एक छोटे शहर में प्रेम
एक छोटे शहर में प्रेम
सरस्वती घाट की सीढ़ियों से उतर कर यमुना के पानी में चाँद को देखना अच्छा लगता है ।लड़का आज वही दिखाने आया है उसे।
"नदी में चाँद देखना हो तो यमुना से बेहतर कोई नदी नहीं ,एकदम शांत,स्थिर और गंभीर बिल्कुल रात की तरह !तभी तो चाँद आसमान से बेहतर लगता है नदी में।"
"तुम मुझसे प्रेम करते हो या चाँद से ?"
"तुमसे तभी तो चाँद से कर पाता हूँ प्रेम "
"मैं सुन्दर हूँ या चाँद ?"
"तुम ! तभी तो चाँद सुन्दर लगता है मुझको "
लड़की समझ नहीं पायी कि सच में कौन सुन्दर है उसका मन खिन्न हो गया आखिरी सवाल पूछते हुए कहा -
"तुम प्रेम करने आये हो या कविता?"
"प्रेम और कविता अलग थोड़े ही है ..."
लड़का प्रेम और कविता का सम्बन्ध बनाने लगा तभी लड़की ने गुस्से में आकर एक पत्थर नदी में फेंक दिया ।लहरों ने चाँद को डुबा दिया ।लड़का कुछ कहने की नाकाम कोशिश करता रहा उसी तरह जैसे चाँद लहरों से निकलने की कोशिश में था।लड़की जा चुकी थी ।न तो प्रेम हुआ,न कविता ।नदी और दो नाव का मुहावरा याद गया लड़का असहाय हो भक्ति करने चला गया ।

