एक सच ऐसा भी
एक सच ऐसा भी
जैसे ही अपर्णा नन्हीं-सी परी को गोद में लिए अस्पताल के मुख्य द्वार पर पहुंची, तभी साकेत की गाड़ी रुकी और वह अपर्णा के सामने खड़ा हो गया।
अपर्णा को एक छोटी-सी बच्ची गोद में लिए वह हक्का-बक्का सा उसे देखता रह गया । साकेत ने कभी भी यह नहीं सोचा था कि उसे अपर्णा को इस तरह से भी देखना पड़ेगा। एक तो वह इतने दिनों से उसके सामने आ नहीं रही थी और अब आई भी तो इस तरह से।
अपर्णा जैसे ही बोलने के लिए अपना मुंह खोलने ही वाली थी तभी उसका बचपन का दोस्त नीरज जो कि उसी अस्पताल में एक चिकित्सक था, उसने उसे आवाज लगाई और उसे परी के सामानों का बक्सा दे दिया।
अब तो साकेत का पारा आसमान चढ़ा हुआ था। नीरज ने अपर्णा से कहा,"थोड़ी देर में मिलता हूं" और कहकर चला गया। अपर्णा ने हामी भरी और साकेत का तरफ मुड़ी। वह कहने ही वाली थी तभी साकेत ने उसे रोक दिया।
साकेत ने उसे रोकते हुए इतना ही कहा, "मुबारक हो, तुम्हें तुम्हारी नई जिंदगी और अब से मुझसे मिलने या किसी भी तरह के संपर्क करने की कोशिश मत करना। इस तरह फिक्र के भाव लिए मुझे मत देखो। इतना सब हो जाने के बाद तो यह भाव तुम पर बिल्कुल भी शोभा नहीं दे रहा।"
साकेत ने ना आंव देखा ना तांव। बिना अपर्णा को सुने वहां से झटके में गाड़ी में बैठ कर चला गया। अपर्णा अस्पताल के बेंच पर धम्म से बैठ पड़ी। उसने इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि साकेत उसके बारे में ऐसा सोचेगा। उसकी पलकें छलक पड़ी।
थोड़ी देर बाद नीरज भी वहां आ गया। उसने अपर्णा से हड़बड़ाते हुए पूछा, "कहां गया साकेत? तुम अब तक यहां क्यों ऐसे बैठी हुई हो? क्या हुआ तुम्हें, बोलो भी कुछ।"
अपर्णा अपने अंदर के उथल-पुथल को संभालते हुए सिर्फ इतना ही कह पाई, "मैं अब क्या करूं नीरज, कहां जाऊं? पिताजी से बगावत कर ली मैंने, अब तो मां भी मेरे पक्ष में नहीं है। अब तुम ही बताओ इन सब में इस नन्हीं-सी जान की क्या गलती?"
