एक किस्सा अधूरा सा-7
एक किस्सा अधूरा सा-7
अल्फिया अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ करने लगी थी।
वो चीजें जो इससे पहले उसने कभी नहीं की थी। वो चीजें जिनकी तरफ उसने पहले कभी ध्यान भी नहीं दिया था। अब उसकी ज़िन्दगी सिर्फ इमरान और अयान की नहीं थी बल्कि उनके अलावा भी बहुत सी चीजें थीं जो अब उसकी ज़िन्दगी का बहुत बड़ा हिस्सा थीं।
अब वो सभी रंग के कपड़े पहनती थी। रोज नया कुछ नया बनाना सीखती थी। पिछले कुछ महीनों में उसे ये भी पता लगा था की उसको लिखना कितना पसंद था। ख़ास कर कहानियां।
वो रोज दोपहर बैठ कर एक कहानी लिखा करती थी। कुछ को तो वो अखबारों और लिए भी भेजती थी। एक आध छपी भी थी उनमे से। शुरू में उसने इमरान को बड़ा खुश होकर बताया था इस बारे में पर वो कुछ जयादा दिलचस्पी लेता नहीं था तो उसने बताना छोड़ दिया।
ऐसे ही कुछ महीने और भी बीत गए। अयान डेढ़ साल का हो गया था, इमरान की भी दफ्तर में तरक्की हो गयी थी। उसका काम बढ़ गया था। अब तो वो उसे पहले की तरह फ़ोन भी नहीं करता था।अल्फिया खुद भी तो कितना बदल गयी थी।
अब रोज लाल कपड़े नहीं पहनती थी। रोज सिर्फ इमरान की पसंद का खाना नहीं बनाती थी। कभी कभी अपनी पसंद का भी बना लेती थी, जो की उसे अभी अभी पता चला था की इमरान से अलग थी। अब वो लोग हर हफ्ते घूमने नहीं जाते थे। अल्फिया पहले की तरह घंटो बैठ कर इमरान का इन्तजार नहीं करती थी। वक़्त ही कहाँ मिलता था अब उसे अगर कुछ नहीं बदला था तो वो था उनके बीच का प्यार और उनका प्यार, अयान के लिए। बल्कि उनके बीच का प्यार एक दुसरे के साथ रहकर बढ़ा ही था। अल्फिया नहीं रह सकती थी दोनों के बिना।
एक अखबार के लिए तो अब अल्फिया नियमित तोर पर लिखने लगी थी। उसी अखबार में काम करने वाली एक महिला नंदिनी अक्सर उसे चिठ्ठी लिखा करती थी। बल्कि दोनों अच्छी सहेलियां बन गयी थी। जब अल्फिया ने उसे बताया था की की उसने स्नातक किया था तो उसने एक बार को विश्वास नहीं किया था।
आज तो उसने चिठ्ठी के साथ कुछ यूनिवर्सिटी के फॉर्म भी भेज दिए थे। लिखा था की तुममें प्रतिभा है, तुम्हें आगे पढ़ना चाहिए। अल्फिया ने उन्हें देखे बिना ही मेज पर पटक दिया था और चिट्ठी पढ़ कर हँस दी थी। अयान उठा तो वो सब छोड़ कर अंदर चली गयी। उसे शाम तक भी समय नहीं मिला। इमरान आया तो मेज पर ही रखी थी वो चिठ्ठी और वे फॉर्म। इमरान ने देखे तो उठा कर पढ़ने लगा।