिति हो,निराशा हताशा कोई जगह नहीं। भाभी सामान्य सी दिखने वाली असाधारण महिला थी, जिंदादिल और घोर आशावादी।