हार से हौसला
हार से हौसला
एक बच्चा था जिसका नाम रोहित था। वह बहुत ही खुशमिजाज था और हमेशा खेलने का शौक रखता था। रोहित का पसंदीदा खेल क्रिकेट था। वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलता रहता था। वह अपने दोस्तों से हमेशा अधिक बल्लेबाजी करने का दावा करता था।
एक दिन रोहित दोस्तों के साथ मैच खेल रहा था। रोहित को पहले बल्लेबाजी का मौका मिला। उसने बहुत ही अच्छी बल्लेबाजी की और अच्छे अंक बनाए। लेकिन बाद में वह बॉलिंग के दौरान उसे कुछ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया। उसके दोस्तों ने भी उसका मज़ाक बना दिया।
रोहित मैच हार जाने से बहुत दुखी महसूस कर रहा था। उसे लग रहा था कि उसके खेलने का शौक खत्म हो गया है। उसने अपने दोस्तों से कहा, "मुझे क्रिकेट खेलना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। मुझे लगता है कि मैं अब कभी भी इसमें अच्छा नहीं हो पाऊँगा।"
इतना कहकर वह घर वापस आ गया। रोहित के पिता ने उसे देखा और उससे पूछा, "क्या हुआ बेटा? क्यों इतना उदास हो और रोने वाली शक्ल क्यों बना रखा है ?"
रोहित ने गुस्से से कहा, "पापा, मैं हार गया। अब मैं कभी नहीं खेलूंगा।"
तब उनके पिता ने उन्हें अपनी गोद में बिठाया और कहा, "बेटा, हारना हमेशा जीतने से बेहतर होता है। तुमने जब तक नहीं हारा, तब तक तुम जीते रहे। हारने के बाद ही तुम कुछ नया सीख पाओगे। अब तुम उससे आगे बढ़कर और ज्यादा अच्छा खेल खेलोगे।"
लेकिन रोहित को ठीक से समझ नहीं आया, तो उनके पिता ने उन्हें यह समझाया कि हार एक सफलता का एक हिस्सा है। जीत और हार दोनों हमेशा खेल का हिस्सा होते हैं। जब तक हम हारते नहीं हैं, तब तक हम नई चुनौतियों का सामना नहीं कर पाते है, जो हमें नये तरीकों से सीखने और अपनी कमजोरियों पर काम करने की संभावना देते हैं। इसलिए, हारना जीतने से कम नहीं होता है।
रोहित ने अपने पिता के वचनों को समझा और उठ गया। वह फिर से खेल खेलने का मन बना लिया। इस बार वह नहीं हारा। वह जीत गया। इस बार उसके चेहरे पर अपनी मेहनत का फल था।
फिर कुछ दिनों तक रोहित ने खेल के दौरान कई बार हार गया लेकिन उसने हार नहीं मानी, वह हमेशा अपने आप को समझाता था कि हार के बाद भी आगे बढ़ना ज़रूरी है। उसने हार से डरने की बजाय हमेशा उससे सीखने की कोशिश करने लगा। इस तरह वह अब अपने स्कूल टीम का कप्तान बन गया था।
एक दिन उसकी टीम को एक बहुत बड़ा मैच खेलना था। रोहित को उस खेल से बहुत उम्मीद थी। मैच शुरू हो गया और रोहित अपनी टीम के साथ अच्छा खेल रहा था। वह अपनी टीम को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा था। लेकिन मैच के बीच में ही, रोहित की टीम अपने खेल में थोड़ा पिछड़ गई। रोहित भी थक गया था और उसकी खेल में बदलाव भी आ गया था फिर भी वह हार मानने वाले खिलाड़ियों में नहीं था।
मैच का अंत आ गया और रोहित की टीम हार गई थी। रोहित थोड़ा निराश हो गया था, लेकिन उसे अपने हार से लड़ना सीखना था।
उसके पिता उसे अगले मैच के लिए प्रेरित करते हुए बोले, "बेटा, तुमने अच्छा खेला। हमेशा जीत हासिल करने की कोशिश करो, लेकिन अगर हार होती है तो इसे स्वीकार करो और फिर अगली बार जब तुम यह महसूस करने लगो कि हार तुम्हारे पास आ रही है, तो खुद को याद दिलाओ कि जीत और हार एक-दूसरे का हिस्सा होते हैं। हार एक अवसर होता है जिससे तुम सीखते हो और अगली बार के लिए तैयार होते हो।"
रोहित का दिल फिर से उत्साह से भर गया था। वह समझ गया था कि हार भी जीत से कम नहीं है। उसने अपने पिता के शब्दों को अपने मन में समेट लिया और फिर से अपने खेल में लग गया।
दो महीने बाद उसकी टीम का अगला मैच था। रोहित ने अपने पिता के शब्दों का पालन करते हुए खेला। मैच बहुत तनावपूर्ण था, लेकिन रोहित ने खुद को संभाल कर खेला और अपनी टीम को जीत दिलाई।
अगले दिन स्कूल में, सभी उसे बधाई देने आए। उसके दोस्त ने उससे पूछा, "रोहित, तुम्हारी टीम ने कल मैच जीता है ना? तुमने कैसे जीता?"
रोहित ने अपने दोस्तों को बताया, "मैंने सीखा है कि हार और जीत एक समान होते हैं। हमें हमेशा जीत हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन हम हार को भी स्वीकार करना चाहिए और उससे सीखना चाहिए। इससे हमारी गलतियों से हमें सीख मिलती है जिससे हम अपनी अगली जीत के लिए तैयार होते हैं। जीवन में जीत हार दोनों होते रहते हैं, लेकिन हमारा व्यवहार हमें सफलता देता है। हमें हमेशा सही कर्म करना चाहिए और जीत के लिए प्रयासरत रहना चाहिए और इतने के बाद भी अगर हार जाए तो इसे स्वीकार करना सीखना चाहिए और अगली बार फिर से प्रयास करना चाहिए।"
रोहित के दोस्तों ने उससे सहमति जताई और सभी एक-दूसरे के साथ गले मिलते हुए खुश हो गए।
यह कहानी हमें जीत-हार की एक नई सीख देती है कि हमें कभी भी हार से निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि उससे सीखना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए हमें अपने अहम से लड़ते हुए नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