नीरज ने ध्यान से अपर्णा की सारी बातें सुनी। फिर थोड़ा हिचकते हुए कहा, "अगर तुम्हें सही लगे तो तुम मेरी जगह पर रह सकती हो। परी को लेकर अभी कहां जाओगी। तरह तरह के सवालों का क्या जवाब दोगी? अगर तुम्हें ठीक लगे तभी, मैं किसी भी तरह का दबाव नहीं बना रहा तुम पर।"
अपर्णा ने अविश्वास भरी नजरों से नीरज को देखा। फिर धीरे से अपना सिर हिला दिया। नीरज ने अपने घर का कमरा अपर्णा को दे दिया खुद बैठकी में चला गया। अपर्णा ने परी को 'फार्मूला मिल्क' मिलाया, फिर थपकी देकर बिस्तर पर सुला दिया। खुद भी उसके बगल में लेट गई। वह यह दर्द महसूस नहीं करना चाहती थी लेकिन ना चाहते हुए भी उसके आंखों से एक-एक करके आंसू निकले जा रहे थे।
वह साकेत से दो साल पहले ही तो मिली थी। उसके कंपनी में उसकी नौकरी भी लग गई थी। उसके काम से प्रभावित होकर साकेत ने उसका 'प्रमोशन' भी कर दिया था। कंपनी के बाहर अक्सर कैफे में मुलाकात होते-होते कब वो एक-दूसरे को पसंद करने लगे उन्हें खुद पता ना चला।
आज अपर्णा को बहुत बुरा लग रहा था। साकेत ने उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया। उसे अपनी बात भी रखने नहीं दी। उसने परी को जब पहली बार थामा था तो यही सोचा था कि कोई साथ दे ना दे, साकेत तो उसका साथ जरूर देगा लेकिन उसने तो अपर्णा की एक भी ना सुनी।
वह कहते हैं न कि कभी-कभी सोचा पूरा नहीं होता है, ऐसा ही कुछ अपर्णा के साथ हुआ था। यही सोच-सोच कर उसका दिल भी भारी होता जा रहा था। नीरज ने खाने के लिए आवाज लगाई। वह बूझे मन से खाने की मेज पर बैठी, नीरज ने उसका मुरझाया हुआ चेहरा देखकर कहा, "कल साकेत से बात कर लेना, कंपनी में जाकर। मैं परी को अपने पास रख लूंगा"।
अपर्णा ने बिना अपना सिर उठाए कहा, "वह मेरी नहीं सुनेगा।" फिर धीरे-धीरे वह अपना खाना निगलने लगी।
सुबह की किरण आज अपर्णा को अलग ही अहसास दे रही थी। वह तैयार होकर कंपनी पहुंची लेकिन उसे अंदर नहीं जाने दिया गया। उसे सिर्फ यही कहा गया कि वह अब इस कंपनी की कर्मचारी नहीं है। उसने साकेत को कॉल भी किया लेकिन साकेत ने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया। उसने अपनी सारी कोशिशें की लेकिन साकेत ने उसे खुद तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद कर दिए थे।
साकेत जब अपर्णा को अस्पताल के बाहर छोड़ कर निकल गया था उस समय अपने आप को बार-बार यही दिलासा देते जा रहा था कि अपर्णा उसके साथ ऐसा नहीं कर सकती। लेकिन अपनी आंखों से देखे हुए दृश्य को वह झुठला भी तो नहीं सकता था। नीरज से उसकी मुलाकात अपर्णा से मिलने के छह महीने बाद ही तो हुई थी। अपर्णा ने उससे केवल यही कहा था, "यह नीरज है, मेरे बचपन का दोस्त, पेशे से चिकित्सक है, हाल ही में इस शहर में 'पोस्टिंग' हुई है।" उस वक्त साकेत ने कभी भी यह नहीं सोचा था कि अपर्णा उससे बेवफाई करेगी, एक दिन नीरज की बाहों में चली जाएगी। पिछले छः महीने से वह खुद परेशान था। अपर्णा से ढंग से बात नहीं हो पा रही थी। वह काम पर भी नहीं आ रही थी। उसके आखिरी कॉल पर वह सब काम छोड़कर अपर्णा से मिलने गया था। परंतु इस बात की उसने लेशमात्र भी कल्पना न की थी कि अपर्णा बेशर्म की तरह अपने और नीरज के बच्चे के साथ उसके सामने यूं आ जाएगी। नहीं, साकेत अपर्णा को कभी माफ नहीं कर सकेगा। उसने तभी यह फैसला किया कि वह अपर्णा को अपनी जिंदगी से निकाल देगा। इसी कारण उसने उसे कंपनी से भी निकाल दिया।
