एक बेटी की कहानी
एक बेटी की कहानी
लोग बेटी को बोझ क्यों समझते हैं बेटा जन्म लेता है तब सब खुश होते हैं लेकिन जब बेटी जन्म लेती है तब खुशी क्यों नहीं होती है आखिर अनाथ आश्रम में बेटियों की संख्या ही क्यों ज्यादा है अनाथ लोग बेटियों को ही क्यों छोड़ते हैं बेटों को क्यों नहीं क्या बेटी का कोई अधिकार नहीं होता है बेटी का शिक्षा पर कोई अधिकार नहीं क्या बेटी जिस घर में जन्म लेती है उसका घर में कोई अधिकार नहीं मैं जो कहानी लिख रही हूं वह एक बेटी की कहानी है जिसके बचपन में ही उसकी मां की मृत्यु हो जाती है उसकी मां जिसने इतने अच्छे सपने देखे थे की बेटी को पढ़ाएंगे।
आगे बढ़ाएंगे लेकिन उसकी मां के बीमार होने पर उसके घर वाले उनका इलाज भी नहीं करते और जब मां की मृत्यु हो जाती है तो बेटी भी बेसहारा हो जाती है सब सोचते हैं बेटी है उसको कौन रखें उसकी कौन परवरिश करें रिश्तेदारों से बोला जाता है कोई रिश्तेदार जब बेटी को कहीं सहारा नहीं दिखाई देता तो एक कोई रिश्तेदार बोलते हैं कि हम रख लेंगे कुछ दिनों के लिए जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती है तो सब के ऊपर बोझ बनने लगती है खाने के लिए पहनने के लिए पढ़ने के लिए उस बेटी का अपने घर में कोई अधिकार नहीं होता और रिश्तेदारों पर बोझ बन चुकी है उसके अपने पिता अपना भाई अपने घर वाले तक उसको बेसहारा छोड़ देते हैं उसको घर मे घुसने नही देते हैं ताकि आगे आने वाले समय में यह हम पर बोझ ना बने क्या बेटा जन्म लेता है तो उसका उस घर पर अधिकार है बेटी जन्म लेती है तो उसका कोई अधिकार नहीं इस समाज में बेटी का अधिकार कुछ भी नहीं है उसे इसीलिए घर से निकाल दिया जाता है कि वह बेटी है क्या उसकी उसकी पढ़ाई पर अधिकार नहीं है वह अब कैसे पड़ेगी कहां से पैसा लेगी रिश्तेदारों से लगी रिश्तेदार कब तक मदद देंगे जैसे तैसे वह अपनी पढ़ाई करती है बेटी पढ़ने में अच्छी होती है।
उसके पिता उसके भाई उसे पर दबाव डालते हैं की पढ़ाई छोड़ दो घर के कामकाज करो बेटी बड़ी होती है बेटी घर में काम करती है बेटी बेटी जैसे तैसे घर जाया करती है भाई भी बड़ा होता है भाई की शादी होती है भाई की शादी होने के बाद बेटी जब वहां रहती है तब तब उसके अपने पिता और भाई और भाभी सब मिलकर उसके साथ गंदा व्यवहार करते हैं उसको गालियां देते हैं मारते, पीटते और उसे घर से निकाल देते हैं भाभी धमकियां देती है तुम्हारा जीवन बर्बाद कर देंगे उसके पिता उसको जान से मारने की भी धमकी देते हैं वह अपने रिश्तेदार के घर में रहने लगती है वहां रिश्तेदार की मदद से अपनी पढ़ाई करती है उसके पापा पिता और उसके भाई और उसकी भाभी बोलते हैं बोलते हैं तुम्हारा इस घर में कुछ भी नहीं है तुम्हारा इस घर में कोई अधिकार नहीं क्या पिता की पैतृक संपत्ति पर बेटे का अधिकार है बेटी का कोई अधिकार नहीं है बेटी अब कहां जाए किससे मदद ले क्या बेटियों के लिए यह समाज नहीं बना है बेटी बीमार रहने लगी उसके इलाज के लिए पैसे कहा से मदद ले वह अपनी पढ़ाई कैसे पूरी करें उसके पिता के पास में पैसे है फिर भी वह बेटी की मदद नहीं करते क्योंकि वह बेटी है।
उसके साथ गलत व्यवहार करते हैं रिश्तेदार भी उसको बोझ समझते हैं अब वह क्या करें जो लोग गरीबी रेखा के ऊपर आते हैं जिनके पास पैतृक संपत्ति है प्लांट है फोर व्हीलर है क्या उनके पास में बेटी के इलाज के लिए रुपए नहीं है क्या उनके पास में बेटी के पढ़ने के लिए पैसे नहीं है क्या उनके पास में बेटी के खाने और कपड़ों के लिए रुपए नहीं है क्या उनके पास में इतनी भी रुपए नहीं है कि वह एक बेटी को रख सके लोग बेटीयो को ही बोझ क्यों समझते हैं क्या बेटी होना पाप है लोग बेटियों के लिए इतनी छोटी सोच क्यों रखते हैं यह समाज भी बेटियों के हित में नहीं है जब हमारे देश का संविधान बेटी और बेटी में भेदभाव नहीं करता है तो हमारा समाज बेटी और बेटे में भेदभाव क्यों करता है क्या बेटियां इंसान नहीं है।
