Haresh Mulchandani

Abstract Inspirational

2.7  

Haresh Mulchandani

Abstract Inspirational

एक झलक ऐसी भी

एक झलक ऐसी भी

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"महिलाएं भगवान की बनायी हुई वो रचना है जिसमें त्याग, ममता, बड़ों का आदर, आत्म सम्मान, सहन शक्ति जैसे कई गुण समाएं हुए हैं। किसी एक इंसान के अंदर इतने सारे गुण होना उसे आम लोगों से अलग खड़ा करता है।"

हम सब कि जिंदगी में कुछ ऐसे किस्से है, जिन्होंने हमारी जिंदगी को बदल कर रख दिया है। हम सभी उन लोगो को याद करते है तो एक सपना सा लगता है। असाधरण घटनाये व्यक्ति को असाधारण बनाती है। कुछ अपने बुरे सपनो से टूट जाते है तो कुछ लोग मजबूत बन जाते है। कुछ इस तरह ही हे यह जीवन का खेल जो जीना भी सीखाता है ओर मरना भी। जो समय के साथ चलना भी सीखाता है एवं समय का महत्व भी अच्छे से समझाता है। एक ऐसा ही अद्भुत सफर है ये जीवन मे सभी का, "हर पल एक जैसा नहीं होता ओर हर वो पल के लिए जीना भी जरूरी होता है।"

कुछ ऐसा ही एक महान स्त्री के साथ हुआ था जो उसे साधारण स्त्री से अलग तथा अनोखी बनाती है। बड़ों का सम्मान उसमे कुटकुट के भरा था, सुशील, भावनात्मक रूप से मजबूत, दया की देवी, उदारता से भरी, साहस से भरपूर, एक ऐसी सच्चाई के साथ लड़ रही थी जिसका अस्तित्व उसकी वास्तविक जीवन के साथ कुछ ऐसे जुड़ा था जिसका कोई मॉल नहीं है। ना वो किसीको अपनी पीड़ा बता सकती थी ना वो किसी से अपना दर्द व्यतित कर सकती थी।

वो स्त्री जिसका नाम है खुशी, जिसका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उसकी मां का नाम चंचल देवी था। वो भी एक ऐसी मां थी, जिसके बारे में जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। उनके पास ना खाने के पैसे थे ना कुछ जमापूंजी थी। एक मनोबल था और अपने आप पर आत्मविश्वास था, जिसके सहारे वो छोटामोटा काम करके गुजारा करती थीं। वह ममता से भरी मां इतनी संयम थी जो अपनी शक्ति के बल पर अपने पूरे परिवार को संभालती थी। उनके २ बेटे ओर ४ बेटियां है। लाख तकलीफ आयी, एक रूम में पूरा परिवार एकसाथ रहेता था। सब छोटे थे घर में तो खुशी की मां सबका दयान रख रही थी। खुशी के पिताजी की तबीयत खराब रहेती थी। सब घर का बोझ उसकी मां के ऊपर था, पर क्या करे जीवन है मां ने जन्म दिया है तो वो अपने बच्चो के लिए कुछ भी कर सकती है। उन्होंने सबकुछ देख लिया था जीवन में की जिसकी कोई सीमा नहीं थी। फिर जैसे जैसे समय बीतता गया, उनके बच्चे बड़े होने लगे एक दिन उनका बेटा उनके लिए कुछ करना चाहता था। उनसे उनकी परेशानी देखी नहीं गई तो एक बेटा जिसका नाम अक्षय है जो अपने परिवार से दूर अहमदाबाद नामक शहर में कुछ काम की शोध में निकल पड़ा। धीरे धीरे परेशानी आती गई उन्हें जल्दी काम नहीं मिल रहा था। १ साल तक वो इधर उधर परिवार की खुशी के लिए भटकता रहा। फिर एक जगह विक्रेता की नौकरी मिली ओर वो ज्यों त्यों पैसे जुटाकर अपने घर भेजने लगा। दूसरा भाई भी अपनी तरफ से जितना होता था उतना देके घर को संभाल लेता था। फिर जैसे जैसे समय बड़ता गया बच्चे बढ़ते चले गए। उन सबकी शादी हो गई। उसमें से एक बेटी की हालत पहले से ही खराब थीं जिसको बड़े बेटे अक्षय ने संभाल ने का फैसला किया था।