अपर्णा कंपनी के बाहर बेजान-सी खड़ी थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिसे उसने अपने दिल और जान से भी ज्यादा चाहा, वह कभी उसके साथ ऐसा करेगा। तभी नीरज का कॉल आया। वह नीरज की बात सुनकर तुरंत अस्पताल जा पहुंची।
अस्पताल में उस कमरे में घुसते ही वह सन्न सी रह गई। एक औरत जो उम्र में उससे कुछ 5-7 साल ही बड़ी थी। अपनी जिंदगी की आखिरी सांस गिन रही थी। उसकी आंखें अपर्णा को ही खोज रही थी। अपर्णा जल्द ही उसके समीप पहुंच गई। उसके हाथों को अपने हाथ में थामे अपर्णा ने कहा, "मैं यही हूं। आपको कुछ नहीं होगा। आप यूं नहीं जा सकती। परी के बारे में तो सोचिए, उसका क्या होगा? कृपया यूं हिम्मत ना हारिए।"
वह औरत सिर्फ इतना ही कह पाई, "अपर्णा, तुमने मेरे लिए बहुत किया है, मेरे कुछ अच्छे कर्म रहे होंगे जो तुमसे मुलाकात हुई, रही बात परी की तो उसे मेरे बारे में कभी मत बताना और यह वादा दो कि उसे अपने बच्चे से भी ज्यादा प्यार करोगी। अब से परी की मां सिर्फ तुम ही हो।" इसके बाद उसकी आखिरी सांस ने भी उसके शरीर का साथ छोड़ दिया।
अपर्णा इस सच को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। थोड़ी देर पहले साकेत से ना मिल पाने और अब इस औरत के हमेशा के लिए चले जाने से वह फूट-फूट कर रोने लगी। नीरज उसके पीछे आकर उसे ढांढस देने लगा। अपर्णा अंदर से इतना टूटा हुआ महसूस कर रही थी कि वह बिना एक पल गवाएं नीरज से लिपट पड़ी और उसके आँखों से आंसुओं के शैलाब फूट पड़े। नीरज को पहले तो हल्का-सा झटका लगा लेकिन अगले ही पल भी वह भी अपर्णा का विलाप सुनकर खुद के अश्कों को रोक न पाया।
नीरज अपर्णा को कमरे से बाहर ले आया। नर्स परी को चुप करा रही थी, परी का रोना कम ही नहीं हो रहा था। तुरंत अपर्णा ने परी को अपनी गोद में ले लिया। परी उसके गोद में आते ही चुप हो गई।
साकेत भी तभी उस अस्पताल में अपने काम के सिलसिले में पहुंच गया। अस्पताल के कर्मचारी उस औरत के शव को कमरे से बाहर निकाल रहे थे। अपर्णा बार-बार यही कहे जा रही थी, "देखिए न परी आपको बुला रही है, देखिए न आपके लिए कैसे रोए जा रही है, उठिए न, देखिए ना।" नीरज ने अपर्णा को रोका और उसे कहने लगा, "संभालो खुद को, इस तरह करोगी तो परी को कैसे संभाल पाओगी।"
साकेत यह सब देख रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने सिर्फ यही पूछा, "क्या चल रहा है यह सब, क्या हो रहा है, कौन थी वह औरत?"
अपर्णा ने जैसे ही साकेत की आवाज सुनी, वह गुस्से से पलटी और धड़ाधड़ कहने लगी, "क्यों? आखिर अब क्यों जानना है तुम्हें? अब क्यों तुम्हें इतनी फिक्र होने लगी। हां, मैंने धोखा दिया है तुम्हें, यही मानते हो ना तुम। हां, यह मेरे और नीरज की बेटी है, यही सोचते हो न तुम।"
नीरज ने तुरंत अपर्णा के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे रोका, "अपर्णा, यह सब क्या कहे जा रही हो तुम, साकेत तुम्हारी बात सुनने के लिए तैयार है अब, तो उसे सब सच-सच बता दो, ये सब क्यों कह रही हो।" अपर्णा ने नीरज को जवाब दिया, "क्यों नीरज! क्यों रोक रहे हो तुम मुझे, तुमने मेरा साथ अबतक दिया है तो क्या इस वक्त मेरा साथ छोड़ दोगे। क्या जो मैं कह रही हूं वह सच नहीं हो सकता। अगर तुम्हारे जीवन में कोई और है तो कहो, मैं कहीं दूर चली जाऊंगी।"
