एक किस्सा अधूरा सा-5
एक किस्सा अधूरा सा-5
अल्फिया और इमरान की ज़िन्दगी निकाह के बाद बाद बिलकुल वैसी ही बीत रही थी जैसी उन्होंने सोची थी। सुबह एक दूसरे का चेहरा देखके होती थी और रात तब तक नहीं ढलती थी जब तक एक दूसरे के दिल की धड़कन में वो आने वाले दिन के आगाज की दस्तक न सुन लेते। अल्फिया को अब वो सब करने का मौका मिल रहा था जो वो पहले नहीं कर सकती थी। वो इमरान को रोज सुबह उठा सकती थी। इमरान के लिए उसके मनपसंद खाने की चीजें बना सकती थी। उसकी वो पीली शर्ट जो उसे कभी भी पसंद नहीं थी उससे तकिये का कवर बना सकती थी। वो हर रोज लाल रंग पहन सकती थी और उसकी अम्मी उसको टोकती भी नहीं। वो घंटो बैठ कर सिर्फ एक काम कर सकती थी, इमरान के दफ्तर से लौटने का इन्तजार।
सिर्फ अल्फिया ही नहीं बल्कि इमरान को भी अब हर वो आज़ादी थी जो निकाह से पहले नहीं थी। जैसे की वो तक तक सो सकता था जब तक खुद अल्फिया आकर उसे जगा न दे। वो हर रोज अल्फिया के लिए चूड़ियाँ खरीद के ला सकता था। वो हर पल अल्फिया के चूड़ियों की खन-खन, उसकी पायल की छन-छन अपने आस पास सुन सकता था। वो अल्फिया के हर पल उसके आस पास होने का एहसास महसूस कर सकता था। उसे अल्फिया की एक झलक पाने के लिए स्कूल या कॉलेज का इंतज़ार नहीं करना पड़ता, न ही उसे उससे मिलने के लिए उसके अम्मी या अब्बू के इजजात की जरुरत नहीं पड़ती। वो अल्फिया को रोज लाल रंग में देख सकता था। वो घंटो तक बस अल्फिया को अपनी नज़रों के सामने बैठा सकता था, और वो ये भी नहीं कह सकती थी की घर जाना है देर हो रही है।
भले ही उन दोनों न सालो तक अपने निकाह का इंतज़ार किया था पर फिर भी ये उनकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख़ुशी नहीं थी। न ही उनके निकाह का दिन उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दिन था। बल्कि उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दिन तो वो था जब उन्हें ये पता चला था की वो लोग अम्मी अब्बू बनने वाले हैं। सच इमरान कितना नाचा था उस दिन वो भी बिना गाने, बिना बाजे के और अल्फिया वो तो जैसे ख़ुशी के मारे पागल हो गयी। दोनों ने मिल कर अपने होने वाले बच्चे का नाम भी सोचा था। इमरान ने कहा था की अगर बेटी हुई तो उसका नाम आयत रखेंगे और अल्फियां ने कहा था की अगर बेटा हुआ तो उसका नाम अयान रखेंगे......
क्रमशः