खुशी तीसरे नंबर की बेटी है, जिसका स्वभाव बिल्कुल उसकी मां पर गया है। वह हर क्षण अपने माता पिता के आदर्शो पर चलती थी, उनके दिए हुए संस्कार की तुलना अविस्मरणीय है। खुशी एक ऐसी महान देवी की बेटी है जो किसी भी आंगन कि शोभा बड़ा देती। उसने शादी से पहले ना लडके को मिलने की कोशिश की, ना बात करने की, जो बड़ों ने फैसला किया वो सराखों पर रखकर अपना जीवन आगे बढ़ाने के लिए बड़ों का आदर रख के हा बोल दिया था। उनका जीवन अच्छा चल रहा था उनके पति व्यवसायिक थे। खुशी अपने घर में आते ही सबकी अच्छे से देखभाल करके सबका मन जीत लिया ओर सबके मन में अच्छी जगह बना ली। वो घर का सब कम कर लेती थी बिना बोले ओर अपनी सांस को भी कोई काम नहीं करने देती। एक दिन उनकी यही बात से खुश होकर उनके ससुर ने काफी तारीफ की थी

उनके घर में सबसे बड़ी तकलीफ उसके पति के भाई की थी, जो उसको नापसंद करता था। किसी भी हाल में खुशी को देखता था तो उसकी मन में आग की जवालाए निकलती थी पर स्त्री कुछ भी हो जाए पत्नी धर्म के लिए कुछ भी सहन करती है। वो भूल जाती उस दर्द को जो उसकी खुशी के आगे एक मामूली तिनखा हैं।

शादी को सिर्फ ६ मास हुए थे तभी उनके जीवन में एक ऐसी दिल दहलाने वाली घटना हुई, जिसकी किसीको उम्मीद नई थी। अचानक खुशी की मां की तबीयत बहुत खराब हो गई ओर इनको अस्पताल में भरती किया गया। सभी वहा पहुंचे, मां के बारे में जैसे बड़े बेटे को समाचार मिले वैसे ही वो अपनी मां के लिए सबकुछ छोड़ के पैसे के बंडल के साथ अस्पताल पहुंचा और डाक्टर को बड़े प्रेम से मां को बचाने का निवेदन करते हुए कहा "जितने पैसे चाइए में दूंगा, किन्तु मेरी मां को बचा लो"। पर कहते है ना कुदरत के सामने किसी की भी नई चलती, जिसका जितना लेनदेन होता है उतना ही पाके मानवरूपी संसार से मुक्ति पाता है। वो एक झलक ऐसी थी कि सबकुछ था हाथ में ईश्वर का बुलावा आ गया ओर आखरी सासो में वो अपनी मां की जीवनदान की भिंख़ मांग रहा था भगवान से, पर क्या करे जिसका जन्म होता है उसको एक दिन तो परलोक सिधारना पड़ता है, विधि का यही विधान है। वो देवी ने अपना दम तोड़ दिया सब रोने लगे।

हालात एकदम नाजुक थे, कुछ कोई बोल नहीं सका, कुछ कोई कर नहीं सका, वो समय जो बीत गया उससे कोई वापिस ला नहीं सका, वो एक झलक ने उतना रुलाया सबको की कोई रूप नहीं है उसका। बड़ा भाई अक्षय खूब रोया ओर बोला जब गरीब थे तब मां ने हमारे लिए कितना किया सब सुख के दिन आए थे हम अमीर हो गए तब मां ने ही दम तोड़ दिया। "है प्रभु ये जीवन का कैसा कलयुग है जिसके लिए महेनत की जिसके के लिए में मां से दूर रहा इतने वर्षों तक वो सुख देने के लिए पर आज वो ही हमारे साथ नहीं रही, उससे बुरा दिन मेरे जीवन में गरीबी में भी नहीं आया था"।

फिर समय बिता ऐसे खुशी भी अपने दर्द को कम कर रही थी पर कया करे समय के साथ ही सब दर्द का इलाज होता है। जैसे तैसे अपनी मम्मी को भुलाने के लिए कोशिश कर रही थी पर वो नई हो सकता सबको पता है की एक मा ओर बेटी का रिश्ता कैसा होता है।

