एक नयी सुबह
एक नयी सुबह
पति के गुजर जाने के बाद सिया अकेली हो गई थी । अभी हाथो की मेहदी छूटी नहीं कि मांग उजड़ गई,,,,,,,, सिया जीना नहीं चाहती थी। आखिर जिये भी तो किसके लिए........??
सूरज से प्रेम विवाह किया था । ना ही सिया के घरवालों ने अपनाया और ना ही सूरज के घरवालों ने..... दोनों ने मिलकर एक नई दूनिया बसा ली, घर से कोसो दूर .....!
अपनी नयी दुनिया मे दोनों खुश थे आने वाले कल के सपने संजो रहे थे...... ।
पर भगवान ने तो कुछ और ही लिखा था उनके जीवन में शायद सिया के जिंदगी मे अंधियारा........
एक एक्सीडेंट और सब कुछ छिन लिया सिया का......।
सूरज चला गया सिया को छोड़कर, इस दुनिया से दूर बहुत दूर । सिया तो अपना सुध- बुध ही खो बैठी ।
अब वह खुद को भी खत्म करना चाहती थी। वह आत्महत्या करने के लिये नदी में कूद गई । मछवारों ने उसे कूदते हुऐ देखा था, उसने उसे बचाया तो उस समय बेहोश थी। सिया को उन्होने तुरंत मिलकर अस्पताल पहुँचाया । होश मे जब आई सिया तो खुद को अस्पताल में पाकर, वह सोचने लगी कि मै यहाँ कैसे .......मै तो नदी मे कूदी थी खुद को खत्म करने के लिए।
डॉक्टर के आते ही सिया चिल्लाने लगी मैं यहाँ कैसे आ गई, मुझे क्यों बचाया ? मुझे मरने दिया होता।
जब डॉक्टर ने बताया कि वह माँ बनने वाली है, वह अपने साथ- साथ अपने बच्चे की भी जिंदगी खत्म करने वाली थी ,,,,,तो वह शांत हो गई ।
अब उसे जीने की एक वजह मिल गई थी। आने वाले उस बच्चे के रूप में जो उन दोनों के प्यार की निशानी था। सिया को एसा ही लग रहा था कि "जैसे दुख के बादल छंटने के बाद घने काले बादलो में छिपी आशा की किरण दिखाई दी हो।"अब सिया के जीवन की काली रात बीत गई थी।वो आने वाले सुबह की तैयारी करने लगी। वैसे ही जैस- रात बीत जाने के बाद कमल खिलने को तैयार रहता है।