नीरज ने हल्के हंसते हुए कहा, "नहीं, अपर्णा, तुम मुझे शुरू से जानती हो। मेरी जिंदगी में इन सब की कभी से कोई जगह थी ही नहीं किसी के लिए भी। फिर भी यह तुम्हारी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला है।"
अपर्णा ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा, "फैसला तो मैंने कर लिया है नीरज, सिर्फ तुम्हारे साथ और स्वीकार्यता की जरूरत है मुझे।"
नीरज कुछ कह पाता इससे पहले ही साकेत उन दोनों के करीब खड़ा हो गया और फिर से कहने लगा, "यह सब क्या है अपर्णा, कौन-सा सच, किस बारे में बात कर रहे हो तुम दोनों।"
अपर्णा थोड़ा पीछे हटते हुए बोली,"जो भी कहना था मुझे, वह मैंने कह दिया, जिस पल मुझे तुम्हारे साथ की सबसे ज्यादा जरुरत थी, ठीक उसी वक्त तुमने मुझसे मुंह मोड़ लिया। अब हमारे बीच कुछ भी नहीं है। आज से तुम मेरे लिए अनजान और मैं तुम्हारे लिए अनजान हूं।"
फिर वह नीरज से बोली, "मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं, जल्दी आ जाना, घर चलने का समय हो गया है।" इतना कहकर वह बिना पलटे वहां से जाकर गाड़ी के समीप खड़ी हो गई और परी को पुचकारने लगी।
नीरज अपने कदम बढ़ाने ही वाला था कि साकेत ने उसे रोक लिया। उससे हल्के विनती भरे स्वर में पूछा, "तुम तो बता ही सकते हो मुझे कि आखिर हुआ क्या है।"
नीरज ने भी हल्की सांस ली और अपनी बात कहनी शुरू की, "वैसे तो मुझे तुमसे कुछ कहने की कोई जरूरत नहीं है। यह जानने के बाद की तुमने अपर्णा के साथ कैसा व्यवहार किया है, फिर भी मैं तुम्हें बता देता हूं कि वह औरत जिसने थोड़ी देर पहले ही इस दुनिया को अलविदा कर दिया, उसने ही परी को जन्म दिया है। दरअसल वह अनाथ थी और अनाथ-आश्रम में काम करती थी। अपर्णा के पिता ट्रस्ट के काम से अनाथ-आश्रम गए थे, जहां उनकी नजर उसपर गई। उन्होंने धोखे से उस औरत का शोषण किया। जब उस औरत को परी के होने का पता चला तो यह बात उसने अपर्णा के पिता को बताई। अपर्णा के पिता ने उसे मारने की कोशिश भी की, किसी तरह वह बच तो गई लेकिन घायल होने के कारण उसे अस्पताल लाया गया था। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने अपर्णा के पिताजी का नाम लिया। मैंने अपर्णा को कॉल किया। अपर्णा को उन्होंने सारा सच बताया। इस बात पर अपर्णा की उसके पिताजी से बहुत बहस हुई, उसकी मां ने भी उसका साथ न दिया अपर्णा के पिताजी ने केवल उससे यही कहा की अगर उनका नाम आगे आया तो अपर्णा के चरित्र पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। अपने पिता से यह सब सुनने के बाद उसने उन लोगों से सारे नाते तोड़ लिए और खुद ही उस औरत की देखभाल करने लगी , लेकिन उनकी हालत दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही थी, अंततः आज वह इस दुनिया से चली ही गई।"
नीरज साकेत की तरफ मुड़ा और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "मैं तुम्हें तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं। हां, कभी भी मैंने अपर्णा को दोस्त से बढ़कर नहीं देखा था, लेकिन आज सिर्फ तुम्हारी वजह से ही मेरा परिवार पूरा हो गया। तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद।"
इतना कहकर नीरज अपर्णा के पास चला गया। दोनों परी के साथ खेलने लगे। तीनों एक साथ चहक रहे थे और साकेत एक हारे हुए इंसान की तरह उन्हें देखता जा रहा था।
