एक और एक ग्यारह
एक और एक ग्यारह
"नहीं समीर नहीं। ये नहीं हो सकता, तुम इस बात को यहीं खत्म कर दो।" तनु के जवाब ने उसको थोड़ा निराश कर दिया।
बहुत अधिक समय नहीं हुआ था उनकी पहचान को। लगभग वर्ष भर पहले ही वह दोनों एक विशेष भर्ती अभियान के तहत एक निजी संस्थान में भर्ती हुए थे। जहां समीर का एक बाजू और एक पाँव से लगभग लाचार होना और तनु का आकर्षक होते हुये भी 'मर्दाना' लक्षणों के कारण सहज ही बाकी स्टाफ से अलग-थलग सा हो जाना, उनकी नियति बन गयी थी। ऐसे में कब वे एक दूसरे के करीब आ गए, पता ही नहीं लगा था। लेकिन आज विवाह के प्रश्न पर तनु के इंकार ने समीर को उसकी शारीरिक अक्षमता का तीव्रता से अहसास दिला दिया।
"सॉरी तनु! मुझे लगा कि हमारा रिश्ता विवाह-बंधन में बदल सकता है, लेकिन मैं भूल गया था कि एक अधूरे इंसान को तुम्हारे जैसी योग्य और अच्छी लड़की के बारे में नहीं सोचना चाहिए।" उसकी आँखें नम हो गई।
"ऐसा मत कहो समीर, ख़ुद को अधूरा कह कर अपना मूल्य कम मत करो। अधूरापन तो मेरे जीवन में है, जो न पूर्ण रूप से स्त्री बन सकी और न पुरुष। ऐसा लगता है, जैसे गीली लकड़ी बन कर जी रहीं हूँ जो न जल पा रही है और न बुझ पा रही है।" अपनी बात कहती हुई तनु उठ खड़ी हुई। "समीर, एक 'किन्नर' ही तो हूँ मैं! एक मित्र तो बन सकती हूँ पर किसी की पत्नी नहीं।"
"नहीं तनु।" समीर ने उठ कर जाती तनु का हाथ पकड़ लिया। "तुम एक अच्छी मित्र ही नहीं पत्नी भी बन सकती हो, क्योंकि ये जरूरी तो नहीं कि हमारा संबंध केवल दैहिक रिश्तों पर ही आधारित हो।"
"और ये समाज...!"
"हां तनु। ये समाज हमारी 'फिजिकली डिसमिल्रिटीज' (प्राकृतिक विषमताओं) पर प्रश्न उठाता रहा है, तो ज़ाहिर है कि हमारे संबंधों को भी आसानी से स्वीकार नहीं करेगा।"
"हाँ समीर, और बात इतनी भी नहीं है। एक विवाह का अर्थ शारीरिक जरूरतों के साथ वंश वृद्धि से भी जुड़ा होता है, क्या तुम इसे स्वीकार....?"
"बस और कुछ मत कहो तनु।" समीर ने उसकी बात काट दी थी। "मैं तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर बनने के लिए तैयार हूं, यदि तुम मेरा साथ दे सको। रही बात समाज की, तो जब हम अकेले समाज से संघर्ष करके यहाँ तक पहुंच सकते हैं तो क्या दोनों मिलकर समाज के हर प्रश्न का उत्तर नहीं बन सकते?" उसकी आँखों में झलकते विश्वास को देख, अनायास ही तनु मुस्करा उठी और उसने आगे बढ़ समीर का हाथ थाम लिया।