वह अपनी शादी वाली जीवन में बहुत खुश थी। उसको सब तरह की खुशी मिल रही थी।

उसका जीवन एक अच्छी तरह से बीत रहा था। वो अपने जीवनशैली को ऐसी तरह निभा रही थी कि जिसकी लोग बहुत तारीफ कर रहे थे। अपने शादी के कुछ सालो तक सब कुछ ठीक चल रहा था। पर अचानक एक दिन उनके जीवन में एक ऐसा दिन आता है की उनके पति का भाई उनके साथ बहुत खराब तरीके से वर्तन करता है।उनको बहुत गुस्सा करता है जैसे कोई दुश्मन पर प्रहार करता है। उनमें छूत अच्छूत बहुत था।उनका स्वभाव एक ऐसा था कि उनकी पत्नी से भी उनकी नई बनती। खुशी का सिर्फ नाम ही खुशी था उनके जीवन में हरपल दुःख के अलावा कुछ नसीब नई हुआ। ऐसे जा रहे थे जैसे वो एक ऐसी दुनिया में चली गई थी जैसे वहा सिर्फ डर ही डर था लोगो के सामने जाने से डरना पड़ता था उसको खुद के ही घर में। पर खुशी की मा के संस्कार उनके सारे गुण खुशी में थे। तो वो हर लड़ाई को अपने पति के लिए चुपचाप सहे लेती थी ओर किसीको कुछ नई बोलती थी। पर एक दिन ऐसा आया कि उसके पति के भाई ने कुछ हद पार कर दी थी तब उसको ऐसा लगा कि बस अब ओर नई। वो भी एक इंसान है उससे जानवरो से भी खराब तरीके से घर में रखने लगे ओर उनका पति उसके लिए कुछ नई कर पा रहा था। जिसके लिए वो सबकुछ सहन कर रही थी आखरी उम्मीद उसी पे ही थी पर वो कुछ नई कर सका अपनी पत्नी के लिए। पर खुशी एक सहनशील लड़की थी वो अपने आपको समजा लेती थी उसकी मा ने उसको बड़ी ताकत दी थी।इतना आत्मबल ओर निष्ठा के साथ उसका पालन किया था की वो हर दर्द को सह लेती थीं। वो सदा भगवान से प्रार्थना करती थी इसके जीवन में दुख कम हो ओर सुंख के बादल जल्दी आए। पर अभी भी शायद भगवान उसकी परीक्षा ले रहा था। कुछ सालो ऐसे ही चला ओर फिर खुशी के संतान आए।फिर वो सारी तकलीफ को साथ उनको एक बेटी हुई जो बड़ी सुशील थी बिल्कुल खुशी की तरह, धीरे धीरे समय बिता चला गया दर्द बढ़ते चले गए, सब कठिन रास्ते थे, मंजिल कुछ नई दिख रही थी। पर एक उम्मीद थी सिर्फ बच्चो को आने के बाद खुशी को लगा शायद अब कुछ परिवर्तन आएंगे।अब हमारी खुशियां वापिस आयेगी फिर से हम दीवाली मनाएंगे। सारे सपनों के किरण वापिस उनको अपने जीवन में अपने सारे दर्द भुलाकर वापिस जीने की एक उम्मीद जगाई एक नई किरण के साथ, फिर दिन अच्छे आए उनके पति भी उनको अच्छे से ध्यान दे रहे थे खयाल रख है थे, सब कुछ एकदम मस्त चल रहा था, इसके २ साल बाद फिर उनका एक बेटा हुआ फिर ओर खुशियां मिल गई उनके घर में एक नया दीप आया जिसका उन्हें इंतजार था फिर कुदरत ने एक ओर बेटा दिया इस तरह सब दर्द उसके संतान पाने से मिट गए। फिर इसके सामने उसको कितनी तकलीफ उठानी पड़ी थीं वो उनको एक मामूली सा दर्द भी याद नई रहा जो उनको ससुराल में मिला, ये ऐसा सहन कर्नेका जसबा सिर्फ महिला में होता है ना कोई पुरष में। खुशी ने अपने बेटे बेटी को भी अपने मा के संस्कार दिए थे। उनको बड़ा किया उन्होंने कितनी तकलीफ सही पर उनके बेटेबेटी को वह कुछ नई बताती थीं। क्योंकि उसको अपनी मा का संस्कार याद था अगर वो उनके बेटे बेटी को ये सब बता देती तो वो उनसे नफरत करते जो घर में कंकाश पैदा करते।

मा लाख छुपाएं सच एक दिन सामने आ ही जाता है केसे भी। कब ऐसा होगा उसका कुछ पता नहीं था। वो कहावत है ना "परिवर्तन ही संसार का नियम है" पर एक दिन ऐसा परिवर्तन आया खुशी के जीवन में किं जिसकी कोई उम्मीद ही नई थी। उनके जीवन में भी कुछ ऐसे पर्वत टूटने लगे जैसे एक आंधी तूफान की तरह उनके पूरे सुखी जीवन पे अंधेरा ही अंधेरा छा गया। "उनके पति ने कॉल करके बोल दिया था कि "अब वो घर नई आएंगे, खुशी ने पूछा क्यूं?

तो उन्होंने बोला मेरे सिर पे बहुत कर्ज चढ़ गया है। अब मेरे से नई हो रहा है परिवार का पालन। तो खुशी ने बड़ी प्रेम से समझाया अपने पति को ओर मनाया हम कोई रास्ता ढूंढ लेंगे तुम मुझे ओर बच्चो को ऐसे बीच रास्ते में छोड के केसे जा सकते हो।उनके बड़े समझाने के बाद वो मान गए ओर घर लोट आए।

खुशी एक गरीब परिवार की बेटी है तो कितनी भी विकट परिस्थितियां में वो गभराती नहीं थी ना डरती थीं। पीछे हटने का तो सवाल ही नई था। ऐसे ही लोगों के कदमों को चूमती है कामयाबी। संघर्ष की कसौटी पर खरा उतरने के लिए उसने अपने बच्चो को भी नहीं बक्षा। छोटी उम्र में ही खुशी ने अपने दोनो बेटे को बोर्ड की इम्तिहान के बाद तुरंत ही नौकरी पे लगा दिया था क्योंकि वो उनका पेट भरके घर चला सके।उनके पति का हर पल उन्होंने साथ दिया था कोई भी समय पर उन्हें कभी अकेला नई छोड़ा था।

उन्होंने अपने पति को हिम्मत देते हुवे कहा कि,

"इंतजार करो उस पल का जो जीवन में एक एक अच्छाई का दीपक जलाए, ये आशाएं मत बुजने दो वोही तो है सिर्फ एकमात्र जीवन का दस्तूर जो हमे जीने की नई उमीद सीखाता है।"

तो बस ऐसे ही खुशी के जीवन में उतार चढ़ाव आते रहे वो सामना करती रही ओर उसकी आधी उम्र उसने तकलीफ के अलावा कुछ भी नई देखा बस एक झलक खुशीवाली शादी के बाद कुछ सालो तक रही ओर मा का पयार मिला उसके अलावा उसने जीवन में गरीबी ओर दुंख़ के अलावा कुछ नई देखा।

महिलाओं को यूं ही त्याग की मूर्ति के नाम से नहीं जाना जाता है। उनके अंदर सच में यह गुण होता है। आमतौर पर पुरुष अपनी चीजों से बहुत अधिक लगाव रखते हैं। लेकिन महिलाएं रिश्तों को ज्यादा महत्व देते हुए इसके लिए कुछ भी त्याग सकती हैं। कहते है अंत भला तो सब भला पर यहां अभी बेटे बेटी के अलावा खुशी के जीवन में कुछ भी नई था। वो अपने पति के बिना भी जी रही है। सुखी जीवन के साथ उसके अच्छे दिन वापिस आ गए। अब उसके बेटे बेटी बड़े हो गए है जो जीवन में उनके हर पल खुशी देखने के लिए कुछ भी कर सकते है। एक दिन वापिस उसका पति उसको छोड़ के चला जाता है ऐसा क्यों हुआ वो सिर्फ उसको ही पता है कया वो अभी भी उसके संस्कार का पालन करते हुवे सबसे कुछ छुपा रही है, या उसके पति को छोड़ने की वजह सिर्फ कर्ज नई था काफी कुछ था जो आज भी उनके मन में ही है शायद बाहर नई आया शायद वो इसलिए नई बताना चाहती कि कुछ ऐसा हुआ होगा जो बताने लायक नई होगा। पर इतना करने के बाद पति ने वापिस घर छोड़ दिया तो उनके मन में कया होगा वो सब शायद खुशी को ही पता था ओर उसके पति को। वो अपने परिवार को लेके जरा भी चिंतित नई था। हो सकता है कि पुरुष शारिरिक रुप से मजबूत होते हों लेकिन जहां भावनात्मकता से निपटना होता है पुरुष कहीं गायब ही हो जाते हैं। इसलिए पुरुष भावनात्मक बातों का सामना करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे इस मामले में कितने अनाड़ी है। वहीं महिलाएं ऐसी बातों का सामना मजबूती से करती हैं। ये तो नारीशक्ति ही ऐसी एक शक्ति है जो काभिभी किसी भी हालत में जीवन की हर जंग जीत जाती है।

महिलाओं सहनशक्ति का दूसरा रुप हैं। स्थिति चाहे जैसी भी हो महिलाएं अपनी सहनशक्ति के बदौलत समस्या का समाधान खोज निकालती हैं। अक्सर लोग उनकी सहनशक्ति को चुप्पी समझकर उन्हें कमजोर मानने की गलती कर बैठते हैं। इसी सहनशक्ति के कारण महिलाएं अपने जीवन में हर रोल बखूबी निभाती हैं।


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